शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसके पेट में कभी दर्द नहीं उठा होगा। अक्सर दर्द भोजन की लापरवाही के कारणों से होता है। प्राय: पेट में उठने वाले दर्द चूर्ण व हींग आदि की गोली के खाने से ठीक हो जाया करते हैं लेकिन कुछ दर्द ऐसे होते हैं जो गंभीर रोगों के कारण होते हैं तथा वे तब तक ठीक नहीं होते, जब तक उनकी पहचान और उपचार न हो। ज्ञातव्य है कि पेट दर्द स्वयं में कोई बीमारी न होकर कुछ अन्य बीमारियों के ही लक्षण हुआ करते हैं। इस लेख में पेट दर्द के प्रकार और उनके कारणों से संबंधित जानकारियों को प्राप्त करेंगे।
आंव एवं पेचिश के कारण दर्द
आंतों में कीड़े एवं जीवाणुओं के कारण अक्सर पेचिश हो जाती है जिससे आंव निकलने लगता है। बच्चों में यह बीमारी अधिक होती है। अगर ठीक से उपचार न हो तो इससे आमाशय का कैंसर भी हो सकता है। इसमें पेट के निचले भाग में दर्द एवं मरोड़ उठती रहती है।
बढ़े हुए अम्ल के कारण दर्द
कभी-कभी आमाशय का अम्ल अन्न-नली में रिसकर पहुंच जाता है जिसके कारण वहां जलन के साथ-साथ दर्द भी होता है तथा कभी कभी दायीं ओर पसली के नीचे तेज मरोड़ भी होने लगती है, साथ ही उल्टियां भी होती हैं। यह दर्द पेट के ऊपरी हिस्से के बीच में आमाशय में बढ़े अम्ल के कारण होता है जिसे एसिडिटी या अम्लीयता के नाम से जाना जाता है। भोजन में गड़बड़ी के कारण कभी-कभी आमाशय में घाव भी पड़ जाते हैं जिससे पेट में जलन भी होने लगती है।
मासिक धर्म के कारण दर्द
मासिक धर्म की अनियमितता, अधिकता या अल्पता के कारण से भी पेट में दर्द उठ जाता है। यह दर्द अधिकांशत: पेडू के समीप उठता है जो नाभि तक जाकर अपना क्षेत्र बनाये रखता है। इस प्रकार के दर्द में पेट में मरोड़ उठने लगता है। कभी-कभी पैखाने की अधिकता या कब्ज का सामना भी करना होता है। इस प्रकार का दर्द मासिक धर्म के शुरूआत से लेकर अन्त तक कभी भी उठ सकता है। युवतियां व महिलाएं इस दर्द से अधिक पीड़ित पायी जाती हैं।
पित्ताशय में संक्रमण के कारण दर्द
पाचन क्रि या के दौरान पित्ताशय पित्त को अंतड़ियों में पहुंचा देता है परंतु यह आशंका बनी रहती है कि कहीं पित्ताशय में जाकर पथरी न बन जाए। इसका कारण कोलेस्ट्राल की पित्त में अधिकता है, जिससे अघुलनशील कण असंतृप्त और घनीभूत होकर जमने लगते हैं और पथरी का रूप धारण कर लेते हैं। इससे पेट के ऊपरी भाग में बहुत तेज दर्द उठता है तथा बुखार एवं उल्टी आने लगती है। जब पथरी पित्ताशय के मुंह पर आकर पित्त को रोक देती है तो संक्र मण होने का भय रहता है। कभी-कभी पथरी पित्त नलिका में जाकर पित्त के प्रवाह को रोक देती है जिससे पीलिया (जॉण्डिस) हो जाता है।
अपेन्डिक्स के कारण दर्द
यह पेट के दायीं ओर निचले हिस्से में स्थित होता है। प्रारम्भ में इसका दर्द नाभि के आस-पास ही महसूस होता है किंतु धीरे-धीरे यह पेट के निचले भाग में दायीं ओर स्थानांतरित हो जाता है। दर्द बहुत तेज होता है तथा बुखार व उल्टी होने की संभावना भी बढ़ जाती है। अपेन्डिक्स का आॅपरेशन समय पर न होने से वह पेट में फट भी सकता है। इसके फटने से समूचे शरीर में जहर फैल जाता है तथा रोगी की मृत्यु तक हो सकती है।
