Sunday, July 7, 2024
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गांधी का रामराज्य कहां बना पाए हम

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Ravivani 12


Rohit Koshikरामराज्य से मेरा अर्थ हिंदुओं के राज्य से नहीं है। रामराज्य-अर्थात जहां अंत्योदय की प्रकृति राज करती हो। गं्रथों में जिस रामराज्य की चर्चा है वह वास्तविक लोकतंत्र है। न्याय व्यवस्था में राजा और रंक का भेद नहीं हो। मैंने अपने आदर्श समाज को रामराज्य का नाम दिया है। कोई यह समझने की भूल न करे कि रामराज्य का अर्थ है केवल हिंदुओं का शासन। मेरा राम खुदा या गॉड का ही दूसरा नाम है। मैं खुदाई राज चाहता हूं जिसका अर्थ है धरती पर परमात्मा का राज्य। सत्य, अहिंसा, मर्यादा-पालन, वीरता, क्षमा, धैर्य आदि गुणों का हमसे से हरेक व्यक्ति यदि वह चाहे तो क्या आज परिचय नहीं दे सकता? मैं सत्य को राम के नाम से पहचानता हूं। यह निश्चय ही कहा जा सकता है कि अगर हृदय निर्मल हो तो रामनाम की जरूरत ही नहीं है। बस यह है कि मुझे रामनाम के अलावा हृदय को निर्मल करने का कोई उपाय ज्ञात नहीं है।

महात्मा गांधी

राम के प्रति गांधी की आस्था इस बात से पता चलती है कि गोली लगने के बाद उनके मुख से अंतिम शब्द ‘हे राम’ ही निकले थे। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि इस दौर में राम के प्रति आस्था के नाम पर जिस प्रकार का ढकोसला किया जा रहा है, वह हमें गांधी के रामराज्य से बहुत दूर ले जा रहा है। आज राम मंदिर निर्माण के संदर्भ में जिस तरह के नारे चल रहे हैं और गर्व महसूस किया जा रहा है, क्या उससे वास्तव में रामराज्य आने की उम्मीद है? विधानसभा चुनाव के इस माहौल में एक गीत काफी लोकप्रिय हो रहा है-‘जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे।’ जब अंधभक्ति विचार करने की शक्ति छीन ले और हमारी आंखों पर पट्टी बांध दे तो हम वास्तविकता से दूर होेकर शब्दों का ऐसा साम्राज्य रचते हैं जहां सब कुछ गड्डमड्ड हो जाता हैै। राम भारतीय समाज की आस्था के प्रतीक है। हमारे गांवों, कस्बों और शहरों में राम-राम जी और सीता-राम जी कहकर अभिवादन करने की प्राचीन परम्परा रही है। अगर कोई व्यक्ति या उसके चेले-चपाटे यह सोचते हैं कि राम को वे ही लाए हैं तो यह हास्यास्पद ही नहीं, शर्मनाक भी है। दरअसल इस सच को वे भी जानते हैं। क्या इस गीत में यह भाव नहीं हो सकता था कि जो राम मंदिर बना रहे हैं, हम उनको लाएंगे। वास्तविकता यह है कि इस गीत में जानबूझकर इन शब्दों का प्रयोग किया है ताकि लोगों के दिमाग पर एक पर्दा डाल कर उनमें एक जुनून भरा जा सके। यह मानवीय मनोविज्ञान है कि हम शब्दों की बारीकी या फिर उनके भाव पर नहीं जाते हैं बल्कि शब्दों के माध्यम से जो मायाजाल रचा जाता है, उसमें फंस कर रह जाते हैं। स्पष्ट है कट्टर हिंदुत्ववादी शक्तियां राम के नाम पर शब्दों का जो मायाजाल रचती हैं, उसका उद्देश्य गांधी के रामराज्य की स्थापना करना नहीं, बल्कि अपना हित साधना है।

पिछले दिनों कुछ ऐसी घटनाएं भी सामने आर्इं, जिनमें मुस्लिम समाज के लोगों से जबरदस्ती जय श्रीराम बुलवाया गया और उनकी पिटाई की गई। क्या दूसरे धर्म के लोगों से जबरदस्ती जय श्री राम बुलवाना और राम के नाम पर हिंसा करना रामराज्य के अन्तर्गत आता है। हिंसा और प्रतिहिंसा के तत्व रामराज्य का हिस्सा नहीं हो सकते। ऐसे क्रियाकलाप रामराज्य के उद्देश्यों को सार्थक नहीं कर सकते। मुसलमानों से राम की जय बुलवाने का क्या औचित्य है? हमारे देश में मुसलमान कई जगहों पर रामलीला में अभिनय करते हैं। कई जगहों पर मुसलमान परोक्ष रूप से रामलीला में सहयोग करते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ मुसलमान रामलीला में अभिनय करने वाले पात्रों के कपड़े भी सिलते हैं। अयोध्या में देवताओं के फूल और कपड़े मुसलमानों के ही घर से आते हैं। एनडीटीवी के सुप्रसिद्ध पत्रकार स्वर्गीय कमाल खान ने एक बार अयोध्या पर केंद्रित अपनी एक स्टोरी में बताया था कि जब वे छोटे थे तो उनके घर में राम दरबार की तस्वीर लगी थी और उनके पड़ोस में जब कभी भी अखंड रामायण होती थी तो कई अन्य मुस्लिम बच्चों के साथ वे भी उसमे शामिल होते थे। उनके घर के बाहर रामलीला होती थी तो वे रोज सपरिवार उसे देखते थे। इसी रिपोर्ट में वे बताते हैं कि वे राम की पूजा नहीं करते थे लेकिन राम उनकी संस्कृति का हिस्सा रहे हैं। कमाल खान की रिपोर्ट की बात छोड़ दें तो भी हमने स्वयं अपने आस-पास गांवों और कस्बों में इस तरह का अनुभव किया है। इसका अर्थ यह है कि राम केवल हिंदुओं की ही नहीं बल्कि मुसलमानों की चेतना में भी कहीं न कहीं मौजूद रहे हैं।

