भारतीय महिला क्रिकेट टीमों के मैच अब मैदान पर, टीवी और ओटीटी प्लेटफॉर्म पर देखे जा रहे हैं और सोशल मीडिया पर भी इसकी चर्चा हो रही है। भारत में कई महिला क्रिकेटर फैन फॉलोइंग के मामले में बड़े सितारों को पछाड़ रही हैं। हाल ही में भारतीय महिला टीम ने इंग्लैंड की टीम को हराकर अंडर-19 विश्व कप जीता था। अब महिला आईपीएल (डब्ल्यूपीएल) महिला क्रिकेट में एक नया अध्याय जोड़ रहा है। कभी ‘महिलाएं स्कर्ट में क्रिकेट खेलती कैसी दिखेंगी’ देखने आने वाले दर्शक अब भारतीय महिला क्रिकेटरों को खेलते देखने के लिए हजारों की तादाद में टिकट खरीदते हैं।
‘अंतर्राष्ट्रीय एक दिवसीय क्रिकेट मैच में दोहरा शतक बनाने वाला पहला खिलाड़ी कौन है?’ इस सवाल का जवाब अपने आप मिल जाता है, ‘सचिन तेंदुलकर’। लेकिन, सचिन तेंदुलकर से पहले यह रिकॉर्ड आॅस्ट्रेलिया की बेलिंडा क्लार्क ने 1997 में मुंबई में हुए वर्ल्ड कप में डेनमार्क के खिलाफ हासिल किया था। माना जाता है कि इयान बॉथम 1980 में मुंबई में भारत के खिलाफ एक टेस्ट में ‘एक ही मैच में शतक बनाने और एक ही मैच में दस विकेट लेने‘ वाले पहले खिलाड़ी थे; लेकिन पहली बार ये कारनामा ‘लेडी ब्रैडमैन‘ के नाम से मशहूर आॅस्ट्रेलिया की बेट्टी विल्सन ने 1958 में इंग्लैंड के खिलाफ किया था।
क्रिकेट इतिहास का पहला विश्व कप 1975 में पुरुषों द्वारा नहीं, बल्कि 1973 में महिलाओं द्वारा खेला गया था, जिसमें इंग्लैंड ने विश्व कप जीता था। क्रिकेट के इतिहास में पहला टी20 अंतरराष्ट्रीय मैच भी आॅस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की पुरुष टीमों के बीच नहीं, बल्कि 5 अगस्त 2004 को इंग्लैंड और न्यूजीलैंड की महिला टीमों के बीच हुआ था। पुरुष क्रिकेट महिला क्रिकेट और उसके इतिहास पर भारी पड़ गया है क्योंकि हमारे पास पुरुषों के क्रिकेट के साथ पूरे दर्शक, ग्लैमर, स्टारडम और परिणामी टीआरपी हैं। लेकिन, आज स्थिति तेजी से बदल रही है। ऐसा लगता है कि अब हम लैंगिक समानता के एक नए युग में प्रवेश कर रहे हैं। बीसीसीआई ने पुरुष और महिला खिलाड़ियों के बीच भेदभाव को खत्म करने के लिए पहला कदम उठाया है और भारतीय क्रिकेट में वेतन समानता नीति लागू की है।
महिलाओं और पुरुषों के बीच वेतन के मामले में कोई भेदभाव नहीं है।सभी को समान मैच फीस यानी वेतन मिलता है। भारतीय महिला क्रिकेट टीम के उच्च प्रदर्शन ग्राफ, दर्शकों की लोकप्रियता, बीसीसीआई द्वारा महिला क्रिकेटरों को दिए जाने वाले प्रोत्साहन के कारण टीवी प्रसारक भी अब महिला क्रिकेट को गंभीरता से लेने लगे हैं। आज, महिला क्रिकेटर स्मृति मंधाना, जेमिमा रोड्रिग्स और शेफाली वर्मा शाहरुख खान के साथ टीवी विज्ञापनों में दिखाई देती हैं। अब बीसीसीआई ने महिला आईपीएल (डब्ल्यूपीएल) टूनार्मेंट शुरू कर दिया है। यह महिला क्रिकेट का नया युग है। वायकॉम 18 ने 951 करोड़ रुपये में पांच साल के लिए महिला आईपीएल के प्रसारण अधिकार हासिल किए हैं। कंपनी हर मैच के लिए बीसीसीआई को करीब 7.09 करोड़ रुपए देगी। दिलचस्प बात यह है कि इस टूनार्मेंट की नीलामी में स्मृति मंधाना पर 3.40 करोड़ रुपये की बोली लगी, जो पाकिस्तान सुपर लीग में पाकिस्तान के कप्तान बाबर आजम के वेतन का ढाई गुना है। लिहाजा देखा जा सकता है कि भारतीय महिला क्रिकेट आज सुनहरे दौर से गुजर रही है।
