खजुराहो का जिक्र आते ही मन में बहुत से सवाल तैरने लगते हैं। ये मन्दिर कब बने, किसने बनवाए, इनमें इरोटिक मूर्तियों का क्या अर्थ है, यहां बने लक्ष्मण टेंपल, (जो भगवान विष्णु को समर्पित है), और कई मन्दिरों के साथ ज्वारी मन्दिर के पीछे की कथाएं क्या हैं, खजुराहो का इतिहास क्या है, क्यों यहां लगी प्रतिमाओं को ‘काम’ का प्रतीक कहा जाता है…ऐसे और भी बहुत से सवाल मन में उठते हैं। सुनील चतुर्वेदी का उपन्यास ‘खजुराहो का लपका’ प्रकाशक (नियोलिट प्रकाशन,हिमांशु वेलफेयर फाउंडेशन समिति) पढ़ने से पहले लगा कि शायद ये पर्यटन से संबंधित उपन्यास होगा। लेकिन नहीं, वास्तव में यह खजुराहो की बैकग्राउंड में गाइडों के जीवन से जुड़ा उपन्यास है। सुनील चतुर्वेदी खजुराहों के इतिहास और उससे जुड़ी किंवदंतियों को इसमें खोजते दिखाई देते हैं। अमेरिकन टूरिस्ट एना को सबसे पहले गाइड मिलता है श्यामलाल। वह लक्ष्मण मन्दिर के सामने पहुंचकर कहता है, मैम दिस इज द बिगेस्ट टेम्पल आॅफ खजुराहो डेडिकेटेड टू लार्ड विष्णु। यह मन्दिर किंग यशोवर्मन ने 930 से 950 ईसवीं में बनवाया था। इसकी हाइट 100 फीट से भी अधिक है। यह मन्दिर नागर शैली का सबसे खूबसूरत मन्दिर है। उत्तर एवं मध्य भारत में नागर शैली डवलप हुई थी। श्यामलाल एना को विष्णु मन्दिर दिखाता है और बताता है कि इस मन्दिर को बनाने में सात साल तीन महीने लगे थे और खजुराहो के सारे टेम्पल बनाने में तो करीब डेढ़ सौ साल लगे। सोलह हजार कारीगरों, मूर्तिकारों ने इसे बनाया। कारीगर और मूर्तिकार मथुरा से लाए गए थे। वहां एक बड़ा सा प्लेटफॉर्म है और सेंट्रली सिचुएटेड है विष्णु टेम्पल। इस प्लेटफॉर्म के चारों मन्दिर पुरुषार्थ और चार दिशाओं के प्रतीक हैं। दृश्य बदलता रहता है।
एना खजुराहो को सिर्फ देखना नहीं लिखना चाहती है, ऐसा लिखना जो फिल्माया हुआ सा लगे। गाइड बदलता है। अब बीबीसी एना का गाइड है। बीबीसी यानी ब्रजभूषण चन्देल। बीबीसी एना को श्रृंगार करती स्त्रियों की मूर्तियां दिखाता है। दर्पण में खुद को निहार रही स्त्री…पैरों में रंग लगा रही स्त्री…आंख में काजल और पैरों में बिछिया पहन रही स्त्री…गले में मंगलसूत्र पहन रही स्त्री…मेहंदी लगाते समय पुरुष के सामने अपनी खुली पीठ दिखाती स्त्री…श्रृंगार के बहाने अपने सारे अंगों का प्रदर्शन करती स्त्री। बीबीसी और भी बहुत कुछ दिखाता है। वह बताता है कि सुखासन में बैठे व्यक्ति और मन्दिर का पोस्चर एक जैसा है। मन्दिर का गर्भग्रह हमारे पेट की तरह है। बीबीसी बताता है कि खजुराहो के मन्दिरों को सेक्स सिम्बल के रूप में प्रचारित किया गया है, जबकि सेक्स तो इन मन्दिरों में उतना ही दिखाया गया है जितना हिस्सा हमारे जीवन में सेक्स का है। बीबीसी यह भी बताता है कि हमारे शरीर में जो इंद्रियां हैं, वे एक्सट्रोवर्ट हैं। इन्हीं इंद्रियों से काम पैदा हो रहा है। इन मन्दिरों के बाहर भी वही काम मूर्तियों के जरिये दिखाया गया है। लेकिन अंदर गर्भग्रह में कोई इरोटिक मूर्ति नहीं है। क्योंकि ये सेक्स नहीं निवृति के मन्दिर हैं। भोग के बाद ही योग है।
