Saturday, July 27, 2024
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पाम तेल ने किसानों को रुलाया

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Samvad 1


KP MALIKपिछले दिनों प्राकृतिक आपदा यानि बेमौसम की घनघोर बारिश और बेतादाद ओले पड़ने की घटना ने किसानों को खून के आंसू रुला दिए और उनकी गेहूं, सरसों व रबी की अन्य फसलों को बर्बाद कर दिया। पंजाब हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश के अधिकतर किसानों की सरसों की फसलें बेमौसम बारिश में बर्बाद हो गर्इं और जो कुछ मंडियों में पहुंची, उसके सही दाम किसानों को नहीं मिले। केंद्र की मोदी सरकार ने खुद ही पिछले साल 2021-22 में देश में सरसों का भाव 7 हजार 444 रुपए प्रति कुंटल तय किया था। लेकिन इस बार किसानों को सरसों का बढ़ोतरी के सात उचित भाव तो छोड़िए, पुराना भाव भी नहीं मिल रहा है। इस साल किसानों को सरसों का बाजार भाव महज 4 हजार 500 रुपए प्रति कुंटल तक ही मिल पा रहा है। इस प्रकार से एक ही वर्ष में एक कुंतल पर सीधे-सीधे करीब 3 हजार रुपए का घाटा किसानों को हो रहा है।

जिस अनुपात में सरसों के दाम गिरे हैं, उस अनुपात में सरसों के तेल के भाव कम नहीं हुए हैं, बल्कि तेल के भाव एक बार आसमान पर जाने के बाद लगभग स्थिर बने हुए हैं। यह ठीक गन्ना और चीनी की तरह है, जिसमें किसानों को गन्ना सस्ते में देना पड़ता है, जबकि चीनी उन्हें महंगी मिलती है।

दरअसल, सरसों का भाव गिरने से मोटा लाभ तो बिचौलियों और व्यापारियों को ही मिल रहा है, जो कि देश के ईमानदार और मेहनती किसानों के साथ-साथ आम उपभोक्ताओं के साथ भी बड़ी लूट की तरह है। साल 2017-18 में अपरिष्कृत एवं परिष्कृत पाम आयल पर आयात शुल्क 45 फीसदी था तथा परिष्कृत पाम आयल पर अतिरिक्त 5 फीसदी सुरक्षा शुल्क भी था, जबकि पूर्व में अधिकतम आयात शुल्क 80 फीसदी तक था।

इसके परिणाम स्वरूप किसानों को पिछले सालों की अपेक्षा अधिक दाम मिले थे। आयात शुल्क में निरंतर गिरावट के क्रम में अक्टूबर 2021 को शून्य कर दिया गया। इस कारण विदेशों से आने वाले पाम आयल की मात्रा बढ़ गई। इतना ही नहीं तो सरसों का तेल आयात भी 2021-22 के उपरांत बढ़ना आरंभ हो गया। परिणाम स्वरूप किसानों को एक कुंतल सरसों पर करीब 3 हजार रुपए कम प्राप्त हो रहे हैं।

कृषि लागत एवं मूल्य आयोग द्वारा वर्ष 2015-16 में तिलहन के न्यूनतम समर्थन मूल्यों का संयोजन तेल अंश के साथ करने की अनुशंसा की थी, जिसमें सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 35 प्रतिशत के मूल अंश के आधार पर निर्धारित किया जाना एवं 35 फीसदी के तेल अंश से ऊपर प्रत्येक 0.25 फीसदी बिंदु की दर पर 12.87 रुपए प्रति क्विंटल जोड़ने का उल्लेख है।

इसके मुताबिक, 35 फीसदी तेल अंश की सरसों का वर्ष 2022-23 में न्यूनतम समर्थन मूल्य 5,500 रुपए घोषित था, जबकि 48 फीसदी तेल अंश की सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 6,118 रुपए प्रति क्विंटल घोषित किया जाना चाहिए था। इस अनुसंशा की पालना नहीं होने से एक कुंतल के न्यूनतम समर्थन मूल्य 1068 रुपए कम था।

इस अनुशंसा की पालना से सरसों उत्पादक किसान को प्रोत्साहन की प्रबल संभावना थी। इसके विपरीत इसी आयोग द्वारा वर्ष 2014-15 में तिलहन विकास के लिए पाम आयल को उच्च प्राथमिकता देने की अनुशंसा की पालना में वर्ष 2012 में तैयार किए गए प्रतिवेदन की आधार पर राष्ट्रीय पाम मिशन के लिए 11 हजार 40 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए हैं।