भित्तीय दर्द
यह दर्द आमाशय की भित्ति में होता है। रोगी स्वयं उंगली रखकर चिकित्सक को यह बता सकता है कि दर्द कहां हो रहा है। अपेन्डिक्स के सूजन पर या पथरी के सूजन पर इस प्रकार के दर्द पेट में उठ सकते हैं। अपेन्डीसाइटिस, पित्ताशय, जिगर व गुर्दे की सूजन से पेट के विशेष भाग में दबाने से दर्द हो सकता है। इसे डाक्टरी भाषा में टेंडरनेस कहते हैं। गर्भाशय व डिंबवाहिनी की सूजन में भी पेट के निचले हिस्से में दबाने से दर्द हो सकता है।
गुर्दे का दर्द
यह दर्द पथरी व गुर्दे की सूजन के कारण होता है। शुरू में जब गुर्दे पथरी को बाहर निकालने की चेष्टा करते हैं तो बहुत तेज दर्द होता है। यह पेट के निचले भाग से होकर आगे रानों की ओर पहुंच जाता है जिससे रोगी तेज दर्द के कारण छटपटाने लगता है। इस दर्द से छुटकारा दिलाने के लिए रोगी को इंजेक्शन लगाने होते हैं।
अल्सर का दर्द
अगर खाली पेट होने पर पेट में दर्द उठता है और कुछ खा लेने के बाद शान्त हो जाता है तथा दो-ढाई घंटे बाद फिर होने लगता है तथा ठंडा दूध पीने से दब जाता है तो शायद यह अल्सर का दर्द है। अल्सर के दर्द में रोगी को खट्टी डकारें आती हैं तथा सुबह के समय छाती में जलन भी होती है। पेप्टिक अल्सर जब फटता है तो पेट में बहुत तेज दर्द होने लगता है।
अग्नाशय के संक्र मण का दर्द
अग्नाशय के दो मुख्य कार्य होते हैं-इंसुलिन स्रावित करना तथा पाचन के लिए अग्नाशय से रस को रिसाना। अग्नाशय में जलन होने से उदर मध्य के पीछे की ओर तेज दर्द होता है जिसका मुख्य कारण पथरी द्वारा नलिका का अवरोध होता है। इसका तुरंत उपचार कराना आवश्यक है।
गैस-अपचन का दर्द
पेट में गैस बनने से बेचैनी होती है। पेट में कभी-कभी गुडगुड़ाहट, कभी शूल-सा दर्द होता है। बार-बार उबकाई आती है। डकारों द्वारा जो वायु बाहर निकलती है, वह दुर्गन्धपूर्ण होती है। यह गैस अगर निकलती नहीं है तो छाती व पसलियों में भयंकर दर्द पैदा करती है। कभी-कभी यह गैस मस्तक में चढ़ जाती है, जिससे चक्कर, मूर्च्छा आदि तक आ जाते हैं। गैस के मरीज को दिल के पास अक्सर दर्द बना रहता है।
ग्रहणी का दर्द
पाकस्थली, जिसे ग्रहणी नाड़ी भी कहा जाता है, में जब कोई विकार उत्पन्न हो जाता है तो तरह-तरह के उदर रोग उत्पन्न होने लगते हैं। उन्हीं में से ग्रहणी एक कष्टसाध्य उदर रोग है। इस बीमारी के होते ही कमर, पसली, पु_े, गर्दन और आंखों की रोशनी कम होने लगती है तथा उल्टी और दस्त का होना जारी रहता है। कमर के पास लगातार पीड़ा होते रहना इसका प्रमुख लक्षण है।
इस प्रकार उदर रोग पीड़ा (पेट दर्द) का कोई एक निश्चित कारण नहीं होता है। लक्षणों के अनुसार अपने पेट-दर्द के वास्तविक कारण को जानकर अविलंब चिकित्सा हेतु तत्पर होना चाहिए। लापरवाही घातक सिद्ध हो सकती है।
परमानंद परम