Tuesday, May 20, 2025
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प्रतिभाओं को धर्म जाति में बांटना गलत परंपरा

SAMVAD


06 23संघ लोकसेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा का कल रिजल्ट आया। भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय विदेश सेवा, भारतीय पुलिस सेवा और केंद्रीय सेवा समूह ‘ए’ और समूह ‘बी’ में नियुक्ति के लिए कुल 933 उम्मीदवारों की अनुशंसा की गई है। अनुशंसित 933 उम्मीदवारों में से 345 सामान्य, 99 ईडब्ल्यूएस, 263 ओबीसी के हैं, 154 एससी, 72 एसटी के हैं। 178 उम्मीदवारों को वेटिंग लिस्ट में रखा गया है। परीक्षा में इशिता किशोर ने एयर एक रैंक हासिल की है। उसके बाद गरिमा लोहिया, उमा हरथी एन और स्मृति मिश्रा रहीं। इस बार खास बात यह की लड़कियों ने परीक्षा में दबदबा कायम किया है। रिजल्ट आते के साथ ही जाति और धर्म के लंबरदारों ने विजयी होने अपनी जाति और धर्म के युवाओं को खोजकर उन्हें बधाई देना शुरू कर दिया। कोई विजयी को ब्राह्मण बता रहा है कोई जाट। कोई चयनित को ठाकुर बताकर बधाई दे रहा है तो कोई सैनी बताकर।

प्रदेश के और जनपद के चयनित युवाओं को भी बधाई दी जा रही है। कोई गांव के लोगों को अपने गांव का बताकर बधाई दे रहा है, तो कोई जिले का बताकर। कहीं अपनी जाति वे विजयी आईएएस को समाज की ओर से सम्मानित करने की बात की जा रही है तो कहीं गांव और जनपद की ओर से। कोई ब्राह्मण समाज की और से बिरादरी के चयनित को सम्मानित करने की बात कर रहा है। तो कोई जाट युवाओं का जाट बिरादरी की ओर से सम्मानित करने के दावे कर रहा है। जाति में भी गोत्र तक की खोज होने लगी। इन चयनित युवाओं में सब अपनी-अपनी बिरादरी के युवा खोजने में लगे हैं। सब अपनी ढपली लिए हैं, अपनी जाति, धर्म और संप्रदाय की माला जपने में लगे हैं। कहीं किसी को बिहार का बताया जा रहा है तो कहीं झारखंड का।

देश के विकास की गाथा लिखने निकले इन युवाओं को जाति और धर्म में बांटा जा रहा है। इन युवाओं को जातियों, धर्म और संप्रदाय में बांटने का जाने-अनजाने किया जा रहा प्रयास बहुत कार्य है। ये समाज को जाति, वर्ग और धर्म में बांटने के षडयंत्र का एक भाग है। हम पहले ही बहुत विभाजित हैं। इस सामज के पहले से ही चले आ रहे विखंडन को ही एकत्र करने के प्रयास के बाद भी ज्यादा कामयाबी नहीं मिल रही। अब ये नई खिंच रही विभाजन की रेखा समाज में और बड़ी खाई पैदा करेगी। इससे बचने और दूर रहने की जरूरत है।

ऐसे लोगों को समझाने की जरूरत है। संघ लोकसेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा के चयनित युवा देश के विकास की गाथा लिखने के लिए आए हैं। सिविल सेवा में वे सभी मैरिट से चुने गए। इनका कार्य देशवासियों को समान रूप से सामाजिक योजनाओं का लाभ दिलाना, बिना भेदभाव के लिए न्याय करना है। नागरिकों के लिए न्याय कर समान रूप से सामाजिक सुविधाएं उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी भी इन्हीं पर आती है। गरीबों को आगे लाकर उन्हें विकास की धारा में शामिल कराने का दायित्व भी इनका ही बनता है। कोई कितना भी सम्मानित करले, बधाई दे ले, ये पद पर आकर वहीं करेंगे, जो इन्हें आदेश होंगे, जो कानून कहेगा, जो सरकार की गाइड लाइन बताएगी।

ये न जाति के प्रभाव में आएंगे, न समुदाए के न धर्म की रेखा इनके निर्णय में बाधा बनेगी। ऐसे में इन्हें जाति, वर्ग और धर्म में बांटना गलत है। ये देश और समाज के हैं। इन्हें उसी का रहने दीजिए। काफी समय से एक बात और तेजी से बढ़ी है। दलित की लड़की से से दुष्कर्म। दुष्कर्म के बाद दलित युवती की हत्या। इस तरह की बात करने वाले, नारे लगाने वाले और खबर लिखने वालों के लिए बताते चलें कि बेटी गांव की होती है, समाज की होती है। वह न दलित की होती है, न सवर्ण की। इस तरह की बात करना भी इसी विखंडन का हिस्सा है।

इसे जितनी जल्दी समझ लिया जाए, उतना ही बेहतर है। ऐसा ही पिछले कुछ समय से देश के शहीद और क्रांतिकारियों के साथ हो रहा है। महात्मा गांधी को बनिया, लाल बहादुर शास्त्री को कायस्थ, कांतिकारी चंद्रशेखर आजाद को ब्राह्मण बताया जा रहा है तो महाराणा प्रताप को राजपूत। महापुरुष, शहीद और कांतिकारी देश और समाज के होते हैं। जाति और धर्म के नहीं। शहीद स्थलों पर सभी धर्म और जाति के लोग जाते तथा श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के नूरपुर में आजादी की लड़ाई में थाने पर ध्वजारोहण करने का प्रयास करते दो युवक प्रवीण सिंह और रिखी सिंह शहीद हुए। ये पूरे समाज के लिए पूज्य हैं, आदरणीय हैं।

इनके शहीद स्थल पर हर साल शहीद मेला लगता है। सभी जाति धर्म के स्त्री-पुरुष इस शहीद स्थल पर आते हैं दीप जलाते हैं और श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। अब इन्हें ठाकुर और चौहान बताकर समाज से दूर किया जा रहा है। इन पर ठाकुर और चौहान अपना हक बताने लगे। ये गलत है। ऐसा करने वालों को समझाना चाहिए, बताया जाना चाहिए कि इससे दूर रहें। हिंदू धर्म के मानने वाले सभी धर्म स्थलों पर जाते हैं, चाहे वह किसी भी समाज के हों। मंदिर की तरह उन्हें बौद्ध मठ, गुरुद्वारे चर्च और पीर-पैगम्बर के स्थान भी पूजनीय हैं, सभी जगह जाते हैं, सभी को मानते हैं और सजदा करते हैं। अगर इन स्थानों को अपने धर्म के लिए ही निर्धारित किया जाएगा, तो गलत ही होगा।

देश के युवाओं, प्रतिभाओं सैनिकों, सेनानियों क्रांतिकारियों, शहीदों और समाज के महापुरुषों को जातियों और धर्म में बांटना समाज के विखंडन की प्रक्रिया का हिस्सा है, ऐसे में इसे रोकिए। समाज को जोड़ने, आगे बढ़ाने के लिए आगे आएंख् बांटने के लिए नहीं।


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