Monday, July 8, 2024
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बम-बम भोले के जयकारों से गुंजायमान हो रहे वेस्ट यूपी के शिवालय

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नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉट कॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक अभिनंदन और स्वागत है। सबसे पहले हम गॉडविन मीडिया परिवार की ओर से अपने पाठकों को महाशिवरात्रि पर्व की शुभकामनाएं देते हैं। हम आपको वेस्ट यूपी के कुछ खास मंदिरों के बारे में जानकारी दे रहे हैं।

आज शनिवार को महाशिवरात्रि के दिन वेस्ट यूपी में भी शिवालयों पर भक्तों की जहां लंबी लंबी कतारें सुबह से ही नजर आ रही हैं तो वहीं बम बम भोले के जयकारों से मंदिर गुंजायमान हो रहे हैं।

इस पावन पर्व पर श्रीकृष्ण नगरी मथुरा, बिजनौर, शामली, बागपत, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर समेत मेरठ जिले में इस पावन पर्व पर शिवालयों में जलाभिषेक के लिए मंदिरों में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ पड़ी है। शिवालयों की फूलों और विद्युत मालाओं से भव्य सजावट की गई।

महाशिवरात्रि पर शहर के प्रमुख शिवालय बाबा अलखनाथ मंदिर, बाबा त्रिवटीनाथ मंदिर, बाबा धोपेश्वरनाथ मंदिर, बाबा बनखंडीनाथ मंदिर, श्री तपेश्वरनाथ मंदिर, श्रीमढ़ीनाथ मंदिर और पशुपतिनाथ मंदिर में फूलों और लाइटों से भव्य सजावट की गई है।

श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए बेहतर व्यवस्था की गई। इसमें एक तरफ से आने और दूसरी तरफ से जाने की व्यवस्था है। इसमें तमाम सेवक भी श्रद्धालुओं की मदद कर रहे हैं। कुछ मंदिरों में वाहनों के लिए पार्किंग की भी व्यवस्था की गई है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महाशिवरात्रि, शिव और शक्ति के मिलन का पर्व है। महाशिवरात्रि पर जागरण करना लाभकारी होता है। शिव-शक्ति को प्रसन्न करने के लिए उनके विवाह की झांकी भी निकाली जाती है। ज्योतिषाचार्य कृष्ण के शर्मा के अनुसार महाशिवरात्रि का शाब्दिक अर्थ ‘शिव की महान रात’ है। इस वर्ष महाशिवरात्रि 18 फरवरी को है। इस दिन जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक करने से महादेव प्रसन्न होते हैं।

पुरा महादेव मंदिर

बागपत जिले से 4.5किलोमीटर दूर बालैनी कस्बे के ‘पूरा’ नाम के गाँव में पुरा महादेव का मंदिर है। यहां साल भर शिव भक्तों का आना-जाना लगा रहता है। मान्यता है कि इस जगह पर परशुराम ने भगवान शिव की पूजा की थी। इस यहां पर खुदाई के दौरान शिवलिंग प्रकट हुआ और फिर एक विशाल मंदिर का निर्माण कराया गया।

शाकुम्भरी देवी मंदिर

सहारनपुर से लगभग 25 मील की दूरी पर शिवालिक की पर्वतमालाओं में स्थित शांकुम्भरी देवी मंदिर भारत के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में गिना जाता है। मान्यता है कि यहां पर सती का शीश गिरा था। इस मंदिर की प्रतिमा के दाई तरफ भीमा और भ्रामरी तथा बाई तरफ शीताक्षी देवी प्रतिष्ठित हैं। शीताक्षी देवी को शीतला देवी के नाम से भी पुकारा जाता है। नवरात्रों और दुर्गाष्टमी पर यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं।

