Tuesday, February 11, 2025
- Advertisement -

कूड़ा समय यानी ‘एब्सर्ड समय’ को चित्रित करती कहानियाँ

Ravivani 34


SUDHANSHU GUPTअसगर वजाहत को कहानी, उपन्यास, आख्यान, नाटक, फिल्म पटकथा के लिए जाना जाता है। वह साठोत्तरी पीढ़ी के बाद के महत्वपूर्ण कथाकार और नाटककार के रूप में लोकप्रिय हैं। ‘जिस लाहौर नर्इं देख्या ओ जम्या ई नईं’ उनका सर्वाधिक खेला और पसंद किया गया नाटक है। पिछले साल ही उनके नाटक ‘महाबली’ को व्यास सम्मान दिया गया है। लेकिन 2023 में वह एक बार फिर कहानी की तरफ लौटते दिखाई दिए। उनका नया कहानी संग्रह ‘कूड़ा समय’ (राजपाल एण्ड सन्ज) से आया है। मैं सोचता रहा कि वजाहत साहेब ने इस समय को ‘कूड़ा समय’ क्यों कहा? और यह समय कैसा समय है? आज हम एक ऐसे समय में जी रहे हैं, जहाँ धार्मिक कट्टरता, जातीय हिंसा चरम पर है, जहाँ विवेकहीनता है, धर्म के नाम पर चारों तरफ कूड़ा फैला हुआ है, साम्प्रदायिकता है, जातिवाद है, तानाशाही के तीखे बोल हैं, खुद को श्रेष्ठ समझने की सोच है, मूर्खताओं को सम्मानित करने की होड़ है, इतिहास को तोड़-मरोड़कर नया इतिहास लिखे जाने की ‘जिद’ है, जहां सच और झूठ के बीच की दूरियां समाप्त हो गई हैं, जहां बन्दर या गधा होना भी सम्मान का प्रतीक बन गया है। वजाहत साहेब इसे कूड़ा समय कहते हैं, लेकिन वास्तव में यह ‘एब्सर्ड समय’ है। इस कूड़ा समय के कूड़े को साफ करने के लिए वजाहत साहेब ने कुछ कहानियां लिखी हैं। लेकिन ये परम्परागत शैली में लिखी जा रही लघुकथाएं नहीं हैं। ये कहानियां छोटी होने के बावजूद अपने अर्थ और सन्दर्भों में बड़ी हैं। वजाहत साहेब ने देश में आपात्तकाल के समय भी छोटी और प्रतीकात्मक कहानियां लिखनी शुरू की थीं। उनकी कोशिश यह थी कि उनकी शैली एक सी न हो। कहीं ये पंचतंत्र की कहानियों सी लगें और कहीं आधुनिक मुहावरों में, कहीं केवल संवाद में, कहीं अमूर्तन तो कहीं सूफी परम्परा की कहनियों जैसी लगें। खलील जिÞब्रान, जेन साधकों ने और मिस्र के नजीब महफूज ने इस तरह की छोटी कहानियां लिखी हैं, जो बेहद लोकप्रिय हुर्इं।
वजाहत साहेब की इन छोटी कहानियों में पूरा भारतीय समाज-अपनी विसंगतियों के साथ दिखाई पड़ता है। उनकी कुछ कहानियों पर गौर कीजिए:

