नेपोलियन बोनापार्ट के आदेशानुसार फ्रांसीसी तट पर सभी अंग्रेजी जहाजों को पकड़कर रखा गया था। उन्हीं में सत्रह वर्षीय एक नाविक लेनार्ड भी था। दूसरे दिन इंग्लैंड से आया एक और लड़का पकड़ा गया। जब उसे लेनार्ड वाले कठघरे में बंद किया गया, तब उसने एक पत्र लेनार्ड को दिया, जिसमें लिखा था, ‘मां बहुत बीमार है। शायद ही बच सकेगी। उसकी आखिरी तमन्ना लेनार्ड को देखने की है।’ खत पढ़कर लेनार्ड तड़प उठा। वह मां से मिलने के लिए बैचने उठा। उसी समय उसने जेल से फरार होने का प्लान बनाया और उसी रात वह जेल से भाग निकला, पर थोड़ी दूर जा पाया था कि पकड़ा गया। अबकी बार उसके साथ और सख्ती की गई। लेनार्ड को अपनी मां की याद बहुत सताने लगी। उसने इस बार भी अथक परिश्रम करके धीरे-धीरे बेडियां काट डालीं। वह फिर भागा और फिर पकड़ा गया। हिम्मत करके लेनार्ड तीसरी बार भी भागा, पर दुर्भाग्यवश पकड़ा गया। अगले ही दिन दौरे पर नेपोलियन आया। जेल अधिकारी ने नेपोलियन से लेनार्ड के भागने का जिक्र किया। नेपोलियन के सामने लेनार्ड को पेश किया गया। नेपोलियन ने पूछा, ‘लड़के, सी कौन-सी वजह है, जो तुझे बार-बार भागने की हिम्मत बंधाती है…?’ लेनार्ड आंखों में आंसू भरकर बोला, ‘श्रीमान! मेरी मां मर रही है, मरने से पहले वह मुझे देखना चाहती है…।’ नेपोलियन ने अपनी जेब से सोने का सिक्का निकालकर लेनार्ड को दिया और फिर जेल के अफसर से बोला, ‘इसे जाने दो, इसको मां की ममता खींच रही है, मेरे जैसे सौ नेपोलियन भी इसे रोक नहीं पाएंगे।’