चेतन चौहान |
राजा बिम्बसार के पश्चात आज से लगभग एक हजार वर्ष पूर्व अचलपुर के राजा ऐल श्रीपाल ने इस सिद्ध क्षेत्र को पूरी तरह से विकसित कराया थ। महाराजा ने यहां पर अनेकों मंदिरों का निर्माण करवाकर अनेकों प्रतिमाएं स्थापित की। सफेद संगमरमर से बने नक्काशी द्वार मंदिर अत्यंत ही रमणीय है। मंदिरों का कलात्मक स्वरूप आज भी दर्शनार्थियों को आकर्षित करता है। इस धार्मिक व पौराणिक स्थल का नाम मुक्तागिरी कैेसे पड़ा इसके पीछे भी एक रोचक कथा जुड़ी हुई है। ऐसा माना जाता है कि जब समवशरन के दसवें तीर्थकर भगवान शीतलनाथ यहां चातुर्मास हेतु आए थे उनके आगमन की खुशी में श्रद्धालुओं ने मोतियों की वर्षा की थी। इन मोतियों की बौछारों के कारण इस पवित्र स्थल का नाम मुक्तागिरी हो गया।
महाराष्ट्र के अमरावती जिले की परतवाड़ा तहसील से 15 किमी दूर सतपुड़ा की सघन हरी-भरी मनोरम पहाड़ियों के मध्य बसा हुआ है जैन मुनियों की तपोस्थली के रूप में सिद्ध क्षेत्र मुक्तागिरी इसका प्राचीन नाम सिद्ध व अतिशय क्ष़ेत्र भी है। बाद में इसका नाम मेंधागिरी भी पड़ा निर्वाण कांड के मतानुसार मुक्तागिरी एक निर्वाण प्राप्ति स्थल के रूप में भी जाना जाता है जहां लगभग साढ़े तीन करोड़ संतों ने तपस्या कर मुक्ति प्राप्त की थी। मुक्तागिरी में समवशरन के दसवें तीर्थकर भगवान शीतलनाथ भी आ चुके हैं जिनके चरणों से यह क्षेत्र एक महान पवित्र स्थल के रूप में ख्याति अर्जित कर चुका है। मुक्तागिरी सिद्ध क्षेत्र अत्यंत ही प्राचीन है व यहां पर समय-समय पर कई चमत्कारिक घटनाएं भी घटित हुई हैं यहां के निकटवर्ती अचलपुर में ख्ुादाई के दौरान पाए गए ताम्रपत्र अभिलेखों के अनुसार यहां की पहाडि?ों में बना गुहामंदिर का निर्माण मगध के शासक बिम्बसार ने करवाया था। राजा बिम्बसार लगभग 2500 वर्ष पूर्व भगवान महावीर स्वामी के समकालीन थे।
राजा बिम्बसार के पश्चात आज से लगभग एक हजार वर्ष पूर्व अचलपुर के राजा ऐल श्रीपाल ने इस सिद्ध क्षेत्र को पूरी तरह से विकसित कराया थ। महाराजा ने यहां पर अनेकों मंदिरों का निर्माण करवाकर अनेकों प्रतिमाएं स्थापित की। सफेद संगमरमर से बने नक्काशी द्वार मंदिर अत्यंत ही रमणीय है। मंदिरों का कलात्मक स्वरूप आज भी दर्शनार्थियों को आकर्षित करता है। इस धार्मिक व पौराणिक स्थल का नाम मुक्तागिरी कैेसे पड़ा इसके पीछे भी एक रोचक कथा जुड़ी हुई है। ऐसा माना जाता है कि जब समवशरन के दसवें तीर्थकर भगवान शीतलनाथ यहां चातुर्मास हेतु आए थे उनके आगमन की खुशी में श्रद्धालुओं ने मोतियों की वर्षा की थी। इन मोतियों की बौछारों के कारण इस पवित्र स्थल का नाम मुक्तागिरी हो गया।
