एक ढोंगी बाबा लोगों को चमत्कार दिखाने का लालच देकर ठग रहा था। वह सबसे कहता था-पूर्णिमा की रात को मैं अपने चमत्कार से सोने के गहनों की बारिश करूंगा। जिसको जितना सोना चाहिए, ले लेना। लेकिन पूर्णिमा की रात आने में अभी एक सप्ताह बाकी है, तब तक हर व्यक्ति रोज मुझे कुछ न कुछ धन देता रहेगा। जो नहीं देगा, वह सोना मिलने की उम्मीद बिल्कुल न करे। सोने की उम्मीद में लोग चढ़ावा चढ़ाने लगे। बहुत सारा पैसा जमा हो गया। आखिरकार पूर्णिमा की रात भी आ गई। सभी उस रात सोने की बारिश का इंतजार करते रहे, पर बारिश नहीं हुई। सुबह होते ही लोग बाबा के पास जा पहुंचे और बोले-बाबा सोने की बारिश तो हुई नहीं।
बाबा ने कहा-लगता है, मेरी साधना में कुछ अड़चन आ गई। अब मैं दोबारा साधना करूंगा, अगली पूर्णिमा के दिन जरुर बारिश करा दूंगा। अब लोगों को बाबा पर शक होने लगा। उन्होंने राज्य की महारानी के पास जाकर बाबा की सारी बातें बता दीं। सारा किस्सा सुनने के बाद महारानी ने बाबा से मिलना तय किया। लेकिन बाबा को इसकी भनक लग गई। महारानी के पहुंचते ही उसने अपने चेहरे पर मोर पंख रख लिए। यह देखकर महारानी ने बाबा के शिष्य से पूछा, बाबा मुख पर पंख क्यों रखे हुए हैं? शिष्य ने कहा, बाबा स्त्री-मुख के दर्शन नहीं करते। उत्तर सुनते ही महारानी ने उससे कहा-इतने दुर्बल व्यक्ति को हम चमत्कारी बाबा कैसे मानें। आत्मा न तो स्त्री है, न पुरुष। शरीर तो केवल मिट्टी का पुतला है। बाबा महारानी की बातें सुन रहा था। उसने चेहरे से मोर पंख हटा लिए और उनके पैरों पर गिरकर बोला-आपकी बातों ने मुझे सत्य की राह दिखा दी। अब आज से मैं लोगों को ठगना छोड़ दूंगा।