Wednesday, July 3, 2024
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गुलाम ने बदले सुर, लगाई हाजिरी

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  • कई दिन के कोपभवन के बाद आखिर रालोद सुप्रीमो के सामने पेशी, जयंत के समक्ष रालोद विधायकों की हुई परेड

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: लगातार कई दिन तक कोपभवन में रहने के बाद रालोद के सिवालखास विधायक गुलाम मौहम्मद फिर से सक्रिय हो गये हैं। रालोद-भाजपा के बीच बढ़ रही सरगर्मियों से विचलित गुलाम मौहम्मद ने रालोद से किनारा कर लिया था, लेकिन अपना राजनीतिक भविष्य देखते हुए वह अब दोबारा से न सिर्फ सक्रिय हो गये हैं। बल्कि रालोद के प्रति पूरे निष्ठावान होने का दंभ भी भर रहे हैं। रालोद सुप्रीमो के गुरूवार को नई दिल्ली में बुलावे पर वह अपने बाकी साथी विधायकों के साथ न सिर्फ पहुंचे, बल्कि बैठक के आखिर तक मौजूद रहने के बाद रालोद में ही निष्ठावान रहने का यकीन भी दिलाया।

समाजवादी पार्टी के संरक्षक स्व.मुलायम सिंह यादव के बेहद खास लोगों में शुमार गुलाम मौहम्मद अखिलेश यादव के सपा सुप्रीमो बनने के बाद उनके प्रति निष्ठावान रहे। वह सपा के टिकट पर वर्ष 2012 में सिवाल खास से विधायक चुने गये थे। उन्होंने रालोद के चौधरी यशवीर सिंह को हराकर जीत हासिल की थी। इसके बाद 2017 में हुए चुनाव में गुलाम मौहम्मद को जीत नसीब नहीं हो सकी थी। वह भाजपा के जितेन्द्र सतवाई के हाथों शिकस्त खा गये थे। इसके बाद वर्ष 2022 में हुए चुनाव में गुलाम मौहम्मद ने फिर से सिवाल खास से अपनी दावेदारी रखी, लेकिन गठबंधन धर्म में यह सीट रालोद को सौंपी गई थी।

लिहाजा रालोद के सिंबल पर गुालम मौहम्मद को दोबारा विधायक बनने का मौका तो मिला, लेकिन वह दिल से रालोद के नहीं हो सके थे। उनका यह तालमेल इसलिए भी चलता रहा कि अखिलेश और जयंत की पार्टियों का आपस में गठबंधन रहा। अब राजनीतिक महत्वाकांक्षा में जयंत चौधरी का सपा से अलगाव हुआ और भाजपा से नजदीकियां बनीं तो गुलाम मौहम्मद के लिए सियासत करना दुश्वार हो गया। इसकी सबसे बड़ी वजह उनका मुस्लिमों के बीच भाजपा की आक्रामकता होना है। राजनीति उहापोह की इसी स्थिति में गुलाम मौहम्मद ने रालोद के कार्यक्रमों और बैठकों से दूरी बनाना शुरू कर दिया था।

रालोद नेतृत्व के समक्ष यह संदेश पहुंच गया था कि गुलाम मौहम्मद बागी होकर रालोद से किनारा कर सकते हैं, लेकिन जयंत चौधरी ने सधी हुई सियासत के तहत अपने सभी 9 विधायकों से लगातार संवाद कायम रखा। साथ ही अपने पार्टी नेताओं को भी खास तौर पर निर्देश दिये कि किसी के बारे में कोई बयानबाजी न की जाये। उधर दो सप्ताह की असमंजस के बाद आखिरकार गुरूवार को गुलाम मौहम्मद को सामने आकर अपनी निष्ठा रालोद के प्रति साबित ही करनी पड़ी।
रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी ने लोकसभा चुनाव को लेकर कमर कस ली है।

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गुरुवार को रालोद विधायकों के साथ उन्होंने नई दिल्ली स्थित पार्टी कार्यालय पर राज्यसभा चुनाव को लेकर अहम बैठक की। किसान आंदोलन को लेकर उन्होंने कहा कि हर समस्या का हल बातचीत ही है। भाजपा का दामन थामने के बाद राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गए हैं। गुरुवार को रालोद के नौ विधायकों को दिल्ली में रालोद कार्यालय पर बुलाया गया। यहां जयंत चौधरी ने इनके साथ बैठक की। इससे पहले मेरठ से बुधवार को रालोद नेताओं ने जयंत चौधरी से मुलाकात की थी।

जयंत ने रालोद नेताओं से लोकसभा चुनाव में जुटने का आह्वान किया। रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी ने बैठक के बाद पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि राज्यसभा चुनाव को लेकर बैठक की गई। जयंत चौधरी ने कहा कि रालोद का प्रत्येक विधायक पार्टी के स्टैंड के साथ है। किसानों के प्रदर्शन को लेकर किए गए सवाल पर उन्होंने कहा कि दुनिया की कोई भी समस्या हो, बातचीत ही उसका समाधान है।

