दादा धर्माधिकारी |
2024 का साल गांधीवादी विचारक दादा धर्माधिकारी का 126 वां जयंती वर्ष है। इस अवसर पर उनके विचारों को समझने की खातिर उनका यह लेख पुन: प्रकाशित किया जा रहा है।
आज संसार के तरूणों में एक उत्कंठा जोर पकड़ रही है। उस उत्कंठा का स्वरूप है प्रत्यक्ष जीवन की आकांक्षा। प्रत्यक्ष जीवन क्या है? प्राथमिक जीवन प्रत्यक्ष जीवन नहीं है। आधुनिक सुसंस्कृत मनुष्य का अर्वाचीन जीवन भी प्रत्यक्ष जीवन नहीं है। प्रत्यक्ष जीवन का अर्थ है मनुष्य का एक-दूसरे के साथ जीना। यह एक निष्कर्ष है। दूसरा निष्कर्ष यह कि हमारे देश में और संसार में मनुष्य एक-दूसरे के पड़ौस में जीते हैं, पर साथ नहीं जीते। उनमें मैत्री नहीं है। वे एक-दूसरे के समीप हैं, पर उनमें सौहार्द नहीं है। यह समीपता केवल शरीर की है, मन की नहीं। यह जो पडौसीपन है, उस पड़ौसीपन के साथ मनुष्य की मैत्री का विकास कैसे हो, इस पर हमें विचार करना है।
मनुष्य पड़ोसी होते हुए भी मित्र क्यों नहीं है, इसके कई कारण हैं। मनुष्य एक-दूसरे के समीप होते हुए भी एक-दूसरे के साथ जीते नहीं हैं। इसमें चन्द बाधाएं हैं। एक है – मालिकी और मिल्कियत। दूसरा है – संप्रदाय या धर्म। तीसरा-जाति। चौथा-भाषा एवं संस्कृति और पांचवां – वंश या रेस। यदि इन सब बाधाओं को हटाना है, यदि इनका निराकरण करना है, तो आज समाज की बुनियाद ही बदलनी होगी। उसके बिना चारा नहीं। इधर-उधर थोड़ा-बहुत फेरफार करने से मसला हल होने वाला नहीं है। समूचे समाज की बुनियाद ही बदलनी चाहिए।
क्रांति के दो आयाम हैं। पहला है संदर्भ बदलना और दूसरा है समाज में जो ‘प्रचलित मूल्य’ हैं, उन्हें बदलना। समाज में जो तात्कालिक मूल्य हैं, उन्हें ’प्रचलित मूल्य’ कहते हैं। जीवन के चन्द शाश्वत मूल्य होते हैं। शाश्वत मूल्यों की एक ही पहचान है। जिसे किसी प्रकार के कारण की जरूरत नहीं होती, वह शाश्वत मूल्य होता है। किसी भी कारण से जो बदलता नहीं, जिसमें परिवर्तन नहीं होता, वह शाश्वत मूल्य है। ऐसे शाश्वत मूल्य कौन-से हैं? जिन मूल्यों के आधार पर जीवन के अन्य सारे मूल्यों की कीमत आंकी जा सके, ऐसे मुख्य मूल्य जीवन में कौन से हैं?
आध्यात्मिक क्षेत्र में कई लोगों को लगता है कि इस जीवन का खास मूल्य नहीं है। इसकी चर्चा यहां हमें नहीं करनी है, लेकिन बाकी संसार के जितने भी क्रांतिकारी हुए, वे सब इस बारे में एक मत हैं, सब एक स्वर से कहते हैं कि परम मूल्य ‘जीवन’ है। जीवन का संरक्षण और जीवन का संवर्धन, मनुष्य के जीवन की सुरक्षा और मनुष्य के जीवन का विकास क्रांति का लक्ष्य है। जीवन का मापक भी जीवन ही है। बाकी सब वस्तुओं का बाजार भाव इस जीवन के नाप से तय करना होता है। आज उस प्रकार तय नहीं किया जाता। जीवन की दृष्टि से वस्तुओं का मूल्यांकन करने का नाम क्रांति है। मूल्य परिवर्तन कैसे होगा?
हेनरी मिलर कहता है कि विश्वव्यापी, जगत व्यापी क्रांति होना चाहिए। ‘ए वर्ल्डवाइड रिवोल्यूशन फ्राम टॉप टु बॉटम, इन आॅल रेल्म्स आॅफ ‘ूमन कान्शसनेस।’ मानव चेतना के समूचे क्षेत्र में जड़-मूल से क्रांति चाहिए। हेनरी मिलर कोई आध्यात्मिक पुरूष नहीं है। महानास्तिक है। वह कहता है यहां हमने खेती का भी प्रयोग शुरू किया है और वह एक समग्र विचार है क्रांति का। आजकल के कृषि विज्ञान में ‘लिविंग सायकल’ यानी इस मिट्टी में जो जीवन है, जो जीवजन्तु हैं, उनका स्थान है, इसका भी विचार किया जाता है। इसलिए उसमें इकॉलॉजी का अन्तर्भाव होता है। इस सारे विचार को फरकिस ने ‘न्यू होलिज्म’ का नाम दिया है।
इसके बाद तीसरा विषय है झ्र ‘न्यू इमेन्टिज्म।’ मनुष्य के इस त्रिविध संदर्भ का अधिष्ठान एक मूलभूत सर्वव्यापी चैतन्य-तत्व का ब्रम्हांड-व्यापी जीवन है। वह है इमेन्टिज्म। इस तत्व को कोई जीवन शक्ति कहता है, कोई ऊर्जा कहता है, किसी ने ब्रम्ह कहा तो किसी ने परमात्मा तत्व कहा। कई नाम दिये गये हैं। सारांश यही कि मानवीय संबंधों की जड़ में एक अधिष्ठानभूत, अखंड और सर्वव्यापी चैतन्य है। इतना सारा आशय है, संदर्भ परिवर्तन का। इतना सब क्यों कहना पड़ा? पुराने समाजवादियों ने और आज तक के साम्यवादियों ने केवल इतना ही विचार किया कि उत्पादन और वितरण का संबंध बदल जाता है तो संदर्भ बदल जाता है। उत्पादन का संबंध उत्पादन के औजार और उत्पादन की पद्धति में परिवर्तन आ जाए तो संदर्भ परिवर्तन हो गया, क्रांति हो गयी, लेकिन यह क्रांति का समग्र विचार नहीं है।