आज प्रत्येक व्यक्ति की एक ही इच्छा है कि उसका नाम सबसे अधिक सफल व्यक्तियों की श्रेणी में हो। और इस इच्छा के वशीभूत हो कुछ लोग, अपने नैतिक मूल्यों की भी बलि देने से पीछे नहीं हटते और इन्हीं अनंत इच्छाओं की पूर्ति में काम, क्रोध, मोह और लालच जैसे दुगुर्णों को अपना कर अपने जीवन को दुर्भर कर लेते हैं। वे अपने मानसिक शांति से भी हाथ धो बैठते हैं। जिसका परिणाम होता है हताशा, विषाद और जीवन का अवसाद।
ऐसी समय में प्रसिद्ध राजनीति के पुरोधा आचार्य चाणक्य के अमृत वचन मनुष्य का मार्गदर्शन करते हुए, उसको इस कठिन समय से उबारने में मददगार साबित होते हैं। आचार्य चाणक्य का दर्शन कहता है कि जीवन में भूत और भविष्य की चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि जो बीत गया है, वो समय दोबारा नहीं आएगा। भविष्य कैसा रहेगा? इसकी किसी को कोई जानकारी नहीं। ये केवल परमात्मा जानता है।
अत: सर्वश्रेष्ठ है कि हम वर्तमान में जीने का प्रयत्न करें। अपने भूत और भविष्य की चिंता में अपने वर्तमान को व्यर्थ नहीं करना चाहिए। वर्तमान में किए सद्कर्म भविष्य की संपति बन जाते हैं। जिनसे हम भूत तो नहीं पर अपना भविष्य तो सुखी बना सकते हैं। मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र उसका ज्ञान और उसकी शिक्षा है। विषम परिस्थिति में शिक्षा और ज्ञान ही काम आते हैं। शिक्षा और ज्ञान व्यक्ति को समृद्ध और विवेकी बनाता है।
इसलिए विपत्ति आने पर बुद्धि से कार्य करें। जल्दबाजी में कोई फैसला न लें। इससे बने काम बिगड़ जाते हैं। स्वयं भी शिक्षित हों और अपनी संतान को भी शिक्षित बनाएं। सीमित संख्या में मित्र रखें। इनमें विश्वास पात्र मित्र को ही शामिल करें। आचार्य चाणक्य कहते हैं कि अनुशासनहीन और अकर्मठ लोग अपने स्वयं और अपने नजदीक रहने वाले लोगों के लिए सिर्फ बाधाएं ही उत्पन्न करते हैं।
प्रस्तुति: राजेंद्र कुमार शर्मा
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