किसानों के मुताबिक केंद्र सरकार का यह आचरण देश को तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की घोषणा के विपरीत है। इसी का परिणाम है कि भारत में खाद्य तेलों के आयात में एक दशक में 7 लाख 60 हजार 500 करोड़ रुपए खर्च किये जा चुके हैं। इसी का परिणाम है कि 20 वर्षों में आयात पर खर्च होने वाली राशी 8 हजार 780 करोड़ रुपए से बढ़कर 1 लाख 41 हजार 500 करोड़ रुपए पहुंच गई।

यह बढ़ोतरी 16.11 गुनी है। वर्ष 2021-22 में दूसरे देशों को खाद्य तेल मंगाने पर 1 लाख 41 हजार 500 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। इसके उपरांत भी भारत सरकार देश में उत्पादित परंपरागत खाद्य तेलों के विकास पर ध्यान नहीं दे रही, बल्कि खाद्य तेलों के विकास के नाम पर पाम आयल के विकास के लिए ही कार्य कर रही है।

साल 2022-23 में भारत सरकार के वित्त मंत्री ने तिलहन के घरेलू उत्पादन को बढाने एवं आयात पर निर्भरता कम करने हेतु युक्तिसंगत एवं व्यापक योजना लागू कर वर्ष 2025-26 तक 1.676 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बढाकर 54.1 मिलियन टन उत्पादन के लक्ष्य को प्राप्त करने की चर्चा तो की है। लेकिन इस दिशा में भी अभी सार्थक प्रयास नहीं दिखाई दे रहे हैं।

सरकार से सरसों का सही भाव दिलाने को लेकर उत्तर भारत के कई राज्यों के किसानों ने जंतर मंतर पर 6 अप्रैल 2023 को ‘सरसों सत्याग्रह’ किया। इन किसानों ने भारत सरकार की घोषणा के अनुरूप देश को खाद्य तेलों में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में आयात-निर्यात एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद नीति को किसानों के अनुकूल बनाने के लिए सत्य-शांति-अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए ‘सरसों सत्याग्रह’ किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट के नेतृत्व किया गाया था।

बहरहाल, सरकार ने कृषि सुधारों के अंतर्गत आदर्श कृषि उपज एवं पशुपालन (सुविधा एवं संवर्धन) अधिनियम 2017 का प्रारूप तैयार कर साल 2018 में ही राज्यों को प्रेषित करके ही अपने कर्तव्य की इतिश्री मान ली। जबकि राज्यों ने उसकी पालना में आज तक सार्थक कार्यवाही ही नहीं की।

अगर राज्य सरकारें इसे अमल में लातीं, तो भी शायद किसानों को घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य की प्राप्ति सुनिश्चित हो जाती, जिससे एक कुंतल सरसों के 5 हजार 450 रुपए प्राप्त होने की संभावना बनी रहती।

लेकिन केंद्र और राज्य दोनों ने ही इसका पालन नहीं कर रहं हैं। ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि उनकी उपजों को घाटे में बेचने के लिए विवश किया हुआ है। यह तो तब है, जब भारत सरकार ने संसद में निरंतर यह घोषणा की हुई है कि किसी भी किसान को उनकी उपज न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों में बेचने को विवश नहीं होने दिया जाएगा।

इतना ही नहीं, केंद्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य को गारंटीड मूल्य बताते हुए भी नहीं थकती है। अगर सरकार वास्तव में इस व्यवस्था को सुधारना या बदलना चाहती है और वास्तव में देश के अन्नदाता के लिए कुछ करना चाहती है तो जो पाम आॅयल रंग-स्वाद एवं सुगंध हीन पेड़ों का तरल पदार्थ खाद्य पदार्थ के रूप में उपयोग में लिया जा रहा है

जो खाने योग्य नहीं है उस पर तत्काल खाद्य पदार्थों में प्रयोग के लिए रोक लगाए। सरकार अगर पाम आयल के प्रयोग पर रोक लगा देती है, तो स्वत: ही सरसों और अन्य खाद्य तेलों के कच्चे माल के दाम बढ़ जाएंगे, जिससे किसानों को केवल उनके मूल्य ही नहीं, बल्कि लाभकारी मूल्य मिल पाएगा।


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