20 मार्च 1930 को ‘नवजीवन’ में ‘स्वराज्य और रामराज्य’ शीर्षक से प्रकाशित एक लेख में गांधी लिखते हैं-‘स्वराज्य के कितने ही अर्थ क्यों न किए जाएं, तो भी मेरे नजदीक तो त्रिकाल सत्य एक ही अर्थ है, वह है रामराज्य। रामराज्य शब्द का भावार्थ यह है कि उसमें गरीबों की संपूर्ण रक्षा होगी। यह याद रहे कि रामराज्य स्थापित करने के लिए हमें पांडित्य की कोई आवश्यकता नहीं है।’ दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि आज रामराज्य स्थापित करने के लिए पांडित्य का इस्तेमाल एवं प्रदर्शन किया जा रहा है। इस पांडित्य के माध्यम से ही आज रामराज्य को एक विशेष वर्ग और धर्म का राज्य बनाने की कोशिश हो रही है। जब हम सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने के लिए विभिन्न तौर-तरीकों से पांडित्य का इस्तेमाल और प्रदर्शन करते हैं तो अंतत: रामराज्य की अवधारणा को ठेस पहुंचती है। ऐसे माहौल में गरीबों की रक्षा का वास्तविक संकल्प भी अधूरा ही रह जाता है। अगर हम यह सोचते हैं कि गरीबों को मुफ्त राशन बांटकर हम गरीबों के आत्मसम्मान की रक्षा पाएंगे तो यह बहुत बड़ी भूल है। यह सब समझते हैं कि ऐसी योजनाएं वोट बैंक को ध्यान में रखकर चलाई जाती हैं। वोट बैंक के चक्कर में ही गरीबों का कुछ भला होता है, तो इसमें बुराई नहीं हैं लेकिन हमें गरीबों को सम्मानजनक रोजगार देने के लिए भी गंभीर चितंन करना होगा। इस दौर में भी जब अस्पताल में गरीबों को स्ट्रेचर और एबुलेंस जैसी मूलभूत सुविधाएं मुहैया नहीं होती हैं और लाश को कंधे पर लादकर ले जाते हुए गरीब की खबर अखबार में छपती है तो राजराज्य के दावे की हवा निकलती हुई दिखाई देती है।

गांधी जाति-व्यवस्था को रामराज्य के लिए सबसे घातक मानते थे। वे कहते थे कि यदि हम खुले मन से देखें तो जान पड़ेगा कि हमारी जातियां हमारी तरक्की को, धर्म को, स्वराज्य को और रामराज्य को रोकने का कार्य करती हैं। सवाल यह है कि क्या आज इस प्रगतिशील दौर में हम जाति-व्यवस्था को खत्म कर पाएं हैं? अगर इस दौर में भी गांव में दलित दूल्हे के घोड़े पर बैठने से हमारे अहंकार को ठेस पहुंचती है और हम उसके साथ मारपीट पर उतारू हो जाते हैं तो हमारी प्रगतिशीलता पर गंभीर सवाल उठता ही है। सवाल यह भी है कि हमें चुनावी माहौल में दलितों के साथ भोजन करने का नाटक क्यों करना पड़ता है? हमारे राजनेता दलितों के साथ भोजन करने के कार्यक्रम को विशेष क्यों बनाना चाहते हैं? अब तक तो दलितों के साथ भोजन करना एक सामान्य बात हो जानी चाहिए थी। दलितों के साथ भोजन करते हुए फोटो ख्ािंचवाना तो और भी शर्मनाक है। यह एक तरह से दलितों के साथ मजाक भी है और उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने की कोशिश भी है। यह कैसी विडम्बना है कि एक तरफ राम मंदिर निर्माण को देश के गौरव के रूप में देखा जा रहा है तो दूसरी तरफ इस रामराज्य में दलितों और अल्पसंख्यकों के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने की कोशिश हो रही है।

यह विडम्बना ही है कि आज कट्टर हिंदुत्ववादी शक्तियां रामराज्य को केवल हिंदुओं का राज्य बनाने की कोशिश कर रही हैं। इस रामराज्य में ‘ठोक देंगे’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल खूब हो रहा हैै। ठोक कर रामराज्य बनाने के प्रयोग में नए-नए समाजशास्त्री भी शामिल हंै और ऐसे राजनेता भी, जो धर्म और संस्कृति की नई परिभाषा गढ़ रहे हैं। इस पवित्र रामराज्य में गोडसे को पूजने वालों की नई जमात पैदा हो गई है जो छाती ठोककर गांधी को गाली दे देती है। यह विकसित रामराज्य है जहां हम विकासशील से विकसित होते जा रहे हैं लेकिन हमारा हृदय संकुचित और कलुषित होता जा रहा है। गांधी ने कहा था कि अगर हृदय निर्मल हो तो रामनाम की कोई जरूरत ही नहीं है। निश्चित रूप से अगर हम अपना हृदल निर्मल कर लें तो रामराज्य बनाने के लिए इतने सारे तामझाम की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।


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