Saturday, July 27, 2024
- Advertisement -
Homeसंवादशुद्ध जल

शुद्ध जल

- Advertisement -

Amritvani


गुरु नानक ने बहुत नेक दिल पाया था। उनके दिल में सबके लिए दर्द था। वह चाहते थे कि सब लोग मिलकर भाई-भाई की तरह रहें, एक-दूसरे को प्यार करें और एक दूसरे के दुख-दर्द में हाथ बटाएं। किसी का बुरा ने सोचें। एक दूसरे से किसी तरह का भेदभाव न करें। यह तब संभव हो सकता था, जब लोग सादगी और परिश्रम का जीवन बिताएं, कोई किसी को छोटा या बड़ा न समझे और दुनियादारी से ऊपर रहें। गुरू नानक के जीवन में ये सब गुण भरपूर थे। इन्हीं गुणों ने उन्हें महान बनाया था। एक बार वह किसी सभा में बहुत देर तक बोले। बोलते-बोलते उन्हें बहुते तेज प्यास लगी, तो उन्होंने कहा, ‘शुद्ध जल लाओ।’ एक पैसे वाला भक्त जल्दी से उठा और उनके सामने चांदी के गिलास में पानी पेश किया। गिलास लेते समय नानक की निगाह उसके हाथ पर गई। भक्त का हाथ बहुत मुलायम था। नानक ने उसका कारण पूछा तो वह बोला, ‘महाराज, बात यह है कि मैं अपने हाथ से कोई काम नहीं करता। घर में नौकर-चाकर हैं, सारा काम वही करते है।’ नानक ने गंभीर होकर कहा, ‘जिन हाथों ने कभी कड़ी मेहनत न की हो, वह हाथ शुद्ध हो ही नहीं सकता। मैं तुम्हारे इस हाथ का पानी नहीं ले सकता।’ इतना कहकर नानक ने पानी का गिलास लौटा दिया। इससे पता चलता है कि नानक कितने महान थे।


janwani address 8

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
- Advertisement -

Recent Comments