पहले सब भोग लो…काम से पूरी तरह निवृत हो जाओ फिर स्वयं के अन्दर उतरोगे तो परम सत्ता में खुद को विलीन कर सकोगे। इन मन्दिरों का सार यही है कि सम्भोग ही समाधि का प्रवेश द्वार है। बीबीसी अलग-अलग खड़ी अप्सराओं की मुद्राओं का भी वर्णन करता है। बीबीसी एना को खजुराहो की कहानी सुनाता है। यह कहानी शुरू होती है हेमवती और गोपा के प्रेम से। लेकिन हेमवती का पिता गोपा की गर्दन कटवा देता है। हेमवती अपने पिता का घर छोड़कर जंगलों में निकल जाती है। वह एक आश्रम में पहुंचती है। आचार्य बृहस्पति उसे अपनी मानस पुत्री स्वीकार कर लेते हैं। हेमवती एक पुत्र को जन्म देती है। चद्रवर्मन नामक यह पुत्र पहले कालिंजर पर आक्रमण करके विजय प्राप्त करता है और फिर खजुराहो लौटकर एक भव्य मन्दिर का निर्माण करता है, इसे लक्ष्मण मन्दिर के नाम से जाता है। चन्द्रवर्मण के समय से लेकर लगभग डेढ़ सौ वर्षों तक मन्दिर का निर्माण कार्य चलता रहा। इस तरह खजुराहो के मन्दिर निर्माण की कथा पूरी होती है। बीबीसी के सौजन्य से ही एना युधिष्ठर की गुफा….फिर भीम की गुफा…अर्जुन की गुफा…नकुल सहदेव की गुफा की गुफाएं देखती है। सबकी अलग-अलग कहानियां हैं, कथाएं हैं।
लेकिन कथाएं पूरी कहां होती हैं। उपन्यास में एक तरफ खजुराहो से जुड़ी कथाएं हैं तो दूसरी तरफ वहां रहने वाले गाइडों की कथाएं हैं। लपका शब्द का अर्थ होता है लपकने वाला यानी जो अपने हित साधने के लिए पर्यटकों को फौरन लपक ले। अपना मतलब साधने के लिए वह जो भी झूठ सच बोल सकता है, वह बोले। इन गाइडों का एक स्वार्थ यह भी है कि किस तरह विदेशी पर्यटकों को प्रभावित करके,उनसे प्रेम का अभिनय करके उनके साथ ही विदेश निकल ले। बीबीसी-एना, चंदू-चारू, एलिस-मंजू, बबलू-क्लारा की कहानियां प्रेम कहानियां-सी लगती हैं। विदेशी लड़कियों से प्रेम की चाह अधिकांश पुरुष गाइड पाले हुए हैं। मंजू अकेली अकेली ऐसी लड़की है जो किसी विदेशी पुरुष को लपकना चाहती है। उपन्यास का एक अन्य किरदार है प्रौढ़ दीक्षित है। दीक्षित आसपास के युवाओं को दीक्षा देता है। इस बात की दीक्षा कि कैसे अच्छा गाइड बना जा सकता है। उसका मूल मंत्र है गेस्ट इज आॅलवेज राइट। यानी गाइड सच झूठ जो भी कहानियां पर्यटकों को सुना रहा है, पूरे विश्वास के साथ सुनाए। खजुराहो के आसपास की दुनिया भी सजीव दिखाई देती है। किताबों की दुनिया, एंटीक पीसेस और शो पीसेस। सब पर्यटकों को अपना सामान बेचने के लिए प्रयासरत हैं।
कौन किसको लपक रहा है यह उपन्यास पढ़कर ही समझा जा सकता है और यह भी देखा जा सकता है कि किसका प्रेम परवान चढ़ता है। सुनील चतुर्वेदी इस उपन्यास से पहले महामाया, कालीचाट और गाफिल जैसे उपन्यास लिख चुके हैं। कालीचाट पर इसी नाम से फिल्म भी बन चुकी है। कालीचाट को बेस्ट स्टोरी अवार्ड मिल चुका है। उनके पास महीन दृष्टि और संजीदगी है। इस उपन्यास में भी यह दिखाई देती है। उपन्यास में गजब की पठनीयता है। एक बार शुरू करने के बाद आप इसे छोड़ नहीं सकते। ओशो ने कहा था-खजुराहो अनुपम है। अतुलनीय है। खजुराहो के अलावा मैंने कुछ नहीं देखा, जिसे परिपूर्ण कहा जा सके-ताजमहल भी नहीं। ताजमहल केवल एक सुन्दर कलाकृति है। खजुराहो नये मनुष्य का पूरा दर्शन और मनोविज्ञान है। सुनील चतुर्वेदी ने इस दर्शन और मनोविज्ञान को शानदार ढंग से चित्रित किया है।