रावती सैनी ‘नीरज’ की पहली किताब ‘नूरी’ स्त्रियों की समस्याओं को मजबूती से उठाती है और समाधान भी प्रस्तुत करती है। लेखिका ने ग्रामीण जीवन में स्त्रियों के सामने आने वाली चुनौतियों को कहानियों में कुछ इस तरह पिरोया है कि आम स्त्री को ये कहानियां अपनी ही कहानियां लगती हैं। कताब की पहली कहानी ‘नूरी’ ऐसी स्त्री की कहानी है जो पति द्वारा की गई मारपीट का पुरजोर विरोध करती है… लोक लाज के भय से सब कुछ सह लेना उसकी फितरत में नहीं है। तमाम जद्दोजहद और पीहर के दबाव के बावजूद फिर से ससुराल जाने को वह राजी नहीं होती। नूरी के मन में चलने वाले अंतर्द्वंद को लेखिका ने बखूबी प्रस्तुत किया है और यह समाधान भी प्रस्तुत किया है कि इस तरह की परिस्थिति में माफी की कोई गुंजाइश होनी ही नहीं चाहिए। किताब के शीर्षक को प्रतिध्वनित करने वाली यह कहानी बदलाव की शीतल बयार से मन में आशा की नई किरण जगाती है। ‘हड़कारा’ कहानी में पुत्र मोह के चलते पुत्रियों की उपेक्षा का मार्मिक प्रस्तुतिकरण किया गया है और साथ ही यह भी स्थापित किया गया है कि ब्याही गईं बेटियां पराई नहीं अपनी ही होती हैं। कहानी ‘महकता प्रेम’ में लेखिका ने प्रेम के सच्चे स्वरूप को निरूपित करने की कोशिश की है। प्रेम में अमीर और गरीब के बीच की खाई ने हमेशा समस्याएं उत्पन्न की है। इसी तरह ‘ब्याज’ और ‘बैरी’ कहानियां भी ग्रामीण परिवेश में व्याप्त कुरीतियों पर करारी चोट करती हैं। निरंतर हो रहे मूल्यों के परिवर्तन पर भी लेखिका ने बखूबी कलम चलाई है। ‘पागल’ कहानी में दहेज प्रथा के दुष्परिणामों पर प्रकाश डाला गया है। ‘मुक्ति’ और ‘डायन’ कहानी में संतान की चाह और उसके लिए भावावेश में लिए गए निर्णयों के दूरगामी प्रभावों पर प्रकाश डाला गया है । डायन प्रथा की बुराइयों और ढोंगी बाबाओं की करतूतों को उजागर करने में भी लेखिका ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। पुस्तक का कलेवर अत्यंत आकर्षक है और प्रस्तुतिकरण भी बहुत प्रभावी है। वर्तनी संबंधी अशुद्धियां न के बराबर हैं। लेखन में भाव पक्ष इतना प्रबल है कि पाठक आसानी से बात का मर्म समझ जाता है और यही लेखिका की सफलता है।
पुस्तक : नूरी, लेखिका : तारावती सैनी ‘नीरज’, प्रकाशक : सृष्टि प्रकाशन, चंडीगढ़, मूल्य : 160 रुपये