Tuesday, October 22, 2024
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कैसे बढ़े स्कूलों में छात्रों की संख्या? जब…

  • अधिकतर बच्चे आर्थिक स्थिति के कारण काम करने लगे
  • डीबीटी योजना के साकारात्मक नतीजे नहीं

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: प्रदेश में सरकारी स्कूलों में बच्चों की हर साल घटती संख्या पर शिक्षा विभाग चिंतित है। बच्चों का पलायन रोकने के लिए सर्व शिक्षा अभियान और राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान ने प्लान तैयार किया है, ताकि बच्चें प्राइवेट स्कूलों के बजाय सरकारी स्कूलों में ही पढ़ें।

योजना को सफल बनाने के लिए पालकों की भी सहायता ली जा रही है। इसके लिए शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में सरकार शिक्षण व्यवस्था को सुधारने के लिए तमाम प्रयास कर रही है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा के नाम पर करोड़ों खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन शिक्षा के बिगड़े हालात में अब तक कोई सार्थक परिवर्तन नहीं आया है।

इन स्कूलों में गिर रहे शिक्षा के स्तर के चलते ही अब तक छात्र छात्राओं ने निजी स्कूलों की ओर रुख करना शुरू कर दिया है। यही कारण है कि नगर में सरकारी स्कूलों की अपेक्षा निजी स्कूलों में छात्र संख्या दोगुनी हो गई है। एक ओर जहां सरकारी स्कूलों में गुणवत्ताहीन शिक्षा और शिक्षकों की उदासीनता के चलते जहां लगातार छात्र संख्या घट रही है, वहीं निजी स्कूलों का प्रभाव दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।

सबसे बड़ा सवाल यही है कि उन गरीब परिवार के बच्चों का भविष्य कैसे संवरेगा जिनके पालक व अभिभावक अपने बच्चों को निजी स्कूल में पढ़ाने में असमर्थ हैं। शिक्षा विभाग के अधिकारी साक्षरता के आंकड़ों की बाजीगरी में ही खुश नजर आ रहे हैं, लेकिन इन अधिकारियों को इस बात से कोई मलाल नहीं कि सरकारी स्कूलों की शिक्षा का स्तर बद से बदतर होता जा रहा है। आखिर सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर में सुधार लाने की जवाबदेही कब तक और कौन लेगा यह सबसे बड़ा प्रश्न है।

प्राथमिक विद्यालय प्रभात नगर में कुल 98 छात्र है, लेकिन शुक्रवार को केवल 40 ही उपस्थित मिलें। यहां पर चौथी व पांचवीं कक्षा के अधिकतर छात्र कोरोना काल में पैदा हुई आर्थिक तंगी के कारण अब काम करने जाते हैं। स्कूल के शिक्षक छात्रों के घर जाकर परिजनों से बच्चों को स्कूल भेजने को कहते हैं, लेकिन अधिकतर परिजनों का जवाब होता है कि उनके बच्चे अब काम करने लगे हैं।

12 साल तक के बच्चे किसी न किसी जगह नौकरी करने जाने लगे हैं। कई बार परिजनों को फोन किया जाता है तो बताया जाता है कि बच्चों को ला रहे है, लेकिन लाते नहीं है। वहीं, इस संबंध में बीएसए योगेन्द्र कुमार का कहना है कि स्कूलों में सफाई कर्मचारी की जिम्मेदारी पंचायत की है। बाकी जो काम है, वह शिक्षक किसी तरह मेनेज करते है।

परिजनों के साथ मीटिंग का प्रावधान है, शिक्षक घरों पर भी जाते है। डाटा मेंटेन करना टीचरों की नौकरी का ही हिस्सा है, विभाग कोई अलग से काम नहीं लेता है। उनकी नौकरी का समय छह घंटे का है तो तैयारी करके जानी चाहिए। पढ़ाई में प्वाइंट-टू-प्वाइंट तैयारी करानी चाहिए।

टीचरों पर तीन तरह के रजिस्टर मेंटेन करने का दबाव

छात्रों को पढ़ाने से अधिक दबाव उनके रिकार्ड मेंटेन करने का रहता है। पाठ योजना, शिक्षण योजना व ई-पाठशाला के रूप में तीन तरह के रजिस्टरों कोे मेंटेन करने की जिम्मेदारी भी टीचरों की ही है। शिक्षक डायरी व लाइब्रेरी से किताबे लेकर छात्रों को देने का भी रिकार्ड मेंटेन करना पड़ता है। प्राथमिक विद्यालय कसेरू बक्सर में पहली से पांचवीं तक के कुल 110 छात्र है। गुरुवार को यहां पर 52 छात्र उपस्थित रहे। जिनमें से कई छात्र कोरोना काल के बाद पहली बार विद्यालय आए थे। बताया जा रहा है कि जब परिजनों को बच्चों को स्कूल भेजनें के लिए फोन किया जाता है तो उनके फोन में इनकमिंग कॉल तक बंद होती है।

स्कूलों में नहीं है सामान्य सुविधाएं

सरकारी स्कूलों में सामान्य सुविधाएं जैसे सफाई कर्मचारी, चपरासी, चौकीदार व मेट जैसे कर्मचारियों की भी नियुक्तियां नहीं है। ऐसे में इनके सभी कामों की जिम्मेदारी भी स्कूल इंचार्ज पर ही है। शिक्षकों से केवल पढ़ाई का ही काम लिया जाए तो काफी हद तक बच्चों की पढ़ाई का स्तर अच्छा हो सकता है।

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