भय का दर्शन
‘गुरुजी मेरी लोकप्रियता कम हो रही है।’
‘कैसे राजन?’
‘लोग मेरी बात नहीं सुनते।’
‘तुम कैसे बात करते हो?’
‘जैसे आपसे बात कर रहा हूं।’
‘नहीं-नहीं इस तरह कोई तुम्हारी बात नहीं सुनेगा।’
‘फिर क्या करूं गुरुजी?’
‘कान खोल कर सुन लो। तुम्हारी बात लोग उस समय तक नहीं सुनेंगे। जब तक तुम उनको डराओगे नहीं।’
भय का दर्शन पर अनेक कहानियाँ हैं, जो इस दर्शन को आगे बढ़ाती हैं। जैसे:
‘डराने का सबसे उत्तम विषय क्या है राजगुरु?’
‘इसका एक ही सिद्धांत है राजन।’
‘क्या सिद्धांत है राजगुरु’ ?
‘पहले पता करना चाहिए कि किसको क्या सबसे प्रिय है।’
‘उससे क्या होगा राजगरु’ ?
‘उसी से सब कुछ होगा राजन। उसी से सब कुछ होगा।’
एक अन्य कहानी देखिए-तुमको सबसे अधिक प्रिय क्या है राजन? मुझे सबसे अधिक प्रिय है मेरी सत्ता। अगर तुम्हें डरा दिया जाए कि तुम्हारी सत्ता चली जाएगी तो? मैं बहुत डर जाऊंगा। बस यही सिद्धांत है। यही सिद्धांत है। इसको पकड़ लो।
भय के दर्शन से जुड़ी कहानियों में वजाहत साहेब राजा और प्रजा के बीच के रिश्ते में भय की भूमिका और महत्ता को बाकायदा दर्ज करते हैं-लगभग हर क्षेत्र में। असगर वजाहत की कुछ कहानियाँ नीति कथाओं की तरह चलती हैं। इनमें मन्दिर और ईश्वर के रिश्ते, पढ़ाई और पैसे का जीवन में महत्व, धार्मिकता, हिन्दू और मुसलमानों के पूजाघर आदि बहुत से विषयों पर कहानियाँ हैं और ये सभी हमारे जीवन के अहम पक्षों को संजीदगी से चित्रित करती हैं। एक कहानी देखिए:
‘तुम बहुत बिगड़ते जा रहे हो रानू।’
‘कैसे पापा?’
‘तुम सवाल बहुत पूछने लगे हो।’
‘तो सवाल पूछना गलत है पापा?’
‘हां सवाल पूछना ठीक नहीं है!’
‘तो पापा, क्लास में टीचर हमसे सवाल क्यों पूछते हैं?’
अब जरा सोचिए कि यह कहानी कहां तक चोट करती है। असगर वजाहत ने अपनी इन कहानियों में समाज की विसंगतियों को बेहद सरल और तल्ख भाषा में दर्ज किया है। इन कहानियों को पढ़कर आप मीडिया की स्थिति, गधों की स्थित और बंदरों की स्थिति को देख और समझ सकते हैं और इनके बरक्स यह भी देख सकते हैं कि मनुष्य कहां खड़ा है।
बंदरों का इंटरव्यू श्रृंखला की एक कहानी में वह लिखते है: बंदरों से पूछा गया कि वह कौन-सी कला है जिसे आदमी जानते हैं और आप लोग नहीं जानते?
बंदरों ने कहा, आदमी, आदमी को मार डालने की कला जानता है। यह कला हम नहीं जानते।
कहानियों में समाज के हर क्षेत्र में धर्म, जाति, देश एकाधिकारवाद, घृणा और नफरत के ऐसे कूड़े को चिन्हित किया है, जिसके कारण चारों तरफ हिंसा देखने को मिल रही है। उनका मानना है कि इस कूड़े को हटाने की कोशिश इस कूड़े को पहचानने से शुरू होती है। असगक वजाहत साहेब की यह पुस्तक कूड़ा समय समाज में फैल रहे और फैलाए जा रहे, उस कूड़े को चिन्हित करती है, जिसे बिना इसके साफ नहीं किया जा सकता! प्रयोगधर्मिता के हिसाब से भी असगर वजाहत साहेब का यह महत्वपूर्ण काम माना जाएगा।


janwani address 7

What’s your Reaction?
+1
0
+1
1
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

MEERUT: गंगानगर के डॉल्फिन पार्क को दो पल सुकून का इंतजार

करोड़ों खर्च, फिर भी पार्कों के हालात दयनीय,...

शांति समिति की बैठक में पब्लिक ने उठाया ओवरलोड ट्रक और अतिक्रमण का मुद्दा

जनवाणी संवाददाता | फलावदा: त्यौहारों के मद्देनजर थाने में आयोजित...
spot_imgspot_img