लेकिन भारतीय महिला क्रिकेट के हमेशा अच्छे दिन नहीं रहे। भारतीय महिला क्रिकेट ने बहुत कठिन समय का सफर तय किया है। आज उन्होंने अपने रास्ते की सभी बाधाओं को दूर कर अपनी एक अलग पहचान बनाई है। महिला क्रिकेट के इतिहास पर नजर डालें तो पहला क्रिकेट मैच 26 जुलाई 1745 को इंग्लैंड में ब्रामली और हैम्बल्डन की महिला क्रिकेट टीमों के बीच दर्ज किया जाता है। 1887 में, यॉर्कशायर, इंग्लैंड में पहली महिला क्रिकेट क्लब ‘व्हाइट हीदर क्लब‘ की स्थापना की गई थी। बाद में महिला क्रिकेट आॅस्ट्रेलिया, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका और न्यूजीलैंड में खेला जाने लगा। 1926 में पहली ‘महिला क्रिकेट एसोसिएशन‘ बनाई गई; लेकिन एसोसिएशन को 1929 में लॉर्ड्स में ‘महिला मैच‘ खेलने की अनुमति नहीं दी गई थी। बाद में आॅस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ने भी अपने महिला क्रिकेट संघ की स्थापना की।
पहला अंतरराष्ट्रीय महिला टेस्ट क्रिकेट मैच 1934 में इंग्लैंड और आॅस्ट्रेलिया के बीच खेला गया था। इस सीरीज को इंग्लैंड की टीम ने 2-1 से जीता था। अंतर्राष्ट्रीय महिला क्रिकेट परिषद की स्थापना 1958 में दुनिया भर में महिला क्रिकेट के प्रसार के बाद की गई थी। जबकि महिला क्रिकेट पूरी दुनिया में गति प्राप्त कर रहा था, भारत में स्थिति अलग थी। 1970 के दशक की शुरूआत में भारत में कुछ ही उत्साही महिला क्रिकेटर थीं। देश में महिला क्रिकेट के लिए कोई आधिकारिक संगठन नहीं था और उनके खेल देखने के लिए कोई दर्शक नहीं था। उस समय क्रिकेट को केवल पुरुषों का खेल माना जाता था।
भारत में आज भी लड़कियों का क्रिकेट खेलना आम बात नहीं है। हम कल्पना कर सकते हैं कि उस जमाने में लड़कियों के लिए घर से क्रिकेट खेलने की इजाजत लेना कितना मुश्किल होता होगा। उस समय, उनका मैच भरने के लिए महिला टीम बनाने का विचार दूर की कौड़ी था। लेकिन, उस मुश्किल वक्त में भी एक शख्स ने महिला क्रिकेट के लिए पहल की। उस शख्स का नाम था ‘महेंद्र कुमार शर्मा’। उन्होंने लखनऊ में लड़कियों की टीमों का गठन किया, उनके लिए प्रशिक्षण प्राप्त करने की व्यवस्था की और उनके मैचों का आयोजन किया। 50 साल पहले वे रिक्शे में हाथ में माइक्रोफोन लेकर ‘कन्याओं की क्रिकेट होगी, जरूर आना’ चिल्लाते हुए गांव में घूमते थे। उन्होंने लखनऊ के क्वीन्स एंग्लो संस्कृत कॉलेज के छोटे से मैदान में शनिवार को महिला क्रिकेट मैच खिलवाया था।इस मैच के लिए सिर्फ 200 दर्शक ही जमा हुए थे। उस मैच के लिए जिस स्कोरर को बुलाया गया था वह समय पर नहीं आया। तब उस मैच के लिए दर्शक बनकर आए एक लड़के शुभंकर मुखर्जी को स्कोरर की भूमिका निभानी पडी थी। शर्मा ने महिला क्रिकेट को बढ़ावा देने के लिए कड़ी मेहनत की। वह पुरुष क्रिकेट की तरह ही महिला क्रिकेट में सम्मान, प्रतिष्ठा और प्रसिद्धि लाने के उद्देश्य से मैचों का आयोजन करते थे। 1973 में, उनकी पहल पर, ‘भारतीय महिला क्रिकेट संघ’ की स्थापना की गई।
