Wednesday, July 3, 2024
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सामयिक: निजीकरण के खतरे भी समझें

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रामेश्वरम मिश्रा
रामेश्वरम मिश्रा
  इस समय भारत सरकार द्वारा दो महत्वपूर्ण संकटों से निकलने के लिए संघर्ष किया जा रहा है, पहला विश्व स्तर पर कोरोना से फैली महामारी और दूसरा आर्थिक संकट। सरकार द्वारा इस आर्थिक संकट से निकलने के लिए मई महीने में लोकल पर वोकल और फिर आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना पर जोर दिया गया, जिससे भारत का आम जनमानस एवं मध्यम वर्गीय व्यापारी काफी उत्साहित दिखा। भारत सरकार द्वारा आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना की आड़ में निजीकरण की नीति को अपनाया गया और देश के प्रमुख संस्थानों, नवरत्न कंपनियों, सरकारी बैंकों, हाइवे, एयरपोर्ट, एयर इंडिया एवं सरकारी स्कूलों-कॉलेजों तक का निजीकरण करने में सरकार जुट गई। भारतीय जनमानस भारत की आत्मनिर्भर संकल्पना को मूर्त रूप देने में तत्पर है तो ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या भारतीय जनमानस सरकार द्वारा अपनायी जा रही निजीकरण नीति से समाज पर पड़ने वाले घातक प्रभावों से भिज्ञ है? ऐसे समय में यह भी सवाल उठते हैं कि भारतीय समाज पर निजीकरण का क्या दुष्प्रभाव होगा?
भारत जैसे देश में जहां करोड़ देशवासी दोनों वक्त के खाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, सरकार द्वारा दी जाने वाली किसान सम्मान निधि की वार्षिक धनराशि मात्र 6000 रुपये है तथा देश में जहां वर्ष 2018-2019 में प्रति व्यक्ति आय 10534 रुपये मासिक थी तथा जिस देश में रिजर्व बैंक की सितंबर 2019 की रिपोर्ट के अनुसार भारत के कुल ग्रामीण क्षेत्र की आबादी के 25.7 प्रतिशत गरीबी रेखा के नीचे है, ऐसे देश में विकास, आधुनिकीकरण एवं विश्व स्तरीय सुधार योजना के नाम पर सार्वजनिक संपत्ति की नीलामी करके बेचना कहां तक न्याय संगत है? इस समय निजीकरण को लेकर सरकार से अनेक ऐसे प्रश्न होने चाहिए जो इस समस्या के संदर्भ में स्वाभाविक हैं।
सरकारी संस्थाओं को घाटे की अर्थव्यवस्था का प्रतीक बता कर सरकार द्वारा उसके उन्नयन के लिए कोई सार्थक पहल न करना और उसे निजी हाथों में सौंपना सरकार की नीति और नियत पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। क्या सरकार भारतीय जनमानस के विकास और आत्मनिर्भरता के लिए कृत संकल्प है? सरकार दो वर्ष के भीतर संपूर्ण सार्वजनिक संपत्ति का निजीकरण करने के लिए कटिबद्ध है। सरकार ने इस दिशा में कार्य में तेजी लाने का निर्णय लिया है। आम जनमानस पर सरकार द्वारा किया जा रहे निजीकरण के दुष्प्रभाव को समझने के लिए उदाहरण के तौर पर देश के सबसे पहले किए गए निजी रेलवे स्टेशन हबीबगंज भोपाल, जिसे बंसल पाथवे हाइवे प्राइवेट लिमिटेड को दिए जाने के बाद से जो दुष्प्रभाव देखने को मिला वह यह है कि स्टेशन पार्किंग शुल्क में लगभग 10 गुना की वृद्धि कर दी गई। पहले जहां दोपहिया वाहन का पार्किंग शुल्क एक दिन के लिए अधिकतम 30 रुपये निश्चित था, वहीं उसे बढ़ाकर 175 रुपये कर दिया गया और मासिक पास को 120 रुपए से बढ़ाकर 995 रुपए कर दिया गया। इसी प्रकार कार पार्किंग शुल्क 120 रुपये प्रतिदिन से बढ़ाकर 460 रुपये प्रतिदिन कर दिया गया और मासिक पास को 300 बढ़ाकर 5990 कर दिया गया। इसी प्रकार हबीब गंज रेलवे स्टेशन पर प्लेटफार्म टिकट के शुल्क में भी काफी इजाफा देखने को मिलता है, जो प्लेटफार्म टिकट 10 रुपया प्रति व्यक्ति था उसे बढ़ाकर 50 रुपया प्रति व्यक्ति कर दिया गया।
