- प्रत्याशी जाति-धर्म के आधार पर वोटरों को रहे साध
- कैराना में पलायन के आगे समस्याएं का समाधान नहीं
जनवाणी संवाददाता |
ऊन/शामली: प्रदेश में चुनाव का बिगुल बज चुका है। राजनीतिक पार्टियों ने अपने-अपने उम्मीदवार भी लगभग फाइनल कर दिए लेकिन चुनाव में आम जनता के मुद्दे दिखाई नहीं दे रहे हैं।
इसलिए प्रत्याशी भी मतदाताओं का ध्रवीकरण जाति और धर्म के आधार पर करने की कोशिश कर रहे हैं जिससे विकास के मुद्दे गौण हो गए हैं।
प्रदेश में चुनाव का बिगुल बजते ही राजनीतिक पार्टियों के प्रत्याशी मैदान में आ गए हैं। जनपद में थानाभवन में भाजपा, रालोद और आम आदमी पार्टी ने जहां अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं, वहीं बसपा और कांग्रेस अभी वेट एंड वाच की स्थिति में है।
शामली और कैराना विधानसभा सीट पर कांग्रेस को छोड़ सभी राजनीतिक दलों ने अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। कैराना विधानसभा का जहां तक सवाल है तो हर बार चौपाल और चबूतरे की जंग देखने को मिलती रही है।
हार जीत का फैसला इन दोनों परिवारों के बीच ही होता है लेकिन क्षेत्र में जनता की समस्याएं ज्यों की त्यों बनी रहती है। कैराना विधानसभा के ऊ न क्षेत्र में सड़कों की हालत बहुत खराब है। कैराना से ऊन, ऊन से चौसाना मुख्य मार्ग हैं लेकिन सड़कों में गहरे गहरे गड्ढे हैं।
इसके अलावा मुख्य समस्या ऊ न चीनी मिल के रास्तों की है जिससे लगभग पूरे क्षेत्र के किसान गन्ना लेकर जाते हैं। रास्ते इतने खराब हैं कि उन पर पैदल चलना भी दुश्वार है। काठा नदी के जर्जर पुल हर बार टूट जाते हैं।
इस बार भी काठा नदी का पुल टूट गया लेकिन किसी भी जनप्रतिनिधि ने उसके निर्माण की ओर कोई कदम नहीं बढ़ाया।
इसके अलावा गन्ना भुगतान मुख्य मुद्दा है। चुनाव से पहले सभी राजनीतिक दल जोर शोर से समस्या के हल का वादा करते हैं लेकिन हल नहीं हो पाता। क्षेत्र में डिजिटल इंडिया का सपना भी सपना बनकर रह गया।
दूरसंचार कंपनियां उपभोक्ताओं से मोटा मुनाफा कमाती है लेकिन मोबाइल टावर शो-पीस बनकर रह गए। पूरे क्षेत्र में मोबाइल नेटवर्क की समस्या जस की तस है।
ऊन तहसील मुख्यालय होने के बावजूद भी आज तक थाना नहीं बन पाया न ही सांसद न हीं विाायक ने इस ओर यान दिया शिक्षा के क्षेत्र में भी कोई विकास नहीं हो पाया। हर बार क्षेत्र के लोग अपने जनप्रतिनिधियों से डिग्री कलेज बनवाने की मांग करते हैं|
लेकिन कोई ध्यान नहीं दिया गया। क्षेत्र के बच्चे शामली करनाल वह दूसरे क्षेत्रों में पढ़ने के लिए जाते हैं। यातायात के साधनों का भी घोर अभाव है।
रोडवेज की इक्का-दुक्का बसें छोड़कर प्राइवेट बसों का भी संचालन नहीं हो पाता। समावादी पार्टी की सरकार में बनी ऊन तहसील तक नागरिकों को आने जाने में भी भारी परेशानी उठानी पड़ती है।
क्षेत्र की जनता हर बार अपना जनप्रतिनिधि चुनकर ठगा महसूस करती है। जब चुनाव आता है जनप्रतिनिधि बाहरी मुद्दे जोर-शोर से उठाते हैं लेकिन क्षेत्रीय मुद्दों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता।