धान की फसल में इस मौसम में कई तरह के कीट और रोग लगने की संभावना रहती है, झुलसा रोग सबसे आम है। कृषि विज्ञान केंद्र निरंतर किसानों को झुलसा रोग के बारे में जानकारी देते रहते है। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि यह रोग कवक से पैदा होता है और धान में पौध से बाली बनने तक कभी भी हो सकता है। धान की बाली, तने की गाठें और पत्तियों पर इसके लक्षण सबसे अधिक प्रकट होते हैं। झुलसा रोग को नियंत्रित करने के लिए किसानों को निम्नलिखित उपायों का पालन करना चाहिए जो की इस लेख में निचे दिए गए है।
कैसे पहचाने झुलसा रोग के लक्षण
रोग की शुरुआत में, निचली पत्तियों पर हल्के बैंगनी रंग के छोटे-छोटे धब्बे बनते हैं। ये धब्बे धीरे-धीरे चौड़े होते जाते हैं और किनारों पर संकरे होते जाते हैं, जिससे वे बढ़कर नाव के आकार का हो जाते हैं। आगे चलकर रोग तने की गाठों पर आक्रमण करता है, जिससे गाठों पर काले घाव बनते हैं नोड ब्लास्ट रोगग्रस्त गठान को टूटता है धान की बालियां जब निकलती हैं, तो प्रकोप होता है, जिससे धान की बाली सड़ जाती है और हवा चलने से बालियां टूटकर गिर जाती हैं।
झुलसा रोग को नियंत्रित कैसे करें?
-खेतों को खरपतवार से मुक्त रखें और पुरानी फसल के अवशेष को नष्ट कर दें।
-परीक्षण बीजों का चयन करें।
-समय पर बुवाई करें और रोग प्रतिरोधी किस्म चुनें।
-रोपाई को जुलाई के पहले सप्ताह में पूरा करें। देर से रोपाई करने पर झुलसा रोग लगने का खतरा बढ़ जाता है।
-बीज को 4 ग्राम/कि.ग्रा. जैविक कवकनाशी ट्राइकोडर्मा विरीडी या 10 ग्राम/कि.ग्रा. स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस या 2 ग्राम/कि.ग्रा. रासायनिक फफूंद नाशक कार्बेन्डाजिम से उपचारित करें।
-पोषक तत्वों का संतुलित उपयोग करें। झुलसा रोग के प्रकोप में यूरिया का उपयोग नहीं करना चाहिए। कल्ले और बाली निकलते समय खेत को नम रखें।
-रोग के लक्षण दिखने पर फसलों पर 25 प्रतिशत ट्राईफ्लॉक्सी स्ट्रोबिन, 50 प्रतिशत टेबूकोनाजोल, 80-100 ग्राम डब्ल्यूजी या 75 प्रतिशत ट्राईसाइक्लाजोल, डबल्यूपी 100-120 ग्राम या 40 प्रतिशत आइसोप्रोथियोलेन एउ 250-300 मि.ली. प्रति एकड़ छिड़काव करें।
-इन सभी कार्य को कर के आप अपनी फसल में इस रोग का आसनी से नियंत्रण कर सकते है। रोग का समय पर नियंत्रण होने पर फसल को नुकसान से बचाया जा सकता है।
फसल में रोग को नियंत्रण करने के लिए उस रोग के लक्षणों का पता होना जरूरी है, अपनी फसल पर नियंत्रण निगरानी रखें जिससे की रोग की पहचान आसनी से की जा सके और फसल में समय रहते नियंत्रण उपायों को लागू किया जा सके।