दोबारा चुनाव होने पर मिल सकती थी शिकस्त

सिवाल खास से रालोद के सिंबल पर चुनाव जीतने वाले गुलाम मौहम्मद ने जिस तरह से रालोद-भाजपा की नजदीकियां होने पर बागी तेवर दिखाना चाहे थे, लेकिन मौके की नजाकत को देखते हुए गुलाम मौहम्मद ने बैक फुट पर आना मुफीद समझा। क्योंकि इस समय यदि वह रालोद से इस्तीफा देते तो भाजपा में पहले ही शामिल हो चुके रालोद के पुराने नेता चौधरी यशवीर सिंह को सिवाल खास में मौका मिलता और गुलाम मौहम्मद वर्तमान में चुनाव लड़ने की स्थिति में नहीं हैं।

उपर से उनका फैज-ए-आम इंटर कालेज के विवाद का जिन्न कभी भी बाहर आ सकता है। जिसका खामियाजा उनको या उनके किसी परिचित को ही भुगतना पड़ता। लिहाजा उन्हें यही मुफीद लगा कि मौके की नजाकत को देखते हुए धारा के विपरीत बहना अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मारना है। तमाम विश्लेषण करने के बाद आखिरकार गुलाम मौहम्मद आज जयंत चौधरी के दरबार में न सिर्फ अपनी हाजिरी लगाने पहुंचे, बल्कि सबसे आखिर तक वही रालोद कार्यालय में मौजूद रहे।

भाकियू की सिसौली में पंचायत आज

भारतीय किसान यूनियन के राष्टÑीय अध्यक्ष नरेश टिकैत ने आज सिसौली में किसानों की मीटिंग की कॉल की हैं। भाकियू नेता और किसान इस पंचायत में जुटेंगे। इस वजह से भी भाकियू की ये पंचायत अहम हो गई हैं, क्योंकि दिल्ली में किसान घूसने की कोशिश कर रहे हैं। कई दिनों से बॉर्डरों पर बवाल मचा हुआ हैं। हालांकि किसानों और केन्द्र सरकार के बीच बातचीत भी चल रही हैं। इस वजह से भी भाकियू की पंचायत अहम हो गई हैं। हालांकि किसानों के इस आंदोलन को लेकर भाकियू के राष्टÑीय अध्यक्ष नरेश टिकैत और राष्टÑीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ज्यादा कुछ नहीं बोल रहे हैं।

हालांकि इससे पहले किसान आंदोलन के राकेश टिकैत हीरो रहे हैं। पूरा आंदोलन उन्होंने ने ही हरियाणा और पंजाब के किसानों के साथ मिलकर चलाया था। इस बार सिसौली में हो रही किसानों की पंचायत में भी भाकियू नेता कोई आंदोलन से जुड़कर निर्णय ले सकते हैं। क्योंकि संयुक्त किसान मोर्चा का आज बंद का भी आ”ान हैं। किसान बंद में शामिल होंगे और कोई काम किसान एक दिन के लिए नहीं करेंगे। अपने-अपने काम से किसान विरत रहेंगे।

गुस्से में युवा

आंदोलन पर सरकार के रवैए को लेकर आम जनता, युवा और किसान सभी बेहद गुस्से में हैं। लोगों ने सरकार को ललकारा है कि ड्रोन से किसानों पर आसू गैस के गोले छोड़े जा रहे हैं। हिम्मत है तो चीन और पाकिस्तान पर ड्रोन से बम गिराते, तब मानते। किसान दुश्मन है अन्नदाता है, सरकार किसानों की बात माने। उनकी एमएसपी और अन्य मांग जायज है और इसमें कोई राजनीति भी नहीं है। ये बात यूनिवर्सिटी के बाहर युवाओं की चाय की चुस्की चर्चा में कहीं। छात्र भी किसानों का पक्ष ले रहे हैं तथा युवा भी इस मुद्दे पर किसानों के साथ हैं।

किसानों की राजनीति करने वाले जयंत चौधरी की अजीब खामोशी

देश में किसान आंदोलन को लेकर केन्द्र सरकार के बीच टकराव के हालात बन रहे हैं, लेकिन रालोद सुप्रीमो जयंत चौधरी की अजीब खामोशी किसानों को नागवार गुजर रही हैं। किसानों की राजनीति करने वाले जयंत चौधरी आखिर चुप्पी क्यों साधे हुए हैं? इसको लेकर भी गांव की चौपालों पर चर्चा हो रही हैं। किसान इस बात से खुश तो है कि स्व. चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने का ऐलान केन्द्र सरकार ने किया हैं, लेकिन एमएसपी की गारंटी पर सरकार की चुप्पी किसानों को परेशान कर रही हैं। वर्तमान में पंजाब और हरियाणा का किसान सड़क पर हैं।

हरियाणा पुलिस के साथ टकराव भी किसानों का हो चुका हैं। किसान पुलिस के लगाये गए बैरियर तोड़कर दिल्ली बॉर्डर की तरफ को बढ़ गए हैं। किसानों और केन्द्र सरकार के बीच टकराव के हालात बढ़ रहे हैं, लेकिन जयंत चौधरी की अजीब खामोशी को लेकर किसान परेशान हैं। क्योंकि किसानों की राजनीति रालोद करती हैं, उनको लेकर ही अभी चुप्पी साधे हुए हैं। दरअसल, रालोद और भाजपा के बीच गठबंधन की गांठ लग गई हैं, जिसके बयान-बाजी देने से जयंत चौधरी बच रहे हैं। ऐसे में कोई बयान दिया तो गठबंधन का ऐलान होने से पहले ही खटास पैदा हो जाएगी।

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