Monday, July 1, 2024
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ईश्वर और विज्ञान

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Amritvani 3


एक वैज्ञानिक ने ईश्वर को खोज लिया और उससे कहा, ईश्वर, हमें अब तुम्हारी कोई जरूरत नहीं है। विज्ञान ने इतनी उन्नति कर ली है कि अब हम जीवन के किसी भी रूप की रचना कर सकते हैं। अब हम वह सब कर सकते हैं, जिन्हें तुम करने का दावा करते थे। आदिकाल में तुमने जो किया वह हम अब करके दिखा सकते हैं। ईश्वर मुस्कराए और बोले, अच्छा! हम भी देखें क्या कर सकते हो तुम। बताओ तुम क्या कर सकते हो? वैज्ञानिक ने कहा, हम मिट्टी से जीवन के विविध रूपों की रचना कर सकते हैं। हम इसे तुम्हारी आकृति में ढालकर इसमें प्राण फूंक सकते हैं। जैसे तुम किया करते हो। जब हम ऐसा कर सकते हैं, तो अब हमें तुम्हारी जरूरत ही क्या रह गई है। हम पुरुष, स्त्री और जीवन के हर उस रूप की रचना कर सकते हैं, जो कभी अस्तित्व में रहा हो। ईश्वर के मुंह से निकला, वाह! यह तो बहुत अच्छी बात है। मुझे दिखाओ तुम ऐसा कैसे करते हो। वैज्ञानिक नीचे झुकता है और अपनी परखनली में थोड़ी-सी मिट्टी भरता है। रुको! जरा ठहरो!, ईश्वर ने उसे टोकते हुए कहा, वह तो मेरी मिट्टी है! तुम अपनी मिट्टी से यह काम करो! इस कहानी का मतलब यह है कि मानव कितनी भी तरक्की कर ले, लेकिन ईश्वर की बनाई उन चीजों का सहारा जरूर लेगा, जो हमें ईश्वर ने दी हैं। ईश्वर की बनाई हर शै में वह नजर आता है। इंसान मिट्टी नहीं बना सकता। ये पहाड़, नदियां, झरने, जंगल आदि सब ईश्वर ने बनाए हैं। हम इनसे फायदा उठा सकते हैं। मानव के विकास और भलाई के लिए इनका उपयोग कर सकते हैं। मानव कितना भी तरक्की कर ले, लेकिन ईश्वर का ऋण कभी नहीं उतार सकता है।


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