जिन ब्रिटिश शासकों से के विरुद्ध संयुक्त भारत के सभी लोगों ने मिलकर पराधीन भारत को स्वाधीनता दिलाई थी, 1947 में हुए दुर्भाग्यपूर्ण विभाजन के बाद उसी भारत से पाकिस्तान नामक एक नण् राष्ट्र का उदय हुआ। इस्लामी राष्ट्र बनाने से लेकर विश्व इस्लामी जगत में अपना प्रभुत्व स्थापित करने जैसे हवा-हवाई इरादों के परिणामस्वरूप पाकिस्तान का गठन हो गया। वैश्विक राजनीति में किसी राष्ट्र को कमजोर करना, उसकी आंतरिक फूट का लाभ उठाना, उसे कर्ज व आर्थिक सहायता जैसे ‘उपकारों’ से दबाकर रखना, उसे उसी के पड़ोसी के साथ उलझाने यहां तक कि संभव हो तो लड़ाने की साजिश करना आदि राजनायिक भाषा में एक ‘सफल कूटनीति’ समझी जाती है। उसी का अनुसरण करते हुए अंग्रेजों ने हिंदू-मुस्लिम राजनैतिक विवाद को हवा देते हुए भारत विभाजन के लिए खेला। कमोबेश वैसी ही राजनीति 1971 में बंगाली मुसलमानों के हक की आवाज उठाने के नाम पर भारत द्वारा की गई।
पाकिस्तान के विभाजन के लिये भारत ने पूर्वी पाकिस्तान का तब तक साथ दिया जब तक नव राष्ट्र के रूप में बांग्लादेश अस्तित्व में नहीं आ गया। इसी दौर में बंग्लादेश से असीमित संख्या में बंग्लादेशियों ने भारत की ओर शरणार्थी के रूप में कूच किया। भारत पर भारी आर्थिक बोझ पड़ा। और आजतक वही शरणार्थी बांग्लादेशी मुसलमान के नाम से विशेष राजनैतिक विचारधारा के लोगों के लिए राजनीति करने का कारक बने हुए हैं। बांग्लादेश के गठन के बाद पाकिस्तान और विशेषकर वहां के शासक व सेना भारत को अपने सबसे बड़े दुश्मन की नजर से जरूर देखने लगे।
भारत का दूसरा घनिष्ठ पड़ोसी देश नेपाल है। राजशाही समाप्त होने के बाद यहां की लोकतांत्रिक राजनीति में भी उथल पुथल मची रहती है। जिस नेपाल के करोड़ों लोग भारत में रोजगार पाते हैं, जहां के लोग भारतीय सेना सहित भारत की ही अनेक सरकारी व गैर सरकारी नौकरियों में भी सेवा करने का अवसर पाते हों, वही नेपाल कभी-कभी भारत को भी आंखें दिखाने लगता है।
करीबी पड़ोसियों के रूप में भारत और नेपाल के अद्वितीय संबन्ध हैं, जिसमें व्यवसाय, खुली सीमाएं, जनता के बीच रिश्ते-नाते, साहित्य व संस्कृति के गहरे संबन्ध भी हैं। यहां यह जानना भी जरूरी है कि इन संबंधों के बावजूद भी नेपाल की पीठ पर भी चीन का हाथ है जो अपने भारत विरोधी दूरगामी राजनैतिक मकसद के तहत पाकिस्तान की ही तरह नेपाल को भी अपने चंगुल में फंसाना चाहता है।
गत वर्ष नवंबर में नेपाल में हुए संसदीय चुनाव के समय यह आशंका भी जताई गयी थी कि चीन, नेपाल में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी के साथ मिलकर भारत विरोधी साजिशें रच सकता है। हालांकि नेपाल के लोग पाकिस्तान द्वारा भारत के विरुद्ध चीन के साथ मिलकर रची जा रही साजिश से बाखबर जरूर हैं परंतु इसके बावजूद चीन, पाकिस्तान के सहयोग से नेपाल के माध्यम से भारत में अस्थिरता फैलाने का षडयंत्र पूरी ताकत के साथ रच रहा है।
इसी तरह भारत चीन के विवादों का कारण भारत चीन सीमावर्ती अनेक इलाके तो हैं ही परंतु चीन को भारत से सबसे अधिक तकलीफ तिब्बत की स्वायत्ता के मुद्दे पर तिब्बत का साथ देना भी है। चीन अपने आर्थिक संसाधनों और कूटनीति की मदद से दक्षिण एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है। उस की नेपाल पर कुदृष्टि का भी ऐतिहासिक संदर्भ है। चीन के प्रथम कम्युनिस्ट नेता व संस्थापक माओत्से तुंग ने एक बार सार्वजनिक रूप से यह कहा था, तिब्बत हमारी हथेली और लद्दाख ,नेपाल, भूटान, सिक्किम व अरुणाचल प्रदेश यह पाँच उंगलियां हैं।
हथेली तो हमने ले ली है और अब पाँच उंगलियों को भी आजाद कराना है। परंतु चूंकि आज के दौर में परोक्ष रूप से सैन्य शक्ति का प्रयोग कर क्षेत्रीय विस्तार करना बेहद कठिन है इसलिए चीन इन इलाकों को विवादित बनाना तथा यहां अपना प्रभाव बढ़ाकर भविष्य का अपना राजनैतिक व भौगोलिक विस्तार का इरादा जरूर साफ करना चाहता है। दूसरी तरफ इसी के साथ साथ नेपाल में एक नये राष्ट्रवाद का स्वर बुलंद हो रहा है जिसका एक बड़ा हिस्सा भारत विरोधी है।
इन सबके बावजूद वर्तमान भारतीय सत्ता की प्राथमिकता नेपाल का विश्वास जीतने, उसे चीन व पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के कुचक्र से दूर रखने से अधिक इस बात में रहती है कि किसी तरह नेपाल पुन: ‘हिन्दू राष्ट्र’ बन जाए। गत वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जितनी भी नेपाल यात्रायें हुर्इं हैं उनमें उनके तेवर, लिबास, भाव भंगिमा, अंदाज आदि को देखकर इस बात का अंदाजा भी बखूबी लगाया जा सकता है। इससे नेपाल के लोगों का दिल जीतने तथा उससे रिश्ते सुदृढ़ करने या फिर उसे चीन व पाकिस्तान से दूर ले जाने में शायद ही कोई मदद मिले।
अब नेपाल में पोखरा स्थित शालिग्रामी नदी या काली गंडकी से अहिल्या रूपी पत्थर की 6 करोड़ वर्ष प्राचीन बताई जा रही दो विशाल शिलाएं नेपाल से चल कर अयोध्या पहुंचे चुकी हैं। बताया जा रहा है कि संभवत: इन्हीं शिलाओं से बनी मूर्तियां या तो गर्भगृह में रखी जाएंगी अन्यथा राम मंदिर परिसर में कहीं और स्थापित होंगी? हमें केवल पाकिस्तान व नेपाल ही नहीं बल्कि श्री लंका में भी पिछले दिनों हुई उथल पुथल व उनके कारणों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
भारतीय नेतृत्व के समक्ष इन परिस्थितियों में सभी पड़ोसी देशों से सामंजस्य बनाये रखना बेशक एक बड़ी चुनौती है। दुनिया के सभी देशों को यह स्वीकार करना चाहिए कि आखिर पड़ोसी की कमजोरी, उसकी निर्भरता तथा वहां की राजनैतिक अथवा आर्थिक ‘अशांति’ में नहीं, बल्कि पड़ोसी की शांति में ही अपनी भी शांति निहित है।