भौतिक प्रगति के इस अंधी दौड़ के युग में हम कहां पहुंच गए हैं इस पर रुक कर सोचने, चिंतन करने और यह सही है या गलत इस पर विचार करने का भी समय आज शायद हमारे पास नहीं है। बस, हर तरफ एक ही महत्वाकांक्षा है और वह है अधिक से अधिक पैसा कमाना, संपत्ति जोड़ना और अपना वर्चस्व स्थापित करना। विशेष तौर पर युवा पीढ़ी आज भौतिक लब्धि के उस मकड़ जाल में बुरी तरह फंस गई है जिसमें इच्छाओं का कोई अंत नहीं होता। महत्वाकांक्षी होना अच्छा है मगर महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए कुछ भी कर डालना अच्छा नहीं कहा जा सकता। आज वह दौर चल रहा है जिसमें भावनाएं, संबंध एवं दया,करुणा, ममता, प्रेम, निश्छलता बहुत पीछे छूट गए हैं और उनकी जगह तर्क, इंटेलिजेंस कोशिएंट यानी बुद्धि लब्धि, तर्क-वितर्क और स्वार्थपरता ने ले ली है। आज हम इतने आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं कि पड़ोस में भी कुछ हो तो हमें कोई असर नहीं पड़ता। हमारे सामने ही कोई किसी का कत्ल कर दे तो हम वीडियो बनाकर उसे वायरल तो करते हैं, लेकिन किसी की जान बचाने के लिए जरा सा जोखिम लेने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। इसे तो छोड़िए आज हम रक्त संबंध तक की लिहाज नहीं कर रहे हैं। समाज में एक नहीं दो नहीं हजारों लाखों ऐसे प्रकरण रोज सामने आ रहे हैं जिन में मानवता एवं मानवीय संबंधों की पूरी तरह उपेक्षा करते हुए हिंसा, हत्या, बलात्कार, उत्पीड़न, दैहिक एवं मानसिक शोषण जैसे कृत्य समाज में नित्य प्रति घटित हो रहे हैं।
पिछले वर्ष एक समाचार आया था जिसमें एक मां ने अपने चार बच्चों की इसलिए हत्या कर दी थी क्योंकि वह उनके लिए खाना नहीं जुटा पा रही थी और इस वर्ष एक मां ने अपने 4 वर्षीय बच्चे को इसलिए मार डाला क्योंकि उसे बच्चे का चेहरा देखकर उसे अपने तलाकशुदा पति की याद आती थी और कोर्ट के आदेश को मानने की बाध्यता के चलते उसे हर हफ्ते अपने उसे पति से मिलवाना पड़ता था, जिससे वह तलाक ले रही थी। अब उन दोनों के संबंध कैसे थे वें क्यों तलाक चाहते थे या तलाक उचित था अथवा अनुचित यह सब बातें अप्रासंगिक हो गई है लेकिन एक मां केवल इसलिए अपने बच्चे को मार दे कि उसका चेहरा उसे किसी की याद दिलाता है इससे ज्यादा वीभत्स बात और क्या होगी।
सूचना सेठ नाम की है महिला कोई अनपढ़ गवार या बुद्धिहीन महिला नहीं थी आर्थिक रूप से भी वह गरीब या टांग खाली वाली स्त्री नहीं थी, बल्कि माइंडफुल आई नाम की कंपनी की चीफ एग्जीक्यूटिव आॅफिसर थी और उसने अपनी बुद्धिमत्ता तथा प्रशासनिक योग्यता के चलते हुए देश की सोच सबसे प्रतिभाशाली महिलाओं में स्थान बनाया था एक छोटे से स्टार्टअप को उसने एक बड़ी कंपनी में परिवर्तित किया था। यानी वह एक ऐसी महिला थी जिसे हम आजकल के हिसाब से संभ्रांत एवं सभ्य महिला कह सकते हैं। सूचना सेठ नाम की महिला ने शादी भी अपनी पसंद के व्यक्ति वेंकट रमन से की थी जो खुद एक बड़ी कंपनी में कार्यरत था और जिनकी आर्थिक स्थिति काफी अच्छी थी। 2010 में की गई है शादी अब तलाक के दौर में थी और इस बीच 39 वर्ष की सूचना को एक बेटा भी हुआ।
