Wednesday, April 30, 2025
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कारोना संग जीना सीखने की जरूरत

Samvad


AASHISH e1618057478329कोरोना महामारी के मामले एक बार फिर से प्रकाश में आ रहे हैं। कोरोना संक्रमण में तेजी की खबरें चिंतित तो करती हैं लेकिन अब घबराने जैसी स्थिति नहीं है। हालांकि अभी नंबर इतने अधिक नहीं हैं लेकिन जिस तेजी से यह दोबारा बढ़ रहा है, यह भारत के लिए चिंता का विषय है। आंकड़ों के मुताबिक, भारत में संक्रमण की दैनिक दर 6.78 प्रतिशत और साप्ताहिक दर 4.49 प्रतिशत है। कई राज्यों में कोविड के दैनिक मामले हर दिन बढ़ रहे हैं। केरल, दिल्ली, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश और गुजरात में वायरस के केस ज्यादा आ रहे हैं। इस बीच ये सवाल भी उठता है कि कोरोना का ये चढ़ता ग्राफ कम कम होगा। विशेषज्ञों के अनुसार कोविड केस बढ़ने के कई कारण हैं। इनमें पहला ओमिक्रोन एक्सबीबी वीकेएस 1.16 वेरिएंट हैं। ये वेरिएंट भारत के अधिकतर राज्यों में फैल चुका है.?।

हर दिन इसके केस में इजाफा दर्ज किया जा रहा है। ये वेरिएंट पिछले सभी ओमिक्रॉन वेरिएंट्स की तुलना में ज्यादा संक्रामक है। चूंकि समय के साथ वायरस में म्यूटेशन होता है तो ये खुद को बदलता रहता है। इस वजह से लोग वायरस की चपेट में आ जाते हैं।

यह ठीक है कि नये संक्रमण से ग्रस्त रोगियों को बुखार, सिरदर्द, बेचैनी व गले में दिक्कत होती है, लेकिन दो-तीन दिन में ये ठीक भी हो जाते हैं। अस्पताल में लोगों को भर्ती कराने की जरूरत कम पड़ रही है। कमजोर इम्यूनिटी वालों में संक्रमण से गंभीर लक्षण भी हो रहे हैं। हालांकि वायरस की वजह से मौतें नहीं हो रही हैं। लेकिन इसका तेजी से फैलना चिंता पैदा करता है।

यही वजह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन लगातार इसकी निगरानी की सलाह दे रहा है। चिंता इस बात को लेकर भी है कि कहीं ज्यादा फैलने पर यह वायरस रूप बदलकर घातक न होने लगे। जिसके मद्देनजर केंद्र व राज्यों को अपने स्तर पर पूरी तैयारी रखनी चाहिए।

यह ठीक है कि कोराना का वायरस लगातार रूप बदल रहा है और इस बार नये वेरिएंट एक्सबीबी-1.16 का प्रकोप है। लेकिन हमारे पास पिछली लहरों से हासिल व्यापक अनुभव हैं। साथ ही इसके महामारी जैसा रूप लेने की संभावनाएं क्षीण हैं। लेकिन फिर भी यह नहीं मान लेना चाहिए कि यह संकट पूरी तरह टल गया है।

रोज छह हजार से अधिक मामले आ रहे हैं और आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञ कह रहे हैं कि यह संख्या मई तक बीस हजार प्रतिदिन भी हो सकती है। ऐसे में बचाव के लिये अतिरिक्त सावधानी जरूरी हो जाती है। वैसे इस संक्रमण से जुड़े कई सवाल आज भी अनुत्तरित ही हैं।

हम दशकों से इस तरह के संक्रामक रोगों का मुकाबला करते रहे हैं। अब हमारे पास पहली-तीसरी और घातक दूसरी लहर से मुकाबले का अनुभव भी है। जरूरत इस बात की है कि हम कोरोना प्रोटोकॉल और व्यक्तिगत स्तर पर सफाई, सुरक्षित शारीरिक दूरी व भीड़-भाड़ से बचने के परंपरागत उपायों का पालन ईमानदारी से करें।

हमें एक जिम्मेदार नागरिक की भूमिका परिवार से लेकर समाज के स्तर तक निभानी हैं। दूसरी ओर सामाजिक दायित्वों का भी हमें विशेष ध्यान रखना है, ताकि वंचित समाज का कोई व्यक्ति भूख व बीमारी से पीड़ित न रह जाए। ऐसे में हमें लाइफ स्टाइल जनित रोगों से बचाव के बारे में गंभीरता से सोचना होगा।

हमें अपने खानपान, सोने-जागने और जीवन शैली की विसंगतियों के बारे में गंभीरता से विचार करना होगा, जो तमाम तरह के रोगों को पैदा करती हैं। दरअसल, यदि हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होगी तो हम सभी प्रकार के संक्रमणों से बचे रह सकते हैं।

कोरोना संक्रमण के नए मामले प्रकाश में आना दर्शाता है कि कोरोना का संकट अभी भी अस्तित्व में है। वहीं कुछ लोगों द्वारा बूस्टर डोज न लगवाने के कारण नये मामले सामने आये हैं। तीन साल पहले की कोरोना महामारी से हमने निर्णायक लड़ाई लड़ी और कई एहतियात कदम भी उठाये।

इन स्थितियों के मद्देनजर, अब जितना हो सके उतनी रोकथाम रणनीतियों का उपयोग करें। जैसे कि हाथ की स्वच्छता को आदत बनाना, उच्च गुणवत्ता वाला मास्क पहनना, वेंटिलेशन में सुधार करना और जब संभव हो तो बीमार व्यक्ति से सुरक्षित दूरी बनाए रखना।

एहतियातन शारीरिक दूरी भी बनाये रखना बहुत जरूरी है। ऐसे में ये बहुत महत्वपूर्ण है कि सबसे पहले हम अपने घर से शुरूआत करें। दृढ़ता से संकल्प लेकर एक जागरूकता आएगी। देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी में हमारा काफी बड़ा योगदान भी होगा। कोरोना का भय भी दूर होगा।

कोरोना संक्रमण काल में सरकार व लोगों द्वारा इसका सफलतापूर्वक मुकाबला किया गया है और हमारे पास इसका व्यापक अनुभव है। लेकिन हमें सजग और सतर्क होकर कोरोना के संग जीना सीखने की आवश्यकता है। मौत का भय आदमी को सलीके से जीना सिखा देता है। कोरोना की दो लहर जब जानलेवा साबित हुई तब तीसरी लहर में लोगों के जीने का ढंग अपने आप बदला।

ऐसे में बिना सरकार के आदेश का इंतजार किए लोगों को अपनी आदतों, बिना मास्क भीड़भाड़ में घूमने, जगह-जगह थूकने आदि को सुधार लेना चाहिए। लापरवाही से अपनी जान सांसत में और सरकार परेशानी में ही पड़ेगी। भीड़भाड़ न होने देना, मास्क पहनना, अपने आस-पास साफ-सफाई रखना हमारी जीवन शैली में शामिल हो जाना चाहिए।

कोरोना संक्रमित व्यक्ति को निर्धारित समय के लिए अलग रखना और रहना हमें सहज रूप से स्वीकार करना होगा। इस प्रकार हम कोरोना के संग ही निरापद जीवन जी सकेंगे। हम सब को कोरोना के साथ जीना सीखना होगा। यह तभी संभव है जब हम बिना भय और बचाव के उपायों को अपनी आदतों में शुमार कर लें।


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