- दवाई खरीदते समय बिल नहीं लेने से ग्राहकों को हो सकता है भारी नुकसान
- बिल लेने से नकली दवा की बिक्री पर लग सकती है रोक
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: बाजार में सस्ती दवाइयां खरीदने के लालच में ग्राहक अक्सर मेडिकल स्टोर्स से बिल नहीं लेते जबकि उन्हें टैक्स समेत पूरा पैसा चुकाना पड़ता हैं। ऐसे में बिना बिल के दवाएं खरीदने पर ग्राहकों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता हैं।
बिना बिल की दवाइयां मरीजों पर अगर किसी तरह का साइड इफेक्ट डालती हैं तो इसके लिए दुकानदार जिम्मेदार नहीं होगा। वहीं बिल न लेने की वजह से सरकार को भी जीएसटी वसूली का घाटा उठाना पड़ता हैं। दवा कारोबार से जुड़े व्यापारियों ने इसे बड़ी चूक बताया हैं।
विपिन बंसल: दवा कारोबारी का कहना है कि मेडिकल स्टोर्स से दवाएं खरीदनें के बाद बिल नहीं लेना एक बड़ी चूक हैं। इससे नकली दवाइयों की बिक्री को बढ़ावा मिलता हैं। जो दुकानदार बिल नहीं देता है वह सीधे तौर पर उसके द्वारा बेची जा रही दवाई की गुणवत्ता से खुद को अलग कर लेता है। अक्सर लोग दवा तो खरीद लेते है लेकिन मामूली सी छृूट के कारण उनका बिल नहीं लेते। इसके साथ ही दवा बेचने वाले कारोबारी ग्राहकों को बिल नहीं लेने पर कीमतो में छूट देने का लालच देते हैं।
मामूली से लालच में पड़कर ग्राहक बिल नहीं लेता जिसका खामियाजा उसे दवा की गुणवत्ता के साथ समझौता करके भुगतना पड़ता हैं। कभी भी किसी दवाई के सेवन से यदि मरीज की हालत बिगड़ती है तो उसके लिए कोई भी जिम्मेदार नहीं होगा। क्योंकि दवा कहां से खरीदी गई है इसका कोई प्रमाण मरीज के पास नहीं होता हैं।
रजनीश कौशल: मेरठ केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन के महामंत्री का कहना है दवा का बिल नहीं लेने के पीछे सबसे बड़ी वजह है जीएसटी की चोरी। दुकानदार बिल नहीं देकर अपना तो फायदा कर लेता है लेकिन उसे ग्राहकों की कोई परवाह नहीं होती। यदि ग्राहक बिल लेता है तो इससे यह प्रमाण हो जाता है कि दुकानदार के पास लाइसेंस हैं। इसके साथ ही बिल लेने से कोई भी दुकानदार एक्सपायर दवाएं नहीं बेच सकता क्योंकि बिल में दवा का बैच नंबर व एक्सपाइयरी की तारीख दर्ज होती हैं।
इससे यह बात साफ हो जाती है कि दुकानदार जो दवा बेच रहा है उसकी गुणवत्ता पर सवाल नहीं है। सबसे बड़ी बात कि मरीज डाक्टरों को फीस देते है, टैस्ट करानें पर भी पैसा खर्च करते है तो बिल पर 5 या 10 प्रतिशत टैक्स देनें से बचनें के लिए अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ करते हैं। जितना पैसा मरीज डाक्टरों फीस व टैस्ट करानें पर खर्च करता है वह सभी जीरो हो जाता है। इसलिए मामूली सी छूट का लाभ लेने के चक्कर में बड़ा नुकसान न होने दे।
बंटी: जनऔषधी केन्द्र संचालक का कहना है वह किसी भी दवा को बेचते समय उसका बिल जरूर काटते हैं। यह बात अलग है कि ग्राहक उनसे बिल लेता है या नहीं। इसका फायदा ग्राहकों को भी होता है क्योंकि उनके यहां से खरीदी गई दवा का बिल बनने के बाद उसका रिकार्ड उनके सिस्टम में सेव हो जाता हैं। भविष्य में यदि मरीज को फिर से उसी दवा की जरूरत पड़ती है तो वह आसानी से अपना रिकार्ड देखकर पता कर लेते है कि दवा उनके यहां से ही खरीदी गई हैं। बिल नहीं लेने पर मरीजों को नकली दवाइयां भी बेची जा सकती हैं।
मनोज: दवाइयों के थोक विक्रेता का कहना है वह जब बिल बनाते है रिटेलर के लिए तो उसपर 12 प्रतिशत टैक्स लगाते हैं, लेकिन ग्राहकों द्वारा बिल नहीं लेने पर ग्राहक को भी इस टैक्स से निजात मिल जाती है जो गलत हैं। बिल नहीं लेने पर नकली दवाएं भी बेची जाती है। बिल नहीं देने पर दुकानदार कैसी भी दवाएं ग्राहक को दे सकते है। हालांकि शहर में यह कम होता है, लेकिन देहात क्षेत्र में इसकी संभावना ज्यादा होती है।
वहां पर दुकानदार आसानी से बिना बिल दिए नकली दवाएं बेचते हैं। ड्रग विभाग भी लगातार कोशिश कर रहा है कि नकली दवाओं की बिक्री न हो इसके लिए वह समय समय पर छापेमारी करता रहता हैं। साथ ही रिटेलर को भी अपने ग्राहको को बिल देने के लिए कहना चाहिए। हमारी संस्था इस बात को लेकर लोगो व रिटेलर दुकानदारों को समय समय पर जागरूक करती रहती है कि बिना बिल के कोई दवाई न बेची जाए।