नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है। आज देशभर में शारदीय नवरात्रि की दुर्गा अष्टमी मनाई जा रही है। इस पर्व को देशभर के लोग बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। वहीं, बंगाल में दुर्गा अष्टमी पर्व को बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। पूरे आठ दिन के नवरात्रि व्रत के बाद भक्त मां के रूप में छोटी कन्याओं को अपने घर बुलाकर उन्हें अष्टमी तिथि को भोजन ग्रहण कराते हैं। तो कुछ लोग नवमी और दशमी के के दिन अपने व्रत को समपन्न करते हैं। ऐसा करने से माता रानी प्रसन्न होती हैं। साथ ही पूरे नौ दिन व्रत रखने पर भरपूर आशीर्वाद देती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कन्या पूजन का महत्व क्या होता है? चलिए हम आपको बताएंगे…
कन्या पूजन का महत्व
- शास्त्रों के अनुसार, नवरात्रि में व्रत रखने के बाद कन्या पूजन करने से माता रानी प्रसन्न होती है। सुख-समृद्धि, धन-संपदा का आशीर्वाद देती है। इसके साथ ही कन्या पूजन करने से कुंडली में नौ ग्रहों की स्थिति मजबूत होती है। कन्या पूजन करने से माता की विशेष कृपा प्राप्त होती है। मान्यता है कि बिना कन्या पूजन के नवरात्रि का पूरा फल नहीं मिलता है।
- कन्या पूजन करने से परिवार के सभी सदस्यों के बीच प्रेम भाव बना रहता है और सभी सदस्यों की तरक्की होती है। 2 वर्ष से लेकर 10 वर्ष तक की कन्या की पूजा करने से व्यक्ति को अलग-अलग फलों की प्राप्ति होती है। जैसे कुमारी की पूजा करने से आयु और बल की वृद्धि होती है।
- त्रिमूर्ति की पूजा करने से धन और वंश वृद्धि, कल्याणी की पूजा से राजसुख, विद्या, विजय की प्राप्ति होती है। कालिका की पूजा से सभी संकट दूर होते हैं और चंडिका की पूजा से ऐश्वर्य व धन की प्राप्ति होती है।
- शांभवी की पूजा से विवाद खत्म होते हैं और दुर्गा की पूजा करने से सफलता मिलती है। सुभद्रा की पूजा से रोग नाश होते हैं और रोहिणी की पूजा से सभी मनोरथ पूरे होते हैं।
ऐसे करें कन्या पूजन
- कन्या भोज और पूजन के लिए कन्याओं को एक दिन पहले ही आमंत्रित करना चाहिए। गृह प्रवेश पर कन्याओं का पूरे परिवार के साथ स्वागत करें और देवी दुर्गा के सभी नौ रूपों का ध्यान करें।
- कन्याओं को स्वच्छ जगह बिठाकर सभी के पैरों को हल्दी, कच्चा दूध, पुष्प एवं दूर्वा मिश्रित जल से भरे थाल या थाली में रखकर अपने हाथों से उनके पैर धोने चाहिए और पैर छूकर आशीष लेना चाहिए।
- उसके बाद सभी देवी स्वरूपा कन्याओं के माथे पर अक्षत, फूल और कुमकुम लगाना चाहिए। इसके बाद मां भगवती का ध्यान करके कन्याओं को सुरुचि पूर्ण भोजन कराएं।
- भोजन के बाद कन्याओं को अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा, उपहार दें और उनके पुनः पैर छूकर आशीष लें।
- कन्याओं की उम्र 2 तथा 10 साल तक होनी चाहिए और इनकी संख्या कम से कम 9 तो होनी चाहिए और एक बालक भी होना चाहिए। जिसे भैरव का रूप माना जाता है।
- अंत में कन्याओं के जाते समय पैर छूकर उनका आशीर्वाद लें और देवी मां को ध्यान करते हुए कन्या भोज के समय हुई कोई भूल की क्षमा मांगें, ऐसा करने से देवी मां प्रसन्न होती हैं और भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं।
- कन्याओं को विदा करने के बाद पैर धोएं हुए जल को पूरे घर में छिड़क दें, इससे घर की नेगेटिव ऊर्जा समाप्त हो जाती है।