प्रभु राम का जन्म त्रेता युग में हुआ था। यह उस समय की बात है, जब प्रभु राम को पृथ्वी लोक से वापिस देव लोक को प्रस्थान करना था। भगवान राम के जाने का समय नजदीक था, हनुमान जी के रहते उन्हे कोई ले जा नही सकता था। अब राम को अपने जाने के प्रयोजन को हनुमान जी से गुप्त भी रखना था और उन्हें पृथ्वी लोक के चक्र को स्वीकार करना भी सिखाना था। भगवान राम ने,हनुमान जी की नजरों से बचा कर अपनी अंगूठी को पृथ्वी पर गिरा दिया और अगूंठी पृथ्वी में पड़ी एक छोटी सी दरार से होते हुए , पाताल लोक पहुंच गई। जिसे हनुमान जी ने देख लिया और वे यह भी भांप गए की उसके प्रभु राम अपनी अंगूठी को गंवा कर बहुत दुखी हो गए हैं। हनुमान जी अपने प्रभु का दुख सहन नही कर सकते थे।
हनुमान जी ने अत्यंत लघु रूप धारण किया और उसी दरार से पाताल लोक में प्रवेश कर गए। वहां उनका सामना पाताल लोक के राजा से हुआ। उन्होंने हाथ जोड़कर अभिवादन किया और पूछा, राजन…मेरे प्रभु राम की अंगूठी त्रुटिवश आपके पाताल लोक में आ गई है कृपया करके मुझे वो अंगूठी दे दीजिए। पाताल नरेश ने हनुमान जी के सामने अंगूठियों से भरी हुई थाली यह रख दी। हनुमान जी यह देखकर चकित रह गए की पूरी थाली ही राम की अंगूठियों से भरी हुई थी। पाताल के राजा ने रहस्य से पर्दा उठाते हुए हनुमान जी को बताया, प्रिय हनुमान…राम तो हर त्रेता युग में आते रहे हैं। सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग एक के बाद एक, चारों युग चक्कर लगाते रहते है और हर त्रेता युग में प्रभु राम को पृथ्वी लोक पर असुरों के संहार के लिए आना ही पड़ता और संहार के बाद इस लोक से वापिस देव लोक को जाना ही पड़ता है। अर्थात रामायण हर त्रेता युग में दोहराई जाती रही है।
-राजेंद्र कुमार शर्मा