Saturday, May 3, 2025
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भाषा और संवाद के गिरते स्तर से आहत संसद

Nazariya 22


RAJESH MAHESHWARI 2संसद का विशेष सत्र कई मायनों में ऐतिहासिक रहा। इस सत्र में नई संसद में कामकाज की शुरुआत हुई तो वहीं बरसों से अटका पड़ा महिला आरक्षण विधेयक भारी बहुमत से पास हुआ। लेकिन इस सत्र में एक घटना ने लोकतंत्र के मंदिर की पवित्रता को भंग करने का काम किया। असल में दक्षिण दिल्ली के भाजपा सांसद रमेश बिधुड़ी ने उत्तर प्रदेश के बहुजन समाज पार्टी के सांसद दानिश अली के लिए जिन अपशब्दों का प्रयोग किया है, वह व्यवहार पूरी तरह अक्षम्य है। बिधूड़ी ने भाषा और संवाद की मयार्दा को तार-तार किया। इस मामले में जमकर राजनीति भी हो रही है। राहुल गांधी और अन्य दलों के नेता दानिश अली के समर्थन में सामने आए। कई विपक्षी सांसदों ने इसे श्विशेषाधिकार के उल्लंघन का मामला बताते हुए स्पीकर से कार्रवाई की मांग रखी।

बीजेपी सांसद रमेश बिधूड़ी ने दानिश अली के धर्म को लेकर जिन शब्दों का उपयोग किया उन्हें असंसदीय मानकर कार्यवाही से निकाल दिया गया। लोकसभा अध्यक्ष ओमप्रकाश बिरला ने रमेश बिधूड़ी को कड़ी चेतावनी दी, वहीं भाजपा अध्यक्ष जगतप्रकाश नड्डा ने 15 दिन में जवाब मांगा है। बिधूड़ी ने गत दिवस पार्टी अध्यक्ष को अपना जवाब सौंप दिया है। संसद में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपनी पार्टी के सांसद के अशोभनीय बयान के लिए माफी मांगने की सौजन्यता भी दिखाई। वहीं दानिश अली ने अध्यक्ष से मामले को विशेषाधिकार समिति में भेजने की अपील के साथ चेतावनी दी कि न्याय न मिलने पर वे सदस्यता छोड़ देंगे। लेकिन अब तक जो होता आया है उसके अनुसार मामला विशेषाधिकार समिति में जाएगा और रमेश बिधूड़ी के माफी मांग लेने पर उसका पटाक्षेप हो जाएगा। हाल ही में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चैधरी द्वारा प्रधानमंत्री के बारे में की गई आपत्तिजनक टिप्पणियों के संदर्भ में भी यही देखने मिला। बावजूद इसके संसद या उसके बाहर ऐसी बातें कहने का अधिकार किसी को भी नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 105 (2) के मुताबिक, संसद में कही गई बात को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती।

इस निरंकुशता में भी संशोधन किया जाना चाहिए। शायद स्पीकर इस मामले को विशेषाधिकार समिति को भेजें, लेकिन ऐसे गालीबाज सांसद को तुरंत निलंबित किया जाना चाहिए था। जब कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चैधरी और विपक्ष के अन्य सांसदों के खिलाफ निलंबन की कार्रवाई की गई, तो तुरंत फैसला लिया गया। क्या रमेश बिधुड़ी को सत्ता पक्ष का सांसद होने के नाते ढील दी गई है और मुद्दे को शांत और ठंडा होने दिया जा रहा है? कारण कुछ भी हो, संसद के भीतर ये गालियां स्वीकार्य नहीं होनी चाहिए। भाजपा सांसद के एक मुस्लिम सांसद के प्रति धर्मसूचक शब्द का इस्तेमाल करने से पूरा राजनीतिक जगत हिल गया। यह विचारणीय विषय है कि ऐसी टिप्पणियां करके ये नेता राज्य की जनता को क्या संदेश दे रहे हैं? शायद नेता भूल गए कि आम जनता राजनीतिक नेतृत्व को रोल मॉडल मानती है। अपने सदाचरण के लिए महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता, पं.जवाहर लाल नेहरू को चाचा नेहरू तथा कई अन्य राजनेताओं को इसी तर्ज पर आत्मीय संबोधन मिले, लेकिन मौजूदा दौर में कोई नेता आम आदमी से ऐसी आत्मीयता का हकदार नहीं दिखता। इसकी एकमात्र वजह नेताओं का आचरण और जीवनशैली है। इन्हीं हालात के चलते राजनीतिक क्षेत्र में दबंगों, कारोबारियों और अपराधियों का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है क्योंकि अच्छी सोच रखने वाले लोग राजनीति को अपने लिए सही स्थान नहीं मानते। देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए यह अच्छा संकेत नहीं है।

देश के प्रधानमंत्री मोदी के लिए कांग्रेस नेताओं ने अनेक गालियों का इस्तेमाल किया है और वे अपशब्द इनसे भी ज्यादा अभद्र और अश्लील रहे हैं, लेकिन कांग्रेस को कुछ भी हासिल नहीं हुआ। इधर भाजपा सांसद ने बसपा सांसद को गालियां दीं, उधर हरियाणा के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष उदयभान ने अकारण ही प्रधानमंत्री और राज्य के मुख्यमंत्री के लिए घोर अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया। क्या राजनीति इसी आधार पर की जा सकती है? इस हम्माम में सभी दलों के नेता डूबे हैं। उनके खिलाफ आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई, लिहाजा शक होता है कि बिधुड़ी के खिलाफ भी कुछ किया जाएगा। सनातन धर्म के बारे में द्रमुक अध्यक्ष स्टालिन के बेटे उदयनिधि द्वारा की जा रही अनर्गल टिप्पणियां यदि किसी अन्य धर्म के बारे में की गई होती तो उनका जीना दूभर हो जाता। कहने का आशय ये है कि अशालीन और अपमानजनक टिप्पणियों के विरुद्ध एक जैसी राय रखी जानी चाहिए। इसमें राजनीतिक लाभ और हानि की बजाय गुण-दोष के आधार पर फैसला किया जाना जरूरी है। जो गलत है वो गलत है, फिर चाहे उदयनिधि हों, स्वामी प्रसाद हों या फिर रमेश बिधूड़ी। भाजपा को चाहिए वह रमेश बिधूड़ी पर कड़ी कार्रवाई करे। लेकिन एक सांसद पर डंडा चला देने से सब कुछ ठीक हो जाएगा ये मानकर बैठ जाना निरी मूर्खता होगी।

जब राजनीति वैचारिक आधार खो देती है, तब राजनीतिक कार्यकर्ता ऐसा आचरण करने लगते हैं। ये घटनाएं संकेत देती हैं कि राजनीति किस हद तक वैचारिक दीवालियेपन की शिकार हो चुकी है। राजनीतिक दलों में कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण की परिपाटी बंद हो चुकी है। हर नेता शार्टकट तलाश रहा है। बदजुबानी इसी शोध का कुफल है। इस मामले में सभी राजनीतिक दलों को अपने लिए आचार संहिता बनानी चाहिए, ताकि गांधी-नेहरू की राजनीतिक परंपरा मौजूदा दौर की घटिया शैली के आगे सिर्फ इतिहास में कैद होकर न रह जाए।


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