Saturday, July 27, 2024
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निकाय चुनाव: मुस्लिम वोट बैंक ने रखी नये राजनीतिक समीकरणों की नींव

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  • अपनी विरासत समझने वाली राजनीतिक पार्टियों को करारा तमाचा

  • अपने वजूद को कायम रखने के लिए किया गया निकाय चुनाव में मतदान

मिर्जा गुलजार बेग |

मुजफ्फरनगर: निकाय चुनाव में मुस्लिम वोट बैंक ने एक ऐसी नींव रख दी है, जो नये राजनीतिक समीकरणों को जन्म दे सकती है। मुस्लिम वोट बैंक को अपनी बपौती मानने वाली राजनीतिक पार्टियों के लिए यह करारा तमाचा होने के साथ-साथ एक सबक भी है कि एक बड़े वोट बैंक को नजर अंदाज करना राजनीतिक हनन का कारण भी बन सकता है। नगर पालिका परिषद मुजफ्फरनगर सीट पर जिस तरह से मुस्लिम मतों का धु्रवीकरण हुआ, उसने यह तय कर दिया कि भाजपा का भय दिखाकर अब मुस्लिमों का वोट हासिल नहीं किया जा सकता है। भाजपा के पक्ष में हुए मतदान से भी राजनीतिक समीकरण आने वाले लोकसभा चुनाव में बिगड़ते नजर आ रहे हैं।

बता दें कि उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मतदाता बड़ी संख्या में है और यह मतदाता किसी भी राजनीतिक पार्टी का वजूद कायम भी कर सकते हैं और खत्म भी कर सकते हैं। मुस्लिम मतदाताओं की इसी ताकत को देखते हुए समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने मुस्लिमों की राजनीति शुरु की थी और उत्तर प्रदेश में एक बड़ी पार्टी के रूप में समाजवादी पार्टी को न केवल स्थापित किया था, बल्कि प्रदेश में कई बार सपा की सरकार भी बनाने में कामयाब रहे थे।

2013 के दंगों के बाद भाजपा को संजीवनी मिलने से समाजवादी पार्टी सत्ता में आने के लिए फड़फड़ा रही थी। दंगों के दौरान मुजफ्फरनगर व आस-पास के क्षेत्रों में मुस्लिम व जाट मतदाताओं के बीच पटी खाई ने भी समीकरण बिगाड़ दिये थे, जिसके चलते 2017 के विधानसभा चुनाव में जनपद में सपा व रालोद को कड़ी शिकस्त मिली थी और सभी छह सीटों पर भाजपा का कब्जा हो गया था।

हालांकि, यह चुनाव सपा, बसपा, रालोद, कांगे्रस के महागठबंधन के साथ लड़ा गया था। इसके बाद 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी व रालोद ने नया प्रयोग करते हुए जनपद में एक भी विधानसभा पर मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट नहीं दिया था और जनपद की चार सीटों पर विजय हासिल की थी। इस चुनाव में मुस्लिमों ने पूरी आस्था के साथ गठबंधन को वोट देकर उसके प्रत्याशियों को जिताने का काम किया था।

वहीं छह माह बाद खतौली में हुए उपचुनाव में भी गठबंधन की झोली में खतौली सीट भी वोटरों ने डाल दी थी। अब जनपद की छह विधानसभा सीटों में से पांच सीटें गठबंधन के खाते में है। इस चुनाव के बाद सपा व रालोद को लगने लगा था कि उन्हें वोट करना मुस्लिमों की मजबूरी है और वह अपने तरीके से राजनीतिक गोटियां बैठाने लगे थे, जो मुस्लिम मतदाताओं को अखर रही थी। रही-सही कसर निकाय चुनाव के दौरान मुजफ्फरनगर से गठबंधन प्रत्याशी बनाये गये राकेश शर्मा द्वारा मुस्लिम मतदाताओं से जनसंपर्क न करने से पूरी हो गई।

अब मुस्लिम मतदाताओं को पूरा यकीन हो गया था कि सपा उन्हें अपनी बपौती मानती है। मुस्लिम मतदाताओं ने दूरदृष्टि का परिचय देते हुए इस चुनाव में भाजपा का डर दिखाने वाली पार्टियों को आईना दिखा दिया। मुस्लिम मतदाताओं ने न केवल भाजपा को वोट किया, बल्कि मुस्लिमों के रहनुमा माने जाने वाले असद्द्ीन औवेसी की पार्टी एआईएमआईएम के प्रत्याशी को भी जमकर वोट दिया। इसके अलावा मुस्लिम वोटों का धु्रवीकरण कांग्रेस व बसपा के पक्ष में भी हुआ। मतलब जिसको जो प्रत्याशी अच्छा लगा, बिना संकोच के उसके पक्ष में मतदान किया गया। नतीजा यह हुआ कि गलतफहमी पाले हुए गठबंधन प्रत्याशी को हार का मुंह देखना पड़ा।

एआईएमआईएम को मिल सकती है संजीवनी

यूपी की राजनीति केवल भाजपा के अलावा सपा, रालोद व बसपा के ईर्द गिर्द ही घूमती रही है। विपक्ष कही जाने वाली पार्टियों द्वारा एआईएमआईएम को यह कहकर बदनाम किया जाता रहा कि यह भाजपा की ही ‘बी’ पार्टी है और एआईएमआईएम के पक्ष में किया गया मतदान भाजपा के लिए वरदान साबित होता है। भाजपा का डर दिखाकर विपक्षी पार्टियां मुस्लिम मतदाताओं का मतदान अपने पक्ष में कराती आई है।

इस चुनाव में मुस्लिमों द्वारा भाजपा के उस डर को ही दूर कर दिया गया और न केवल भाजपा के पक्ष में मतदान किया, बल्कि एआईएमआईएम प्रत्याशी को भी बड़ी संख्या में वोट दे दिया। भाजपा के डर से सपा, बसपा व रालोद को वोट करने वाले मुस्लिम प्रत्याशियों का डर इस चुनाव में दूर होना, इस बात का प्रमाण है कि आने वाले समय में एआईएमआईएम यहां पर मजबूत हो सकती है।

क्योंकि पड़ौसी जनपद मेरठ में निगम के चुनाव में एआईएमआईएम जिस तरह से प्रदर्शन करते हुए दूसरा स्थान प्राप्त किया है और सपा को तीसरे स्थान पर धकेला है, उससे मुस्लिमों के बीच एक नया विश्वास कायम हुआ है। इतना ही नहीं यूपी के निकाय चुनाव में एआईएमआईएम छह चेयरमैन व हजारों की संख्या में पार्षद बनाने में कामयाब रही है, जिससे उसका भविष्य यूपी में उज्ज्वल नजर आ रहा है और नये राजनीतिक समीकरणों का संकेत दे रहा है।

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