एक बार राष्ट्र संत तुकडोजी महात्मा गांधीजी के आश्रम में कुछ समय के लिए रहने आए। वह उनके प्रार्थना-कीर्तन में सम्मिलित होते और उनसे विचार-विमर्श करते थे। अहिंसा के अपने मूलभूत सिद्धांत को व्यक्त करने के लिए एक दिन बापू ने उन्हें एक कहानी सुनाई। एक गरीब आदमी था और एक पैसे वाला। दोनों के ही घर आसपास थे। एक दिन गरीब के घर में चोर आ गए। गरीब की आंख खुल गई। उसने देखा कि चोर इधर-उधर परेशान होकर चीजें खोज रहे हैं। वह उठा और बोला, आप क्यों परेशान होते हैं। मेरे पास जो कुछ है, वह मैं अपने आप लाकर दिए देता हूं। इतना कहकर उसके पास जो दस-पांच रुपए थे, वे उनके हवाले कर दिए। चोरों ने उस आदमी की ओर अचरज से देखा और रुपये लेकर चलते बने। मगर, उतने से चोरों का मन नहीं भरा। वे तत्काल धनी आदमी के यहां पहुंचे। वह पहले से ही जाग रहा था। उसने उनकी बातें सुन ली थी। सोचा, जब गरीब ऐसा कर सकता है तो वह क्यों नहीं कर सकता है। उसने चोरों से कहा, आप लोग बैठो। मेरे पास जो कुछ है, वह मैं तुम्हें दिए देता हूं। फिर उसने अपनी जमा-पूंजी लाकर उनके सुपुर्द कर दी। चोरों को काटो तो खून नहीं। उनके अंदर राम जाग उठा। चोरी का सारा माल छोड़कर वे चले गए और अपना चोरी का धंधा त्यागकर साधु बन गए। यह कहानी सुनाकर महात्मा गांधी ने कहा, मैं भी इसी तरह दुनिया के हृदय से हिंसा को निकालकर उसमें अहिंसा का भाव भर देना चाहता हूं, क्योंकि मैं जानता हूं की हिंसा की भूख अहिंसा से ही मिटेगी।
-प्रस्तुति: राजेंद्र कुमार शर्मा
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