Saturday, July 5, 2025
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विरासत संभालने की पहली परीक्षा में ही फेल हो गए थे जयंत

अमित पंवार |

बागपत: चौधरी परिवार का गढ़ मानी जाने वाली बागपत लोकसभा सीट की विरासत को संभालने की पहली ही परीक्षा में उनकी तीसरी पीढ़ी यानी चौधरी जयंत सिंह फेल हो गए थे। चौधरी चरण ने यहां से तीर बार विजयी हासिल की और फिर उनके बेटे चौधरी अजित सिंह ने छह बार जीत का रिकॉर्ड बनाया। चौधरी अजित सिंह ने बागपत लोकसभा की पैतृक सीट पर विरासत को संजोने के लिए 2019 के चुनाव में अपने बेटे चौधरी जयंत सिंह को उतारा था, लेकिन वह यहां अपना पहला ही चुनाव भाजपा से हार गए थे। चौधरी परिवार यही नहीं उसके बाद वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में भी रालोद बागपत में अपनी एक सीट मात्र छपरौली ही बचाने में कामयाब हो पाया था। यानी यहां पहली पीढ़ी से तीसरी पीढ़ी तक पहुंचते-पहुंचते राजनीति के समीकरण ही उनके लिए उलटे पड़ने लगे थे। बागपत लोकसभा सीट पर पहला ही चुनाव हार के बाद चौधरी जयंत सिंह ने इस बार कहीं भी चुनावी मैदान में नहीं उतरने का निर्णय लेकर पार्टी के एक कार्यकर्ता को यहां से प्रत्याशी बनाया है। रालोद इस चुनाव में भाजपा के साथ मिलकर एक अदद जीत की तलाश में है।

बागपत लोकसभा सीट रालोद का गढ़ कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं है। क्योंकि यह सीट चौधरी परिवार के पास रही है। वर्ष 1967 में यह सीट अस्तित्व में आई थी और यहां पहला चुनाव रघुवीर शास्त्री ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीता था। उसके बाद वर्ष 1971 में कांग्रेस के रामचंद्र विकल को यहां से जीत मिली थी। वर्ष 1977 में भारतीय क्रांति दल से चौधरी चरण सिंह चुनावी मैदान में आ गए थे। उन्होंने इस चुनाव में कांग्रेस के रामचंद्र विकल को हराया था। उसके बाद चौधरी चरण सिंह ने वर्ष 1980 जेएनपी के टिकट पर जीत हासिल की थी। 1984 में एलकेडी के प्रत्याशी के रूप में चौधरी चरण सिंह ने जीत दर्ज की थी। चौधरी चरण सिंह ने तीन बार जीत दर्ज कर रिकॉर्ड बनाया था। वह यहां से विजयी होकर प्रधानमंत्री, गृह मंत्री तक बने। प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बने। छपरौली विधानसभा सीट पर उनका कब्जा ऐसा रहा कि आज तक भी इस सीट पर किसी दूसरे दल ने जीत दर्ज नहीं की है। इसी तरह से बागपत लोकसभा सीट भी उनके गढ़ के रूप में स्थापित हो गई थी। चौधरी चरण सिंह ने अपनी इस सीट की विरासत अपने बेटे चौधरी अजित सिंह को सौंपी थी और अजित सिंह ने भी इसे बखूबी निभाया।

चौधरी अजित सिंह ने यहां से वर्ष 1989 में जनता दल को जीत दिलाई थी। उसके बाद वर्ष 1991, वर्ष 1996, वर्ष 1999, वर्ष 2004, वर्ष 2009 में चौधरी अजित सिंह ने ऐतिहासिल जीत दर्ज की थी। वर्ष 1998 में जरूर उन्हें भाजपा से हार के बाद झटका लगा था, लेकिन उसके बाद फिर उन्होंने जीत की हैट्रिक लगाई थी। वर्ष 2014 में चौधरी अजित सिंह के सामने भाजपा ने मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर डॉ. सत्यपाल सिंह को उतारा था। इस चुनाव में चौधरी अजित सिंह तीसरे स्थान पर पहुंच गए थे। वर्ष 2019 के चुनाव में चौधरी अजित सिंह ने अपनी सीट बदल ली और खुद मुजफ्फरनगर चले गए। उन्होंने अपनी पैतृक सीट पर अपने बेटे चौधरी जयंत सिंह को उतारा था। चौधरी जयंत सिंह ने अपना पहला चुनाव 2009 में मथुरा से जीता था। उसके बाद बॉलीवुड अभिनेत्री हेमा मालिनी से वह 2014 का चुनाव हार गए थे।

वर्ष 2019 में चौधरी जयंत सिंह को परिवार की विरासत सीट कही जाने वाली बागपत लोकसभा सीट पर उतारा गया। उनके सामने फिर से उनके पिता को हराने वाले डॉ. सत्यपाल सिंह भाजपा से थे। डॉ. सत्यपाल सिंह ने चौधरी जयंत सिंह को भी मात दे दी और जीत का ताज पहना। देखा जाए तो बागपत लोकसभा सीट का चुनाव कोई आम चुनाव नहीं था। क्योंकि यहां चौधरी परिवार की तीसरी पीढ़ी चुनावी मैदान में जयंत के रूप में थी। जयंत का भी यहां पहला ही चुनाव था, लेकिन वह अपने दादा यानी चौधरी चरण सिंह व पिता चौधरी अजित सिंह की विरासत को पार पाने एवं संभालने की पहली ही परीक्षा में फेल हो गए थे। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में रालोद ने शून्य से संख्या आठ विधायकों की पहुंचाई थी, लेकिन बागपत में महज वही छपरौली सीट रह गई थी। बाकी बड़ौत व बागपत में रालोद फिर से चित हो गई थी। पहला ही चुनाव हारने के बाद इस बार उनके फिर से मैदान में उतरने के कयास लगाए जा रहे थे, लेकिन चौधरी जयंत सिंह खुद चुनावी मैदान से दूर हो गए और यहां एक कार्यकर्ता डॉ. राज कुमार सांगवान को टिकट थमा दिया। बागपत सीट के इतिहास में चौधरी परिवार ने पहली बार अपनी सीट पर पार्टी के कार्यकर्ता को अवसर दिया है।

चौधरी चरण सिंह की कर्म भूमि एवं उनका गढ़ मानी जाने वाली सीट पर जयंत पहली ही परीक्षा में फेल होने के बाद दूसरी बार चुनावी मैदान से दूर हैं। इस चुनाव में फिर से उनकी अग्नि परीक्षा है। हालांकि वह भी अपने प्रत्याशी के विजयी बनाने के लिए लगातार सोशल मीडिया से लोगों को संदेश दे रहे हैं। देखना यह है कि चौधरी परिवार की पैतृक सीट पर इस बार क्या परिणाम आता है?

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