Tuesday, December 3, 2024
- Advertisement -

निर्विवादित हो राम की प्राण प्रतिष्ठा

Nazariya


TANVIR ZAFARIअयोध्या में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम चंद्र जी की मूर्ति की बहु प्रतीक्षित प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी को होना प्रस्तावित है। अयोध्या विवाद पर दिए गए सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद सरकार ने आनन फानन में एक 15 सदस्यीय ट्रस्ट का गठन किया। सरकार ने इसमें अपनी मर्जी से अपनी पसंद के लोगों को ट्रस्टी बनाया। जिसमें अधिकांश लोग आरएसएस व विश्व हिंदू परिषद से जुड़े या इसी विचारधारा के लोग हैं। अब यही ट्रस्ट न केवल मंदिर का निर्माण कर रहा है, बल्कि इसी ट्रस्ट ने भगवान श्री राम चंद्र जी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के लिए भी 22 जनवरी का दिन भी निर्धारित कर दिया है। परन्तु अफसोस की बात यह है कि भारत वर्ष के सबसे प्रतिष्ठित,पूज्य,आदरणीय व स्वीकार्य भगवान श्री राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम जितना ही निर्विवाद, सर्वमान्य व सर्व स्वीकार्य होना चाहिए, उतना ही अधिक यह आयोजन विवादों में घिरता जा रहा है। यहां तक कि खबर है कि ‘हिन्दू मैनुफेस्टो’ नमक संस्था जोकि कथित तौर पर हिंदू धर्म के हितों हेतु कार्य करती है, से सम्बद्ध एक व्यक्ति ने 8 जनवरी को ट्रस्ट को एक आपत्ति पत्र व कानूनी नोटिस भेजा है जिसमें कई बातों पर आपत्ति दर्ज की गई है। इनकी आपत्तियों में किसी भी शादी शुदा व्यक्ति का यजमान बनने पर उसका सपत्नीक अनुष्ठान में शामिल होना ही शास्त्र सम्मत है फिर प्रधानमंत्री मोदी अकेले ही यजमान कैसे? शास्त्रों के अनुसार इस अवसर पर मोदी की अकेले की जाने वाली पूजा शास्त्र सम्मत नहीं। दूसरा यह कि पूजा के समय गर्भ गृह में पांच लोगों की सूची में संघ प्रमुख मोहन भागवत का नाम किस आधार पर? जबकि मोहन भागवत एक गैर रजिस्टर्ड संस्था के प्रमुख मात्र हैं? इसी तरह सरकार द्वारा स्वामी विजेंद्र सरस्वती को शंकराचार्य बताया जा रहा है। जबकि 22 सितंबर 2017 को इलाहबाद उच्च न्यायालय यह निर्णय भी दे चुका है कि केवल वर्तमान चार पीठों के प्रमुखों को ही शंकराचार्य माना जायेगा। और पांचवां फ्रÞॉड समझा जाएगा।

