Monday, June 17, 2024
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चित्र और सोच

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Amritvani


एक चित्रकार के मन में विचार आया कि मैं गांव की महिला का सुंदर, सहज और स्वाभाविक चित्र बनाऊं। उसका मानना था कि शहर की महिलाओं की सुंदरता कृत्रिम होती है। कृत्रिम साधनों की एक मोटी परत, चेहरे की स्वाभाविक सुंदरता को ढंक लेती है।

गांव का चक्कर लगाने पर उसे एक युवती दिखाई दी, जिसके चेहरे पर प्राकृतिक सुंदरता थी, प्रकृति का वह सजीव रूप थी। उसने उस तरुणी का चित्र बनाया और उसे एक प्रदर्शनी में लगा दिया। प्रदर्शनी में कला के पारखी लोग आए। चित्रों की नीलामी शुरू हुई।

उस ग्रामीण बाला के चित्र ने सहज ही लोगों का ध्यान खींच लिया। अंतत: वह चित्र दस लाख रुपये में बिक गया। जिस गांव की वह युवती थी, वहां अकाल पड़ा। भूखे मरने की नौबत आ गई, तो लोग गांव छोड़कर शहर की ओर भागने लगे।

रोजी-रोटी की तलाश में वह युवती भी अपने परिजनों के साथ शहर में आ गई और संयोग से वहीं आकर उसने आश्रय लिया, जहां वह चित्र प्रदर्शनी लगी थी। प्रदर्शनी के बाहर निकलते लोग उसी चित्र की चर्चा कर रहे थे, जो दस लाख रुपये में बिका था।

पंडाल के एक कोने में दुबककर बैठी उस युवती ने अपने चित्र को देखा, तो उसकी आंखों में आंसू आ गए कि कैसी विडंबना है! उसका चित्र दस लाख रुपये में बिक रहा है और उसको खाने के लिए दस रुपये भी कोई देने वाला नहीं है।

आशय यह कि प्रतिबिंबों की दुनिया जहां होती है, वहां ऐसा ही होता है। वास्तविकता को ओझल नहीं होने दिया जाना चाहिए। अगर ऐसा होता है, तो वास्तविकता सामने नहीं आती।


janwani address 9

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