Friday, June 13, 2025
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पपीते की खेती है उपयोगी

 

 

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पपीता फलों में बेहद उपयोगी और स्वास्थ्यकर फल है और आजकल इसकी काफी मांग भी है। बागवानी खेती के तहत पपीते को उगाना अधिक फायदेमंद इसलिए भी है कि इसकी फसल का कच्चे और पके दोनों रूप में बाजार उपलब्ध है। पपीता आमतौर पर पूरे देश में उगाया जा सकता है लेकिन पपीते की अच्छी खेती गर्म नमी युक्त जलवायु में की जा सकती है। इसे अधिकतम 38 डिग्री सेल्सियस से 44 डिग्री सेल्सियस तक तापमान होने पर उगाया जा सकता है लेकिन न्यूनतम पांच डिग्री सेल्सियस से कम नही होना चाहिए। लू तथा पाले से पपीते को बहुत नुकसान होता है। लिहाजा इससे बचने के लिए खेत के उत्तरी पश्चिम में हवा रोधक वृक्ष लगाना चाहिए। ठंड के दिनों में जब पाला पड़ने की आशंका हो तो खेत में रात्रि के अंतिम पहर में धुंआ करके एवं सिंचाई भी फसल को सुरक्षित रखा जा सकता है।

भूमि और उसकी तैयारी

पपीते की खेती के लिए जरूरी है कि जमीन उपजाऊ हो तथा जिसमें जल निकास अच्छा हो। जिस खेत में पानी भरा हो उस खेत में पपीता कदापि नहीं लगाना चाहिए क्योंकि पानी भरे रहने से पोधे में कॉलर रॉट बीमारी लगने की संभावना रहती है। साथ ही अधिक गहरी मिट्टी में भी पपीते की खेती नहीं करनी चाहिए। खेतों को बागानी खेती की उन्नत प्रणाली के तहत तैयार करने के लिए मिट्टी को अच्छी तरह जोत कर समतल बनाना चाहिए तथा भूमि का हल्का ढाल रहना इसलिए उत्तम है कि उसमें पानी रूकने न पाए। चार मीटर के अंतराल पर लंबा, चौड़ा, गहरा गड्ढ़ा बनाना चाहिए। इन गड्ढ़ों में 20 किलो गोबर की खाद, 500 ग्राम सुपर फास्फेट एवं 250 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश को मिट्टी में मिलाकर पौधा लगाने के कम से कम 10 दिन पूर्व भर देना चाहिए।

किस्म और बीज

पपीते की उन्नत किस्मों में पूसा मेजस्टी एवं पूसा जाइंट, वाशिंगटन, सोलो, कोयम्बटूर, हनीड्यू, कुंगर्हनीड्यू, पूसा ड्वार्फ, पूसा डेलीसियस, सिलोन, पूसा नन्हा आदि प्रमुख किस्में हैं। पपीते की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर 500 ग्राम से एक किलो बीज की आवश्यकता होती है। पपीते के पौधे बीज द्वारा तैयार किए जाते हैं। एक हेक्टेयर खेती में प्रति गड्ढ़े दो पौधे लगाने पर 5000 हजार पौध संख्या की जरूरत होगी।

लगाने का समय एवं तरीका

पपीते के पौधे पहले रोपणी में तैयार किए जाते हैं, पौधे पहले से तैयार किये गड्ढ़े में जून व जुलाई में लगाना चाहिए, जहां सिंचाई का समुचित प्रबंध हो, वहां सितंबर से अक्टूबर तथा फरवरी से मार्च तक पपीते के पौधे लगाए जा सकते हैं।

नर्सरी में रोपा तैयार करना

इस विधि द्वारा बीज पहले भूमि की सतह से 15 से 20 सेंटीमीटर ऊंची क्यारियों में कतार से कतार की दूरी 10 सेंटीमीटर तथा बीज की दूरी तीन से चार सेमी रखते हुए लगाते हैं। बीज को एक से तीन सेंटीमीटर से अधिक गहराई पर नहीं बोना चाहिए। जब पौधे करीब 20 से 25 सेमी ऊंचे हो जाएं तब प्रति गड्ढ़ा दो पौधे लगाना चाहिए।

पालीथिन थैली में पौध तैयार करने की विधि

20 सेंटीमीटर चौड़े मुंह वाली, 25 सेमी लंबी तथा 150 सेंटीमीटर छेद वाले पालीथिन थैलियां पपीते के पौधों को तैयार करने के लिए उपयुक्त होती हैं। इन थैलियों में गोबर की खाद, मिट्टी एवं रेत का संमिश्रण करना चाहिए, थैली का उपरी एक सेमी भाग नहीं भरना चाहिए। प्रति थैली दो से तीन बीज होना चाहिए और पॉलिथिन की थैली में डाली गई मिट्टी में हमेशा पर्याप्त नमी रखना चाहिए। जब पौधे 15 से 20 सेमी ऊंचे हो जाए तब थैलियों को नीचे से धारदार ब्लेड द्वारा सावधानीपूर्वक काट कर पहले से तैयार किए गए गड्ढ़ों में लगाना चाहिए।

