Saturday, March 22, 2025
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धर्म को भ्रष्टाचार से बचाने की जरूरत

Samvad


sonam lovevanshiशिव के ‘राज’ में भगवान शंकर को भी नहीं बख्शा गया। वही शिव जो शक्ति के बिना अधूरे हैं और जिनके आगे दुनिया की हर ताकत शीश झुकाती है। राजधर्म का पाठ पढ़ाने वाले सियासतदां उसी शिव के लोक को भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा गए। महाकाल लोक में लगी सप्तर्षि की मूर्तियां एक आंधी को बर्दाश्त नहीं कर सकीं। फिर ऐसे में चंद पंक्तियां जेहन में आती है कि, ‘देते हैं भगवान को धोखा, इन्सां को क्या छोड़ेंगे?’ सचमुच में अगर शिवराज के शासन में ‘कालों के काल महाकाल’ तक सुरक्षित नहीं, फिर देश, समाज और अंतिम पंक्ति में बैठे इंसान की क्या ही बिसात समझी जाए? संविधान तले देश हांकने का दम्भ भरने और ‘हम भारत के लोग’ के जयकार लगाने से स्थितियां नहीं बदलने वाली, क्योंकि जिस देश और समाज में धर्म को धंधे और भ्रष्टाचार का जरिया बना लिया गया हो, उसका वर्तमान और भविष्य दोनों अंधकारमय प्रतीत होता है।

जिस अवंतिकापुरी में सप्तऋषि की मूर्तियां मामूली तूफान का वेग नहीं झेल सकीं। ऐसे में सनद रहे कि उसी पूरे लोक के निर्माण पर सरकार ने 800 करोड़ रुपए खर्च किए। रुपए-पैसे तो अपनी जगह है। शिव सत्ता ने शिव के लोक को लेकर जो कसीदे पढ़वाए थे, उसकी गूंज अब कर्कश लग रही है।

आज वे सब जमींदोज हो गई, ठीक उसी तरह जैसे सप्त ऋषियों की मूर्तियां क्षत-विक्षत देह की तरह धूल-धूसरित हो गईं। सोचिए कितना विचलित करने वाला दृश्य रहा होगा, जब एक-एक कर पूजनीय ऋषियों की प्रतिमाएं जमींदोज हो रही होंगी! आस्था पर गहरा आघात पहुंचाने वाले इस दृश्य को देखकर भी जो शख्स नहीं सिहरा हो, शायद उसे धर्म का मर्म नहीं मालूम होगा।

वरना इस तरह से धर्म और आस्था के विषय पर भ्रष्टाचार हावी हो जाए और सुधीजन मौन रह जाएं! यह संभव नहीं है। महाकाल का मंदिर धर्म और आस्था का एक केंद्र है। ऐतिहासिकता और आध्यात्म की नगरी है अवंतिकापुरी। ऐसे में शिव को अपने राज को पुख्ता करने की इतनी भी क्या जल्दी थी कि महाकाल को ही भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा दिया?

शिव, सर्वत्र हैं, उनकी दृष्टि से कुछ भी अछूता नहीं है, फिर शिवराज ने शिव की शक्ति से खिलवाड़ आखिर क्यों किया? शिव के आंगन में ‘शिव की सत्ता’ की पोल खुली है। देश के प्रधानसेवक नरेंद्र मोदी और सीएम शिवराज ने जिस महाकाल लोक का साढ़े सात महीने पहले लोकार्पण किया था, वह आंधी के एक झोंके को झेल नहीं सका।

आखिर ये कैसा विकास है? कैसे धर्म और अध्यात्म का झंडा ऐसे में इस संपूर्ण चराचर जगत में लहराने की बात की जा सकती है? धर्म और आस्था के केंद्र इतने निरीह तो नहीं होते कि आंधी-तूफान न झेल सकें। केदारनाथ की त्रासदी सदी की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक थी।

उस समय भी सदियों पुराना मंदिर सुरक्षित रह गया और एक शिव का राज है कि यहां साढ़े सात महीने में ही मंदिर तबाह होने लगे। ऐसे में ये वक्त है आत्म-मंथन का! आखिर धर्म को भ्रष्टाचार से कैसे बचाया जाए? धर्म, धंधे और भ्रष्टाचार को पुष्पित और पल्लवित करने का साधन कतई नहीं होना चाहिए।

धर्म आस्था और विश्वास का विषय है और इसे ध्यान में रखते हुए ही धार्मिक स्थलों का पुनरूत्थान और विकास होना चाहिए। आंधी ने जो किया, उसको लेकर बातें तो महीनों से हो रही थीं। वैसे राज्य में अब नया ही ट्रेंड चल रहा है कि महाकाल मंदिर के विस्तार में सबने अपना-अपना ‘विस्तार’ किया है।

काशी की तर्ज पर अपनी चुनावी नाव पार लगाने की जल्दबाजी में महाकाल लोक का भव्य उद्घाटन भला कौन भूला होगा? उसी चकाचौंध को देखकर लोग दरबार आ रहे थे। आस्था से भगवान की मूर्तियों के आगे मस्तक झुका रहे थे। सेल्फी ले रहे थे, पर चंद पलों में ही ये प्रतिमाएं जमींदोज हो गर्इं।

वो तो भला हो बाबा महाकाल का जो किसी की जान पर नहीं बन आई। वरना भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा ने तो भगवान को भी नहीं बख्शा था। अब अधिकारी अपनी पीठ थपथपा रहे हैं कि 156 मूर्तियों में से केवल सात ही मूर्ति तो गिरी हैं, इतना शोर शराबा क्यों? इस घोटाले को प्राकृतिक आपदा का नाम देकर सब चंगा वाली कहावत को चरितार्थ करने में शिव के मंत्रीगण लगा दिए गए हैं।

वैसे जिस महाकाल लोक से प्रेरित होकर शिवराज सरकार ने मध्यप्रदेश में लोक निर्माण के बड़े बड़े दावे किए हैं, वे दावे अब सवालों के घेरे में हैं। ये पहली घटना नहीं है, जब मध्यप्रदेश सरकार में घोटाले हुए हों। घोटालों से सरकार का पुराना नाता रहा है। धार जिले में 304 करोड़ की लागत से बना कारम बांध की घटना को भला कौन भूला होगा?

कारम बांध भी पहली बारिश की मार को झेल नहीं पाया। बांध में आई दरार से 18 गांव के लोगों को रातों-रात विस्थापित करना पड़ा था। कारम बांध के भ्रष्टाचार के दाग अभी पूरी तरह धुले भी नहीं थे कि महाकाल लोक को भी भ्रष्टाचार की बलि चढ़ा दिया गया। जिस तरह एक साल के भीतर कारम बांध फूटा था, ठीक उसी तरह साढ़े सात महीने में सप्त ऋषियों की मूर्तियां उखड़ गईं।

लेकिन शासन प्रशासन खामोश है, क्योंकि आखिरकार शिव के राज में भ्रष्टाचार शिव के लाडलों ने ही तो किया है। फिर सूबे के सूबेदार कार्रवाई करें भी तो कैसे! सबको एक ही देहरी पर मत्था जो टेकना है। कुल मिलाकर यह तय है कि अपना एमपी गज्जब है। यहां का ‘सिस्टम’ भगवान को भी नहीं बख्शता है! तो फिर आदमी की क्या ही बिसात है?


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