Friday, January 10, 2025
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किसान वार्ता के लिए तैयार, केंद्र सरकार के सामने रख दीं यह चार शर्तें

किसान 29 दिसंबर को वार्ता को तैयार, केंद्र के पाले में डाली गेंद

जनवाणी ब्यूरो |

नई दिल्ली: किसान नेता केंद्र सरकार से छठीं दौर की वार्ता के लिए तैयार हो गए हैं। इसके लिए उन्होंने मंगलवार 29 दिसंबर 2020 को 11 बजे का समय नियत किया है। केंद्र से बातचीत के लिए किसानों ने भारी-भरकम मांगों से पीछे हटते हुए केवल चार मांगें केंद्र के सामने रखी हैं।

लेकिन किसानों ने कहा है कि वार्ता के पहले केंद्र सरकार को यह बताना चाहिए कि वह हमारी मांगों पर आगे बढ़ने के लिए किस प्रकार से बातचीत करेगी। सूत्रों के मुताबिक अगर केंद्र सरकार इन मांगों को मानने के लिए उचित प्रक्रिया बताने में नाकाम रहती है तो किसान छठें दौर की वार्ता से इनकार कर देंगे।

किसानों की ये हैं चार मांगें

  1. तीनों विवादित कृषि कानून निरस्त किए जाएं।
  2. राष्ट्रीय किसान आयोग द्वारा सुझाए गए तरीके से किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को कानूनी गारंटी बनाने की प्रक्रिया और प्रावधान बताएं।
  3. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए आयोग अध्यादेश, 2020 में उल्लिखित दंड प्रावधानों से किसानों को बचाने के लिए उचित संशोधन का तरीका बताएं। (पराली जलाने पर किसानों को दिए जाने वाले दंड पर रोक लगाने से संबंधित)
  4. विद्युत संशोधन विधेयक, 2020 में उचित बदलाव कर किसानों के हितों की रक्षा करने का तरीका बताएं।

बता दें कि इसमें किसानों की मांग संख्या 3 और 4 को सरकार ने स्वीकार कर लिया है। सरकार ने कहा है कि पराली जलाने के लिए आयोग द्वारा अर्थदंड और जुर्माने का प्रावधान वापस लिए जाने के संदर्भ में विचार किया जा सकता है। बिजली बिल के संदर्भ में सरकार ने वर्तमान व्यवस्था बरकरार रखने पर सहमति जता दी है।

किसानों और केंद्र सरकार के बीच सबसे बड़ी पेंच किसानों की सबसे बड़ी मांग तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने पर फंसी है। किसान इस मांग से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं तो केंद्र ने भी तीनों कानूनों को सिरे से वापस न लेने का संकेत दिया है।

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोंमर ने कहा है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य का मुद्दा व्यावहारिक नहीं है। केंद्र के संकेतों से लगता है कि वह इसे कानूनी अधिकार बनाने की मांग पूरी करने के लिए तैयार नहीं है। इस पेंच के बीच दोनों के बीच समाधान निकलना मुश्किल दिखाई पड़ रहा है।

अब अगर सरकार इस तरह का प्रस्ताव नहीं लाती है जिसमें कानूनों को समाप्त करने की प्रक्रिया का उल्लेख नहीं होगा तो किसान बातचीत करने से इनकार कर देंगे। लेकिन इस तरह बातचीत को आगे न बढ़ने का आरोप सरकार के सिर पर जाएगा।

किसानों का आरोप है कि सरकार इस तरह के संकेत दे रही है कि जैसे किसान उससे बातचीत को तैयार नहीं है, इससे किसानों की अड़ियल छवि बन रही है जो किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। इस प्रकार किसानों ने गेंद केंद्र सरकार के पाले में डाल दी है।

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