निजीकरण के दुष्प्रभाव को इस तथ्य से भी समझा जा सकता है कि बीते 17 अगस्त को प्रधानमंत्री कार्यालय के प्रमुख सचिव नृपेंद्र मिश्रा ने सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के सचिव संजीव रंजन को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने नेशनल हाइवे अथॉरिटी आॅफ इंडिया (एनएचएआई) को उसकी कार्यकुशलता में सुधार लाने के लिए कई सुझाव दिए हैं और कहा कि प्राधिकरण को अपनी संपत्तियों से धन अर्जित करने की कोशिश करनी चाहिए। इसके लिए वह टोल टैक्स वसूली के लिए ऊंची बोली या फिर इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश ट्रस्ट का रास्ता अपना सकती है। इस प्रकार हाइवे पर पहले से चल रही टोल शुल्क की दर में वृद्धि करने एवं टोल बूथों की संख्या में वृद्धि करने पर सरकार की नजर है।
भारत सरकार द्वारा निजीकरण की नीतियों का पालन अलग-अलग राज्यों की सरकारों द्वारा भी राज्य संपत्ति को प्राइवेट संस्थानों को बेचने में किया जा रहा है। हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 40 राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आईटीआई) को  निजी हाथों में सौपने की घोषणा की गई। ऐसे में जो आम जनमानस के घरों के छात्रों द्वारा 480 रुपए का वार्षिक शिक्षा शुल्क दिया जाता था वह प्राइवेट संस्थाओं द्वारा संचालित होने पर छात्रों से 26000 रुपए वार्षिक शिक्षा शुल्क लिया जाएगा। इस प्रकार से सरकार द्वारा देश में चलाई जा रही निजीकरण की नीति से आम जनमानस का देश में गुजर-बसर करना अत्यंत कठिन हो जाएगा। इसके साथ ही साथ देश में अमीर और गरीब के बीच का अंतर अत्यंत गहरा हो जाएगा, जिससे समाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा जो निजीकरण के घातक दुष्प्रभावों में से एक होगा।
भारत सरकार द्वारा अपनाई जा रही निजीकरण की नीति से जहां भारतीय जनमानस का आर्थिक शोषण प्राइवेट संस्थाओं द्वारा किया जाएगा, वहीं इसका दुष्प्रभाव आम जनमानस पर यह भी होगा कि उनके स्वतंत्रता और समानता का अधिकार भी सीमित होगा, क्योंकि शिक्षण संस्थानों का निजीकरण करने पर अधिकतम शिक्षण शुल्क के कारण आम जनमानस प्रवेश नहीं पा सकेगा, जिससे शिक्षण संस्थाओं में समानता नहीं रहेगी और जिसमें सशक्त राष्ट्र की कल्पना करना अस्वाभाविक होगा।
निजीकरण की नीति का घातक दुष्प्रभाव यह भी होगा कि सरकारी संस्थाओं-जैसे बैंक, एयर इंडिया, शिक्षा के क्षेत्र, रेलवे के कुछ क्षेत्रों में निजीकरण के फलस्वरूप रोजगार \के स्रोत सीमित होंगे। दक्षिण-पूर्व रेलवे ने अपने चार डिविजन से 3681 महत्वपूर्ण पदों को समाप्त कर दिया। बैंक, एयर इंडिया, रक्षा जैसे क्षेत्रों में सरकार द्वारा बड़ी ंछंटनी की जा रही है, जिसके फलस्वरूप बेरोजगारी बढ़ेगी तथा श्रम शक्ति का उचित पारितोषक नहीं मिल सकेगा। भारत सरकार द्वारा मूलभूत सरकारी सेवाओं का निजीकरण जहां आम जनमानस की स्वतंत्रता को सीमित करेगा, वहीं निजी संस्थाओं द्वारा आम जनमानस का आर्थिक शोषण किया जाएगा, जिससे राष्ट्र निर्माता जनसेवक एवं आम नागरिक आर्थिक एवं मानसिक रूप से कमजोर होगा तथा वह देश की प्रमुख सेवाओं के उपभोग से वंचित एवं तिरस्कृत रहेगा जो सबका-साथ, सबका-विकास की परिकल्पना को सीमित करेगा।
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