किसी नगर में राम और श्याम नामक दो धनी व्यापारी रहते थे। एक दिन राम अपने मित्र श्याम के घर गया। राम ने देखा कि श्याम का घर विशाल और तीन मंजिला था। राम ने यह भी देखा कि नगर में सभी निवासी श्याम के घर को बड़े विस्मय से देखते थे और उसकी बहुत बड़ाई करते थे। अपने घर वापसी पर राम ने उसी वास्तुकार को बुलवाकर, जिसने श्याम का घर बनाया था, श्याम जैसा तीन मंजिला घर बनाने को कहा। वास्तुकार ने इस काम के लिए हामी भर दी और काम शुरू हो गया।
कुछ दिनों बाद राम निर्माणस्थल पर गया। जब उसने मजदूरों को गहरा गड्ढा खोदते देखा तो वास्तुकार से पूछा, ‘इतना गहरा गड्ढा क्यों खोदा जा रहा है।’ वास्तुकार ने कहा, ‘मैं आपके बताए अनुसार तीन मंजिला घर बनाने के लिए काम कर रहा हूं। सबसे पहले मजबूत नींव बनाऊंगा, फिर क्रमश: पहली, दूसरी और तीसरी मंजिल बनाऊंगा।’ ‘मुझे इस सबसे कोई मतलब नहीं है!’, राम ने कहा, ‘तुम सीधे ही तीसरी मंजिल बनाओ और उतनी ही ऊंची बनाओ जितनी ऊंची तुमने श्याम के लिए बनाई थी।
नींव की और बाकी मंजिलों की परवाह मत करो!’ ‘ऐसा तो नहीं हो सकता’, वास्तुकार ने कहा। ‘ठीक है, यदि तुम यह नहीं करोगे तो मैं किसी और से करवा लूंगा’, राम ने नाराज होकर कहा। उस नगर में कोई भी वास्तुकार नींव के बिना वह घर नहीं बना सकता था, फलत: वह घर कभी न बन पाया। अत: किसी भी बड़े कार्य को संपन्न करने के लिए उसकी नींव सबसे मजबूत बनानी चाहिए एवं काम को योजनाबद्ध तरीके से किया जाना चाहिए।