इस कथा से पूर्व जब यह क्षेत्र मेंधागिरी कहलाता था तब इसके पीछे एक रहस्यमयी घटना का भी जिक्र होता है। ऐसा माना गया है कि प्राचीनकाल में एक मुनिराज यहां पहाड़ों के बीच गिरने वाले जलप्रताप के नजदीक तपस्या में लीन थे। उस समय एक मेंधा(भेड़ा) जलप्रताप के निकट विचरते समय फिसलकर मुनिराज के पास आ गिरा। घायलावस्था में उसे बचाने के लिए उन्होंने नमोकार मंत्र का पाठ किया। नमोकार मंत्र के अनुवाचन के परिणामस्वरूप मेन्धा को अमरत्व और चिरशांति की प्राप्ति हुई और वह देव बन गया। कहा जाता है कि इसी देव ने पहाड़ि?ों पर मोतियों की बौछार की थी। इस तरह यहां का नाम मेंधागिरी व कालांतर में मुक्तागिरी हो गया। यहां आज भी अष्टमी,चतुर्दशी और पूर्णिमा के अवसर पर यहां मुक्तागिरी की पहाड़ी पर केसर की बौछार की जाती है।
मुक्तागिरी संस्थान में उपलब्ध लेख व तथ्य परक प्रंमाणों के अनुसार गत दो सौ वर्षों से यहां के सुल्तानपुर के आवासी कलमकर परिवार द्वारा यहां के संपूर्ण मंदिर और धर्मशाला को व्यवस्थित किया गया। सन 1923 में श्री नाथूसा पसूसा कलमकर ने श्री खपरदे जो कि मालगुजारी के स्वामित्व थे और यहां पूजा अर्चना करने वाले जैन भक्तों से अधिभार संग्रह करते थे। उनसे सतपुड़ा पहाड़ी की सुपूर्ण श्रेणी व 52 दिगम्बर जैन मंदिरों को भी खरीद लिया। तत्पश्चात महावीर मंदिर व धर्मशाला को गिरीपीठ के पवित्र स्थान पर निर्मित करवाया। मुक्तागिरी सिद्व क्षेत्र होने के साथ-साथ अनेकानेक चमत्कारी घटनाओं के लिए भी जाना जाता है यहां अनेकों संवेदनशील भक्तं समर्पण भाव से सांसरिक बीमारियों व अन्य रोगों से छुटकारा पाने के लिए 26 वे मंदिर के मुख्य देवता भगवान पार्श्वनाथ के दर्शनों हेतु आते हैं कई विदेशी भक्तगण भी यहां के चमत्कारों से अभिभूत हो चुके हैं।
सन 1956 में यहां ट्रस्ट बनाया गया व मुक्तागिरी की सार संभाल का कार्य कलमकर परिवार द्वारा किया जा रहा है। सन 1980 में 108 वें श्री विद्याासागर महाराज ने भी यहां चातुर्मास पूर्ण किया तबसे इस पवित्र स्थान की ख्याति और बढ़ गई है।
मुक्तागिरी के मंदिरों का नैसर्गिक सौंदर्य व नक्काशी देखने के लिए आने वाले श्रद्धालुओं का प्रतिदिन तांता लगा रहता है। चारों ओर सघन वनों से आच्छादित इस क्षेत्र में कई हिंसक पशुओं में बाघ, चीते, भालू व सरीसर्प प्राणी यहां घूमते पाये जाते हैं लेकिन किसी ने भी स्वयं को हिंसक प्रवृत्ति का साबित नहीं किया व न ही श्रद्धालुओं को क्षति पहुंचाई।
मुक्तागिरी राष्ट्रीय राजमार्ग से जुड़ा होने के कारण आवागमन के लिए यहां अनेकों साधन उपलब्ध होते हैं। महाराष्ट्र से मध्यप्रदेश सीमा से जुड़ा यह सिद्धक्षेत्र यहां आने वाले पर्यटकों व श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बन चुका है।