भारतीय महिला क्रिकेट संघ की अध्यक्ष प्रमिला चव्हाण (महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री श्री पृथ्वीराज चव्हाण की मां) ने महेंद्र कुमार शर्मा के साथ मिलकर भारत में महिला क्रिकेट के प्रसार में योगदान दिया। इन प्रतियोगिताओं के आयोजन में धन की कमी थी; लेकिन महेंद्र कुमार शर्मा ने महिला क्रिकेट को जारी रखने के लिए बढ़ावा देने के लिए लखनऊ में अपनी पैतृक संपत्ति तक बेच दी। 1975 में आॅस्ट्रेलिया की अंडर 25 टीम ने भारत का दौरा किया। उनके बीच पुणे, दिल्ली और कलकत्ता में तीन टेस्ट मैच खेले गए। इस बार भारतीय महिला टीम के कोच पूर्व भारतीय कप्तान लाला अमरनाथ थे। इस सीरीज के तीनों टेस्ट मैच ड्रा रहे थे। अगले वर्ष 31 अक्टूबर 1976 को, भारतीय महिला टीम ने बैंगलोर एम चिन्नास्वामी स्टेडियम में वेस्ट इंडीज के खिलाफ अपना पहला अंतरराष्ट्रीय मैच खेला। 1978 को ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला क्रिकेट परिषद’ ने आधिकारिक तौर पर भारतीय महिला क्रिकेट संघ को मान्यता दे दी।
2006 में, अंतर्राष्ट्रीय महिला क्रिकेट परिषद का आईसीसी में विलय हो गया, जिसके बाद भारतीय महिला क्रिकेट संघ का भी बीसीसीआई में विलय हो गया। वहीं से महिला क्रिकेट का तेजी से विकास हुआ। डायना एडुल्जी के नेतृत्व में महिला क्रिकेट में उनके नेतृत्व में कई सकारात्मक बदलाव देखे गए हैं। महिला क्रिकेट बीसीसीआई से जुड़ने के बाद उन्होंने महिला क्रिकेट के लिए काफी काम किया। भारतीय महिला क्रिकेट टीम अब तक 2005 और 2017 के विश्व कप के फाइनल में पहुंच चुकी है। पुरुष क्रिकेट और महिला क्रिकेट के बीच कुछ तकनीकी अंतर हैं। महिला क्रिकेट मैच में सीमा रेखा पुरुष क्रिकेट मैच में सीमा रेखा से छोटी होती है। महिला क्रिकेट में इस्तेमाल की जाने वाली गेंद (140 – 151 ग्राम) पुरुषों के क्रिकेट मैच (155.9 – 163 ग्राम) में इस्तेमाल होने वाली गेंद से वजन में हल्की होती है। पुरुष क्रिकेट में मैदान का भीतरी घेरा 30 गज का होता है और महिला क्रिकेट में यह 25 गज का होता है। महिला टेस्ट मैच चार दिन लंबे होते हैं और प्रत्येक दिन 100 ओवर फेंके जाते हैं। यह कुछ तकनीकी अंतरों को छोड़कर पुरुषों और महिलाओं के क्रिकेट के अन्य सभी नियम समान है।
भारतीय महिला क्रिकेट टीमों के मैच अब मैदान पर, टीवी और ओटीटी प्लेटफॉर्म पर देखे जा रहे हैं और सोशल मीडिया पर भी इसकी चर्चा हो रही है। भारत में कई महिला क्रिकेटर फैन फॉलोइंग के मामले में बड़े सितारों को पछाड़ रही हैं। हाल ही में भारतीय महिला टीम ने इंग्लैंड की टीम को हराकर अंडर-19 विश्व कप जीता था।
अब महिला आईपीएल (डब्ल्यूपीएल) महिला क्रिकेट में एक नया अध्याय जोड़ रहा है। कभी ‘महिलाएं स्कर्ट में क्रिकेट खेलती कैसी दिखेंगी’ देखने आने वाले दर्शक अब भारतीय महिला क्रिकेटरों को खेलते देखने के लिए हजारों की तादाद में टिकट खरीदते हैं। स्मृति मंधाना, हरमनप्रीत कौर, दीप्ति शर्मा, ऋचा घोष, जेमिमा रोड्रिग्स, शेफाली वर्मा जैसी भारतीय खिलाड़ियों पर करोड़ों की बोली लग रही है और दुनिया भर से महिला क्रिकेटर ‘महिला प्रीमियर लीग‘ नामक भारतीय टूर्नामेंट में खेलने आती हैं। यह सब यात्रा अद्भुत है। अपनी खुद की संपत्ति बेचकर भारतीय महिला क्रिकेट की नींव रखने वाले महेंद्र कुमार शर्मा, जिन्होंने रिक्शे से हाथ में माइक्रोफोन लिया और पूरे गांव में ‘कन्याओं की क्रिकेट होगी, जरूर आये।’ के नारे लगाने वाले आज हमारे साथ नहीं है। उनकी इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प को सलाम!