यह उन दिनों की बात है जब अशफाक उल्ला शाहजहांपुर के आर्यसमाज मंदिर में पंडित रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ के साथ ठहरे हुए थे। अचानक कुछ दंगाइयों ने मंदिर को घेर लिया। दंगाई उत्तेजक नारे लगा रहे थे और मंदिर को नष्ट करना चाहते थे। यह देखकर क्रांतिकारी अशफाक उल्ला ने अपनी पिस्तौल निकाली और मंदिर के दरवाजे के पास आकर बोले, किसी ने भी मंदिर की एक ईंट को हाथ लगाया तो उसे गोली से भून दूंगा।
कुछ दंगाइयों ने उन्हें पहचान लिया। उनमें से एक बोला, तू तो मुसलमान है, तेरा इस मंदिर से क्या लेना-देना? दंगाई की बात सुनकर अशफाक ने जवाब दिया, मंदिर और मस्जिद मालिक की इबादत करने के पवित्र स्थल हैं। मैं दोनों के प्रति समान श्रद्धा रखता हूं। इसलिए मंदिर की हिफाजत करना भी मेरा कर्त्तव्य है। मैं एक हिंदुस्तानी क्रांतिकारी हूं। देश के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने पर मैं स्वयं को गौरवान्वित समझता हूं।
हिंदुस्तान को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराना ही मेरे जीवन का उद्देश्य है। अशफाक की बात सुनकर दूसरा दंगाई बोला, हमें तुम्हारी बातें समझ में नहीं आतीं। तुम्हें मालूम है कि क्रांतिकारियों का मुख्य उद्देश्य अंग्रेजों को भगाकर हिंदुस्तानियों की सल्तनत कायम करना है।
ऐसे में जब हिंदुस्तानी इस देश पर राज करेंगे तो तुम्हें भी यहां से खदेड़ दिया जाएगा। फिर भी तुम एक क्रांतिकारी बने घूम रहे हो और स्वयं पर गर्व कर रहे हो। अशफाक दंगाइयों की बात पर बोले, हिंदुस्तान ऐसा देश है, जहां जाति-धर्म से परे मानवीयता को महत्व दिया जाता है। हिंदुस्तान की सभ्यता और संस्कृति प्रारंभ से सभी को समान समझती है। अशफाक की बात सुनकर दंगाई चुपचाप वहां से खिसक गए।