Thursday, April 25, 2024
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कानून मंत्री रिजिजू ने विधायिका-कार्यपालिका की स्वतंत्रता को बताया न्याय उपलब्ध कराने का तरीका

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जनवाणी ब्यूरो |

नई दिल्ली: कॉलेजियम द्वारा जजों की नियुक्ति की सिफारिशों को तीन से चार हफ्ते में निपटाने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने गहरी नाराजगी जताई है।

निर्देश को अनुचित बताते हुए कानून मंत्री ने कहा कि बेहतर व्यवस्था निर्माण और न्याय उपलब्ध कराने के लिए महज न्यायपालिका ही नहीं कार्यपालिका और विधायिका की स्वतंत्रता भी जरूरी है।

कानून मंत्री ने यह भी कहा कि संविधान के मुताबिक न्यायाधीशों की नियुक्ति का अधिकार सरकार का है। इसमें सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों की भूमिका महज सलाहकार तक ही सीमित है।

लोकसभा में उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश वेतन और सेवा शर्त संशोधन विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कानून मंत्री ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्ति प्रक्रिया को समय सीमा में बांधे जाने पर नाराजगी जताई।

उन्होंने कहा कि देश का संविधान यह कहता है कि जजों की नियुक्ति का अधिकार सरकार के पास है। अगर न्यायपालिका इस तरह का निर्देश देगी तो सरकार को भी संविधान का सहारा लेना पड़ेगा।

विधेयक को मंजूरी

लोकसभा ने बुधवार को उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश वेतन और सेवा शर्तें संशोधन बिल 2021 को ध्वनि मत से मंजूरी दे दी।

इस विधेयक में उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के वर्तमान और सेवानिवृत्त जजों के वेतन और पेंशन को नए सिरे से परिभाषित किया गया है।

इस बिल पर चर्चा के दौरान सभी पक्षों ने कॉलेजियम व्यवस्था को खत्म करने और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग बिल को दोबारा लाने की मांग की।

सभी स्तंभ सांविधानिक सीमाओं में ही रहें तो अच्छा

रिजिजू ने कहा कि सरकार न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं करती। कॉलेजियम की सिफारिश को कभी भी बिना उचित कारण के लटकाया नहीं है। सिफारिशों पर निर्णय लेने से पहले सरकार को कई प्रक्रियाओं से गुजरना होता है।

उन्होंने कहा कि संविधान ने सबके अधिकार क्षेत्र तय किए हैं। जितनी न्यायपालिका की स्वतंत्रता जरूरी है, उतनी ही स्वतंत्रता विधायिका और न्यायपालिका की भी जरूरी है। सिर्फ अदालत के जरिए ही न्याय नहीं होता। न्याय उपलब्ध कराने के मामले में लोकतंत्र के तीनों स्तंभ अपने-अपने तरीके से काम करते हैं।

पद रिक्तियां स्वाभाविक…

इस दौरान कानून मंत्री ने न्यायिक क्षेत्र में खाली पदों को स्वाभाविक बताया। उन्होंने कहा कि हमें नहीं भूलना चाहिए कि नए जज की नियुक्ति के साथ पुराने जज रिटायर भी होते हैं। नियुक्ति और सेवानिवृत्ति का यह सिलसिला समान रूप से आगे बढ़ता है। ऐसे में इन रिक्तियों को पूर्ण रूप से कभी नहीं भरा जा सकता।

न्यायिक आयोग गठन पर फिर मुखर हो सकती है सरकार

हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन के मामले में सरकार नए सिरे से मुखर हो सकती है। लोकसभा में कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने इस आशय का स्पष्ट संकेत दिया।

उन्होंने कहा कि जजों की नियुक्ति के लिए वर्तमान कॉलेजियम व्यवस्था के खिलाफ सभी क्षेत्रों में आवाज उठ रही है। यहां तक कि खुद न्यायिक क्षेत्र से भी आयोग के गठन के समर्थन में आवाज उठ रही है।

कॉलेजियम व्यवस्था को खत्म करने की मांग को लेकर दे रहे जवाब में कानून मंत्री ने कहा कि इस आशय की राय महज संसद की नहीं है। विभिन्न क्षेत्रों से ऐसी ही आवाज उठ रही हैं।

कई सेवानिवृत्त जज, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन भी कह रहा है कि जजों की नियुक्ति के लिए वर्तमान कॉलेजियम व्यवस्था सही नहीं है।

यह पारदर्शी नहीं है और संदेह से मुक्त नहीं है। फिर सवाल न्यायिक क्षेत्र में सभी वर्गों के प्रतिनिधित्व का भी है। कानून मंत्री ने इसे संवेदनशील मामला बताया और कहा कि नए सिरे से बातचीत की जाएगी।

कमजोर वर्ग के नाम भेजने का अनुरोध

रिजिजू ने कहा कि उन्होंने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों को पत्र लिखा है। उनसे अनुरोध किया गया है कि कॉलेजियम की ओर से की गई सिफारिशों में समाज के कमजोर वर्ग के लोगों के भी नाम हों।

रिजिजू ने कहा कि सरकार का इरादा न्यायिक क्षेत्र में हस्तक्षेप का नहीं है। मगर सरकार को सभी वर्गों के साथ न्याय का ख्याल भी रखना है।

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