श्री औघड़नाथ शिव मन्दिर

मेरठ कैंट में मौजूद इस मंदिर में प्राचीन काल से शिव की अराधना होती आ रही है। मन्दिर की स्थापना का कोई निश्चित समय उपलब्ध नहीं है। सन् 1857 से पहले वन्दनीय स्थल के रूप में ये मंदिर विद्यमान था। वीर मराठों के समय में कई प्रमुख पेशवा विजय यात्रा से पहले इस मन्दिर में बड़ी श्रद्धा से प्रलयंकर भगवान शंकर की उपासना और पूजा किया करते थे।

दूधेश्वरनाथ मंदिर

इस प्राचीन मंदिर का इतिहास लंकापति रावण के काल से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि रावण के पिता विश्रवा ने यहां पर कठोर तप किया था। पुराणों में भी दूधेश्वर मठ का वर्णन है। यह भी कहा जाता है कि रावण ने भी यहां पूजा-अर्चना की थी। बताया जाता है कि गांव कैला की गायें जब यहां चरने के लिए आती तो टीले के ऊपर पहुंचते ही दूध गिरने लगता था। जब लोगों ने टीले की खुदाई की तो वहां एक शिवलिंग प्रकट हुआ। जिसके बाद से इस मंदिर में लाखों की संख्या में श्रद्धालु पूजा करने आते हैं।

रावण मंदिर

मान्यता है कि रावण का जन्म ग्रेटर नोएडा के बिसरख गांव में हुआ था। उनके पिता महर्षि विश्रवा का आश्रम इस जगह था। यहां पर एक शिव मंदिर है। जिसे लोग ‘रावण मंदिर’ के नाम से जानते हैं। रावण मंदिर में आठ भुजाओं वाला शिवलिंग है। इसे अष्टभुजा शिव कहा जाता है। बताया जाता है कि इस शिवलिंग की स्थापना महऋषि विश्रवा ने की थी।

राजराजेश्वर मंदिर

बुलंदशहर में मौजूद ये प्राचीन सैकड़ों वर्ष पुराना बताया जाता है। कहा जाता है कि नागाओं ने इस मंदिर की स्थापना की थी। श्रावण मास में प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु ”राजराजेश्वर महादेव शिवलिंग” पर जलाभिषेक करने के लिए पहुंचते हैं। कहा जाता है कि जो भी सच्चे मन से बाबा के दरबार में मन्नत मांगता है। उसकी सभी मुरादें पूरी होती हैं।

आगरा का कैलाश महादेव मंदिर

आगरा में कैलाश महादेव का दरबार पांच हजार वर्ष से भी अधिक पुराना है। यमुना किनारे बने इस मंदिर में दो शिव लिंग स्थापित हैं। मंदिर के महंत के अनुसार कैलाश महादेव की स्थापना भगवान परशुराम और उनके पिता जमद्गिनी द्वारा की गई बताई जाती है। भारत के एकाध मंदिरों में ही दो शिव लिंग स्थापित है। मंदिर से सीधे जाया जाए तो महर्षि परशुराम के पिता का आश्रम रेणुका धाम भी बमुश्किल छह किलो मीटर की दूरी पर स्थित है।

आगरा का राजेश्वर महादेव मंदिर

आगरा में ही राजेश्वर मंदिर का इतिहास करीब 850 से 900 वर्ष पुराना बताया जाता है। इस मंदिर के बारे में बताया जाता है कि राजा खेड़ा का एक सेठ नर्मदा नदी के समीप से बैलगाड़ी से शिव लिंग स्थापित करने के लिए ले जा रहा था। वर्तमान मंदिर स्थल के पास एक कुंआ था, वहां वह विश्राम के लिए रुका। आराम के दौरान उसे शिवजी ने सपना दिखाया कि उनको वहीं स्थापित कर दिया जाए। लेकिन सेठ माना नहीं और शिवलिंग ले जाने की कोशिश करने लगा पर शिवलिंग वहां से हिला नहीं और शिवलिंग को यहीं स्थापित कर दिया गया।

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