उधर, चारों पीठों के वास्तविक शंकराचार्यों की विभिन्न कारणों से प्राण प्रतिष्ठा आयोजन से नाराजगी व दूरी जग जाहिर हो चुकी है। सभी शंकराचार्य इस विषय पर सार्वजनिक तौर पर अपना विरोध दर्ज करवा चुके हैं। इन सभी सम्मानित शंकराचार्यों की एक सामान्य, सबसे महत्वपूर्ण व शास्त्र सम्मत आपत्ति तो यही है कि मंदिर भवन अभी भी अधूरा है। इसके पूरा होने में अभी लगभग एक वर्ष का समय और लग सकता है। यहां तक कि इसका मुख्य शिखर भी अभी तक तैयार नहीं। और जब शिखर तैयार नहीं तो मंदिर की ध्वजा कहां स्थापित होगी? ऐसे गंभीर प्रश्नों के साथ सभी शंकराचार्य आपत्ति दर्ज कर रहे हैं। और इस पूरे आयोजन को ही शास्त्र विरुद्ध बता रहे हैं। उनका साफ कहना है कि यह पूरा आयोजन, सरकार आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर केवल राजनैतिक लाभ हासिल करने के लिये कर रही है। बहरहाल, सरकार को शंकराचार्यों की आपत्तियों की तो कोई परवाह नहीं है, बल्कि सरकार मंदिर निर्माण के नाम पर की जा रही राजनीति को और भी तेज धार देने में व्यस्त है। अब उसकी नजरें इसपर हैं कि 22 जनवरी के आयोजन का निमंत्रण पाने वालों में कौन-कौन लोग नहीं आ रहे हैं। कांग्रेस सहित इंडिया गठबंधन के विभिन्न दलों के नेता इस आयोजन से किनारा काट रहे हैं। कांग्रेस का कहना है कि धर्म व्यक्ति का निजी विषय है परन्तु बीजेपी और आरएसएस लंबे समय से इस मुद्दे को राजनीतिक प्रोजेक्ट बनाते रहे हैं। स्पष्ट है कि एक अर्धनिर्मित मंदिर का उद्घाटन केवल चुनावी लाभ उठाने के लिए किया जा रहा है। निमंत्रण अस्वीकार करने वालों को भाजपा ने ‘रामद्रोही’ नामक एक नई श्रेणी बनाकर उसमें डाल दिया है और दलाल मीडिया सत्ता की बीन पर ‘नागिन डांस’ करने लगा है। मीडिया के बूते की बात नहीं कि वह चारों शंकराचार्यों के विरुद्ध भी ऐसे शब्दों का प्रयोग कर सके जैसे शब्द वह इंडिया गठबंधन नेताओं विशेषकर कांग्रेस के बारे में प्रचारित कर रहा है। उधर शंकराचार्यों की आपत्ति का जवाब जिन शब्दों में विश्व हिंदू परिषद के उपाध्यक्ष व श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय द्वारा दिया गया और मयार्दा पुरुषोत्तम को भी सम्प्रदाय में बांटने की कोशिश की गयी वह तो बेहद आपत्तिजनक है। उनके बयान के बाद तो कई शंकराचार्य चंपत राय पर भी भड़क उठे हैं।
इन सब बातों के बावजूद सरकार व ट्रस्ट ने मंदिर मस्जिद विवाद में मुख्य पक्षकार मुद्दई स्वर्गीय हाशिम अंसारी के पुत्र इकबाल अंसारी को भी मंदिर ट्रस्ट ने आमंत्रण पत्र भेजा है। गौरतलब है कि लंबे अदालती विवाद के दौरान मुद्दई रहे इकबाल के पिता हाशिम अंसारी न्यायालय में पैरोकारी करने दिगंबर अखाड़ा के महंत परमहंस राम चंद्र दास के साथ ही आते जाते थे। दोनों मित्र थे, जबकि वह विपक्ष से पैरोकारी करने वाले थे। खबरों के अनुसार महंत के साकेतवासी होने के दौरान हाशिम अंसारी दिगंबर अखाड़ा पहुंचे थे और उनकी मृत्यु से बेहद दुखी थे। वे उस समय खूब रोये भी थे। सवाल यह है कि जब सरकार इकबाल अंसारी को आमंत्रित कर सांप्रदायिक सद्भाव का संदेश देना चाह रही है तो इतने बड़े आयोजन में शंकराचार्यों से नाराजगी मोल लेने का औचित्य क्या? विपक्षी दलों पर निशाना साधना उन्हें रामद्रोही साबित करना व शास्त्र असम्मत कदमों के बाद भी स्वयं को ही ‘धर्म’ ध्वजावाहक प्रमाणित करने का सत्ता प्रयास और चुनावों में समय पूर्व किये जा रहे इस आयोजन को भुनाने की तैयारी कैसे मुनासिब कही जा सकती है? वास्तव में ‘मयार्दा पुरषोत्तम’ भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा तो पूरी तरह अराजनैतिक व निर्विवादित होनी चाहिए।


janwani address 8

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

स्टांप घोटाले में नाम आते ही कई बिल्डर लापता

एसआईटी ने जारी किया नोटिस, 950 लोगों के...

शहर में 100 से ज्यादा अवैध हॉस्पिटल

हाईकोर्ट ने तलब की रिपोर्ट, साल 2018-19 में...

उत्तराखंड में चारधाम यात्रा पूरे साल चलेगी, बन रही योजना: धामी

भले उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड अलग पर दोनों के...

गरीब और लक्षित लाभार्थियों को दिलाया जाए योजनाओं का लाभ: मौर्य

मेरठ पहुंचे डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, कहा...

सेंट्रल मार्केट के अवैध निर्माणों को लेकर फैसला इसी माह

सेंट्रल मार्केट 661/6 के व्यापारियों को 10 साल...
spot_imgspot_img