खाद एवं उर्वरक

एक पौधे को वर्ष भर में 250 ग्राम नत्रजन, 250 ग्राम स्फुर एवं 500 ग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है, इसे छह बराबर भाग में बांट कर प्रति दो माह के अंतर से खाद तथा उर्वरक देना चाहिए। खाद तथा उर्वरक को मिट्टी में मिलाकर थैली में देकर सिंचाई करना चाहिए। इस मिश्रण को नर पौधों को और ऐसे पौधो को नहीं देना चाहिए जिसे चार से छह माह बाद निकालकर फेंकना है। गौमूत्र का छिड़काव फल आने से पूर्व करना चाहिए तथा गौमूत्र से बने कित्नाशाको का प्रयोग समय समय पर करना चाहिए।

नर पौधों को अलग करना

पपीते के पौधे 90 से 100 दिन के अंदर फूलने लगते हैं और नर फूल छोटे-छोटे गुच्छों में लंबे डंठल युक्त होते हैं। नर पौधों पर पुष्प एक से 1.3 मीटर के लंबे तने पर झूलते हुए तथा छोटे होते हैं। प्रति 100 मादा पौधों के लिए 5 से 10 नर पौधे छोड़ कर शेष को उखाड़ देना चाहिए। मादा पुष्प पीले रंग के 2.5 सेंटीमीटर लंबे तथा तने के नजदीक होते हैं।

निराई, गुड़ाई तथा सिंचाई

पपीते के बाग में गर्मी के महीनों में चार से सात दिन जबकि ठंड में 10 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करना चाहिए। ठंड के दिनों में मौसम विभाग से जारी होने वाले पाले की चेतावनी पर तुरंत सिंचाई करें। तीसरी सिंचाई के बाद निराई गुड़ाई करें ताकि जड़ों तथा तने को नुकसान न हो।

लों को तोड़ना

पौधे लगाने के 9से 10 माह बाद फल तोड़ने लायक हो जाते हैं। फलों का रंग गहरा हरे रंग से बदलकर हल्का पीला होने लगता है तथा फलों पर नाखुन लगने से दूध की जगह पानी तथा तरल निकलता हो तो समझना चाहिए कि फल पक गया होगा। फलों को तोड़ने में पूरी सावधानी बरतनी चाहिए। छोटी अवस्था में फलों की छटाई अवश्य करना चाहिए ताकि फलों की सघनता अच्छी रहे व उनके विकास में कोई अवरोध न हो।

पपीता के पौधो में दिए जाने वाली दवाओं की मात्रा और अन्य जानकारियां

1. पौधा लगाने के बाद ट्रायकोडर्मा 100 ग्राम और बायोनिकोनिमा 100 ग्राम प्रति पम्प 120 से 140 पौधे (नोजल निकाल कर) की दर से जड़ में डालें। लेकिन ध्यान रखें कि दवाई पौधों पर कतई न उड़कर पड़े।

2. पौधा लगाने के 8 दिन बाद ब्लुकापर की 60 ग्राम मात्रा को प्रति पम्प 120 से 140 पौधे (नोजल निकाल कर) पौधे की जड़ में उपरोक्त के समान ही डालें ताकि दवाई पौधों के ऊपरी हिस्से पर न पहुंचे। पौधो पर स्प्रे 15 से 25 दिन में आवश्यकता अनुसार करें। स्प्रे के लिए उपयोग में लिया जाने वाला पम्प हमेशा अलग रखें। स्प्रे में इल्ली मरने वाले कीटनाशक दवाईयों का उपयोग कभी न करें और आवश्यकता पड़ने पर पौध संरक्षा विशेषज्ञों से संपर्क करें।

पौधे पर किए जाने वाले छिड़काव

पहला छिड़काव रोगोर – 25 एमएल और वायरो वाश – 15 एमएल करें। दूसरे छिड़काव में प्रति पम्प नीम का तेल 60 एमएल और वायरो वाश 15 एमएल रखें। तीसरा स्पे्र करते समय भी दूसरे छिड़काव को दुहराएं। चौथे स्पे्र के दौरान प्रति पंप तीन ग्राम आरियोफंगिन और स्ट्रेपटो सायक्लिन की 2 ग्राम मात्रा का उपयोग करें। पांचवे स्प्रे में प्रति पम्प मेंकोजेब 30 ग्राम, एक्टारा 8 ग्राम या डेढ़ चम्मच, वायरो वाश 15 एमएल, इमिडाक्लोप्रिड 6 एमएल, कापर ओक्सिक्लोराइड 30 ग्राम और वायरो वाश 15 एमएल का उपयोग करें। उन्नत विधि का पालन करने पर प्रति हेक्टेयर पपीते का उत्पादन 35-40 टन तक हो सकता है जो किसानों की अन्य उपज के आय की तुलना में कहीं लाभकारी है।

फीचर डेस्क


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