कोई यकीन नहीं करेगा कि अपने इकलौते बेटे से कोई मां कभी इतनी नफरत कर सकती है कि वह उसकी हत्या ही कर दे। इतनी सी उम्र का बच्चा इतनी बड़ी नफरत करने का कोई कारण हो ही नहीं सकता है लेकिन ऐसा हुआ। नफरत पति-पत्नी के बीच पनपी और शिकार बच्चा बन गया। इतना ही नहीं होटल या गेस्ट हाउस में शान के साथ रहते हुए इस महिला ने बड़े शांत मन से जो कुछ किया वह मां को अशांत करने वाला है। यद्यपि अभी इस बारे में कुछ भी कहना बहुत जल्दबाजी होगी क्योंकि वह गिरफ्तार हुई है उसे न्यायालय में पेश किया जाएगा। केस चलेगा, वकीलों के तर्क वितर्क होंगे, न्यायालय फैसला देगा तब कहीं जाकर असलियत सामने आएगी और हो सकता है एक न्यायालय का दिया गया फैसला नजीर बने या फिर उसके खिलाफ अपील करते हुए एक लंबा समय बीत जाए। अभी यह कहना भी ठीक नहीं होगा कि सूचना ही 100 प्रतिशत दोषी है यद्यपि समाचार पत्रों एवं चैनलों की रिपोर्ट इसी और संकेत कर रही है लेकिन इस घटना के सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक कर्म का विश्लेषण बहुत जरूरी है।
आज के इस दौर को तकनीकी एवं डिजिटल युग के साथ-साथ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी ए आई का युग कहा जा रहा है। बेशक बहुत परिवर्तन हुए हैं, हो रहे हैं और होते रहेंगे। हमारी वास्तविक एवं व्यवहारिक दुनिया के साथ-साथ सोशल प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से एक वर्चुअल दुनिया भी हमें बहुत गहरे तक प्रभावित कर रही है। आज की असलियत यह है कि भले ही हम अपने पड़ोसी को न जानें, वास्तविक व व्यावहारिक जीवन में हमारा एक भी सच्चा मित्र न हो मगर बहुत सारे वर्चुअल फ्रेंड्स हमारे हो सकते हैं। इन सोशल साइट्स, टीवी चैनलों, यूट्यूब चैनलों एवं दूसरे माध्यमों पर किस प्रकार की सामग्री उपलब्ध है उसके बारे में बहुत कुछ कहने को है। सच यह है कि वहां पर अधिकांश सामग्री पोस्ट करने वाले हम लोग खुद हैं। अब यह जानकारी या सामग्री कितनी प्रामाणिक है और इसका आफ्टर इफेक्ट क्या होगा इसके बारे में सोचने का वक्त शायद किसी के पास नहीं है और इसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं।
आज के युवा बुद्धि लब्धि के मामले में निश्चित रूप से पिछली पीढ़ियों से बहुत आगे हैं और अपने गांवों, शहरों से दूर रहकर वह अथक परिश्रम भी कर रहे हैं और बेशुमार दौलत भी कमा रहे हैं। उनका जीवन ऐशो आराम से परिपूर्ण हो गया है जिसका फायदा बाजार पूरी तरह उठाता है और इस बेशुमार दौलत ने इस नवधनाढ्य वर्ग को एकदम संवेदना रहित एवं आत्म केंद्रित बना दिया है। उन्हें सब कुछ चाहिए और सब कुछ अपने अनुसार होते देखना उनका स्वभाव बन गया है। यदि उनकी सोच से इतर कुछ होता है तो वह उसे अस्वीकार ही नहीं करते अपितु नष्ट करने में भी उन्हें एक क्षण नहीं लगता। शायद दौलत का नशा और वर्तमान समाज का स्वभाव उसे एक ऐसा अति आत्मविश्वास दे देता है कि वह कुछ भी करने से डरता। न ही यह जानते हुए भी कि उसने गलत किया है उसके चेहरे या मन पर पश्चाताप का कोई भाव दिखाई नहीं देता।
यदि मानवीय गुणों को हम इसी तरह उपेक्षित करते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब हम आधुनिक तकनीक बुद्धिलब्धि एवं संसाधनों रूपी हथियारों से लेस असभ्य युग में प्रवेश कर चुके होंगे और बिना हाथ में शस्त्र लिए भी एक ऐसी मार काट समाज में व्याप्त होगी जो शायद दिखाई न दे लेकिन असर बहुत अधिक करेगी।