
हरियाणा इन दिनों एक ऐसे दौर से गुजर रहा है, जहाँ पुलिस महकमे की साख, मनोबल और संवेदनशीलता तीनों एक साथ संकट में दिखाई दे रहे हैं। पहले आईपीएस अधिकारी पूरन कुमार की आत्महत्या ने पूरे राज्य को झकझोर दिया और अब एएसआई संदीप लाठर की खुदकुशी ने इस त्रासदी को और गहरा कर दिया है। दोनों घटनाएं न केवल पुलिस विभाग के भीतर की बेचैनी को उजागर करती हैं, बल्कि यह भी बताती हैं कि कानून के रखवाले ही जब अपने जीवन से हार मानने लगें, तो समाज की बुनियाद कितनी डगमगा जाती है। एएसआई संदीप लाठर ने आत्महत्या से पहले जो वीडियो जारी किया, उसमें उसने अपने अफसरों और सिस्टम के रवैये पर सवाल उठाए। इससे पहले आईपीएस पूरन कुमार की मौत के बाद भी कई सवाल अनुत्तरित रह गए थे। अब इन दो आत्महत्याओं ने मिलकर एक ऐसा सिलसिला शुरू कर दिया है, जिसने हरियाणा पुलिस की छवि पर गहरा धब्बा छोड़ दिया है। आम जनता यह सोचने पर मजबूर है कि जो विभाग सुरक्षा और न्याय का प्रतीक माना जाता है, उसके भीतर इतना असंतोष, अविश्वास और भय कैसे पनप गया।
हरियाणा पुलिस देश की सबसे अनुशासित और जुझारू पुलिस बलों में गिनी जाती रही है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में हालात ऐसे बने हैं कि इस बल के भीतर मनोबल टूटने लगा है। कहीं राजनीतिक दबाव है, कहीं जातिगत खींचतान, तो कहीं अफसरों के बीच अंतर्विरोध। आईपीएस पूरन कुमार की आत्महत्या के मामले में कई लोगों ने सवाल उठाया था कि क्या उन्हें किसी साजिश का शिकार बनाया गया? और अब संदीप लाठर की मौत के बाद यह सवाल और भी गंभीर रूप ले चुका है। यह पूरा घटनाक्रम किसी वेब सीरीज की तरह उलझा हुआ प्रतीत होता है, जिसमें हर पात्र का अपना दर्द है और हर मोड़ पर नया रहस्य खुलता है। परंतु यह कोई काल्पनिक कथा नहीं, बल्कि एक वास्तविक त्रासदी है — उन परिवारों की जिनके सदस्य कानून के रक्षक थे और अब उनकी आत्माएं न्याय की पुकार लगा रही हैं। कानून और व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी जिन लोगों के कंधों पर होती है, जब वही खुद अवसाद, निराशा और असहायता के शिकार हों, तो यह किसी भी राज्य के लिए चेतावनी की घंटी है। हरियाणा में हाल के वर्षों में कई बार पुलिस कर्मियों ने खुले मंच से यह स्वीकार किया है कि उनकी कार्यस्थितियां बेहद तनावपूर्ण हैं। लंबी ड्यूटी, छुट्टियों की कमी, ऊपरी आदेशों का दबाव और समाज की नकारात्मक धारणा-ये सभी कारण एक पुलिसकर्मी के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डालते हैं।
चिंता की बात यह है कि आत्महत्या जैसे चरम कदम का सिलसिला अब पुलिस में आम होता जा रहा है। पहले चंडीगढ़, अब रोहतक—हर बार एक नई जगह से वही खबर आती है कि एक और वदीर्धारी ने अपनी जान दे दी। यह सवाल उठाना लाजमी है कि आखिर पुलिस विभाग में ऐसा माहौल क्यों बन रहा है जहाँ मनोबल इतना कमजोर पड़ रहा है कि जीवन ही बोझ लगने लगे। कुछ लोगों का तर्क है कि इन घटनाओं के पीछे जातिवाद और राजनीति की भूमिका है। हरियाणा जैसे राज्य में, जहां जातीय समीकरण राजनीति से लेकर प्रशासन तक गहराई से जुड़े हुए हैं, यह संभावना पूरी तरह से नकारा नहीं जा सकती। किसी अधिकारी के साथ भेदभाव या दबाव, चाहे वह जातिगत हो या राजनीतिक, मानसिक रूप से तोड़ सकता है। यह वही आग है जो धीरे-धीरे पूरे सिस्टम को निगल रही है। हरित प्रदेश हरियाणा का सामाजिक ताना-बाना तभी सुरक्षित रहेगा, जब प्रशासन जातिवाद से ऊपर उठकर ईमानदार और निष्पक्ष कार्रवाई करेगा। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि शहीद कौन है—आईपीएस पूरन कुमार या एएसआई संदीप लाठर? दोनों ही अपने-अपने स्तर पर सिस्टम से लड़ते हुए हार गए। अगर कोई पुलिसकर्मी अपने अफसरों से न्याय की उम्मीद खो दे, तो वह किससे उम्मीद करेगा?
इस पूरे घटनाक्रम में मुख्यमंत्री नायब सैनी और डीजीपी ओपी सिंह की जिम्मेदारी बेहद अहम हो जाती है। उच्च स्तरीय जांच तो जरूरी है, लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी है एक ऐसा सिस्टम तैयार करना जो पुलिसकर्मियों के मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा करे। जिला स्तर पर काउंसलिंग सत्र आयोजित किए जाने चाहिए ताकि कर्मचारी अपने तनाव, दबाव और व्यक्तिगत समस्याओं को साझा कर सकें। यदि किसी पुलिसकर्मी की मानसिक स्थिति अस्थिर पाई जाए तो उसे तुरंत मनोवैज्ञानिक सहायता दी जानी चाहिए और जब तक वह पूरी तरह सक्षम न हो, उसे सर्विस रिवॉल्वर न दिया जाए। हरियाणा सरकार को यह भी समझना होगा कि पुलिस सिर्फ कानून लागू करने वाली एजेंसी नहीं, बल्कि समाज का आईना है। जब उसमें दरारें पड़ती हैं, तो समाज की छवि भी टूटती है। पुलिस के भीतर आपसी सहयोग, सम्मान और संवाद की संस्कृति को मजबूत करना बेहद आवश्यक है।

