नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉट कॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन है। तो आज हम आपको बताएंगे रंग पंचमी के बारे में…सनातन धर्म में होली पर्व के बाद चैत्र महीने की पंचमी तिथि को रंग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। रंग पंचमी के दिन देवी-देवता होली मनाते है। होली के पर्व का समापन पंचमी तिथि को होता है, इस दिन को श्रीपंचमी और देवपंचमी के नाम से जाना जाता है। रंग पंचमी का पर्व देश के कई राज्यों में धूमधाम से मनाया जाता है। वहीँ, उदयातिथि के अनुसार रंग पंचमी का त्योहार 12 मार्च को मनाया जाएगा।
रंग पंचमी तिथि
- चैत्र मास की रंगपंचमी तिथि आरंभ: 11 मार्च, रात्रि 10: 06 मिनट पर
- चैत्र मास की रंगपंचमी तिथि समाप्त: 12 मार्च रात्रि10.02 मिनट पर
रंग पंचमी का महत्व
रंग पंचमी के दिन ऐसी मान्यता है कि राधा-कृष्ण को अबीर गुलाल अर्पित करते हैं। पुराणों के अनुसार रंग पंचमी को देवताओं की होली भी कहा जाता है, इसलिए लोग इस दिन आसमान की ओर गुलाल फेंकते हैं और अपने इष्टदेव से सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मांगते हैं। इस दिन रंगों से नहीं बल्कि गुलाल से होली खेली जाती है। इस दिन हुरियारे गुलाल उड़ाते हैं। मान्यता है इस दिन इस दिन देवी-देवता भी पृथ्वी पर आकर आम मनुष्य के साथ गुलाल खेलते हैं। इस दिन श्रीकृष्ण और भगवान विष्णु को पीला रंग अर्पित करना चाहिए।
पौराणिक कथा
रंग पंचमी के दिन प्रभु श्रीकृष्ण ने राधारानी के साथ होली खेली थी। इसी वजह से इस दिन विधि-विधान से राधा-कृष्ण की पूजा करने के बाद गुलाल आदि अर्पित करके खेला जाता है।
दूसरी कथा
होलाष्टक के दिन महादेव ने कामदेव को भस्म कर दिया था जिसकी वजह से देवलोक में सब दुखी थे। मगर देवी रति और देवताओं की प्रार्थना पर कामदेव को दोबारा जीवित कर देने का आश्वासन भगवान महादेव ने दिया तो सभी देवी-देवता प्रसन्न हो गए और रंगोत्सव मनाने लगे। इसके बाद से ही पंचमी तिथि को रंगपंचमी का त्योहार मनाया जाने लगा।