नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हादिक अभिनंदन और स्वागत है। भारत की सांख्यिकी मंत्रालय के अनुसार मई महीने में वार्षिक आधार पर 25 महीने के निचले स्तर 4.25 प्रतिशत पर पहुंचने के बाद जून में भारत की खुदरा मुद्रास्फीति बढ़कर 4.81 प्रतिशत हो गई है। उपभोक्ता-मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित महंगाई लगातार चौथे महीने भारतीय रिजर्व बैंक के 2-6 प्रतिशत के टॉलरेंस बैंड के अंदर बनी हुई है।
सांख्यिकी मंत्रालय ने जून माह के भारत की खुदरा महंगाई दर के आंकड़े जारी कर दिए हैं। ताजा आंकड़ों के अनुसार खुदरा महंगाई दर बढ़कर 4.81 प्रतिशत हो गई है। यह इससे पहले मई महीने में 4.25 प्रतिशत पर दर्ज की गई थी। इस तरह जून में महंगाई दर में 0.56 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है, जो बढ़कर कुल 4.81 फीसदी के आंकड़े पर जा पहुंची है।
उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (CFPI) मई में 2.91 प्रतिशत से घटकर जून में 4.49 प्रतिशत हो गई। ग्रामीण मुद्रास्फीति 4.72 प्रतिशत रही है, जबकि शहरी मुद्रास्फीति 4.96 प्रतिशत दर्ज की गई है। महंगाई दर में बढ़ोत्तरी को पिछले कुछ हफ्तों में सब्जियों विशेषकर टमाटर की कीमतों में उम्मीद से अधिक तेजी के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
सब्जियों की महंगाई दर मई में 8.1 प्रतिशत थी, जिसमें 0.93 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है। फूड एंड बेवरेज की महंगाई दर 4.63 प्रतिशत रही और फ्यूल सेगमेंट के लिए महंगाई का का स्तर 3.92 प्रतिशत दर्ज किया गया। अनाज की महंगाई दर मई में 12.65 फीसदी से मामूली बढ़कर जून में 12.71 फीसदी हो गई है।
एक जानकारी के अनुसार, जून 2023 में सामान्य से कम बारिश के कारण 7 जुलाई 2023 को सालाना आधार पर खरीफ की बुआई 8.7 प्रतिशत कम रही है। उत्तर भारत में अधिक बारिश से खराब होने वाली वस्तुओं, खासकर सब्जियों की कीमतों में वृद्धि से फूड महंगाई और बढ़ने की संभावना है। इसके अलावा भारत में मानसून और बुआई पर अल नीनो के प्रभाव की सावधानीपूर्वक निगरानी करने की आवश्यकता है।
जून में फुटकर महंगाई 4.81 फीसदी पर पहुंच गई है। मई में यह 25 महीने के निचले स्तर 4.25 फीसदी पर आ गई थी। जून में सब्जियों की ऊंची कीमतों के कारण महंगाई बढ़ी है। असमान मानसूनी बारिश ने फसलों को नुकसान पहुंचाया है जिससे दाम बढ़े हैं।
कंज्यूमर फूड प्राइस इंडेक्स (CPI) जून में बढ़कर 4.49 फीसदी पर पहुंच गया। मई में ये 2.96 फीसदी था। वहीं अप्रैल में यह 3.84 फीसदी रहा था। ये इंडेक्स खाने-पीने के सामान के दामों में बढ़ोतरी और उनमें कमी को दिखाता है। CPI बास्केट में लगभग आधी हिस्सेदारी खाने-पीने की चीजों की होती है।
जून में महंगाई भले ही बढ़ी है, लेकिन ये रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया यानी RBI के 6 फीसदी की टॉलरेंस लिमिट से नीचे है। महंगाई के पूरे वित्त वर्ष में RBI के अपर टॉलरेंस लिमिट 6 फीसदी से नीचे ही रहने की संभावना है। RBI की महंगाई की निचली टॉलरेंस लिमिट 2 फीसदी है।
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शहरी महंगाई दर बढ़कर 4.96 फीसदी (MoM)
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ग्रामीण महंगाई दर बढ़कर 4.72 फीसदी (MoM)
अभी और बढ़ सकती है महंगाई
एक कंपनी के फाउंडर ने बताया कि, ‘रिटेल इन्फ्लेशन दो साल के निचले स्तर पर पहुंचने के बाद फिर से बढ़ी है। रिटेल इन्फ्लेशन में ग्रोथ का मुख्य कारण बेमौसम मानसून की बारिश, सब्जियों- मुख्य रूप से टमाटर की कीमतों में बढ़ोतरी है। सब्जियों के साथ मांस, मछली, दालों की कीमतें बढ़ने से भी फूड इन्फ्लेशन में बढ़ोतरी हुई है। जुलाई इन्फ्लेशन भी ऊंची कीमतों को रिफ्लेक्ट करेगी, क्योंकि मौजूदा स्थिति को ठीक होने में कुछ समय लग सकता है।’
मई में घटकर 4.25 फीसदी पर आ गई थी महंगाई दर
फुटकर महंगाई दर मई में घटकर 4.25 फीसदी पर आ गई थी। यह 25 महीनों का सबसे निचला स्तर था। अप्रैल 2021 में महंगाई 4.23 फीसदी रही थी। खाने-पीने की चीजों के दाम में गिरावट के कारण महंगाई में यह कमी आई थी। इससे पहले अप्रैल 2023 में महंगाई 4.70 फीसदी रही थी।
महंगाई को लेकर अनिश्चितता बरकरार
जून में हुई मॉनेटरी पॉलिसी मीटिंग की जानकारी देते हुए आरबीआई के गवर्नर ने कहा था कि महंगाई को लेकर चिंता और अनिश्चितता अभी भी बरकरार है। वहीं नेत्रा रिपोर्ट के जुलाई वर्जन में कहा गया है कि खाने-पीने के सामानों की महंगाई का बढ़ना एक मौसमी घटना है और ये मैनेजेबल है।
बीते 10 महीनों में रिटेल महंगाई दर
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जून 2023 में भारत की खुदरा मुद्रास्फीति दर 4.81 प्रतिशत रही है।
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मई 2023 में भारत की रिटल महंगाई दर 4.25 फीसदी रही है।
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अप्रैल 2023 में भारत की खुदरा महंगाई दर 4.7 प्रतिशत थी।
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मार्च 2023 में भारत की रिटेल महंगाई दर 5.66 प्रतिशत थी।
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फरवरी 2023 में भारत की रिटेल महंगाई दर 6.4 फीसदी थी।
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जनवरी 2023 में भारत की रिटेल महंगाई दर 6.52 फीसदी थी।
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दिसंबर 2022 में रिटेल महंगाई दर 5.72 फीसदी थी।
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नवंबर 2022 में रिटेल महंगाई दर 5.88 फीसदी रही थी।
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अक्टूबर 2022 में महंगाई दर 6.77 फीसदी रही थी।
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सितंबर 2022 में रिटेल महंगाई दर 7.41 फीसदी रही थी।
जानिए, सीपीआई क्या होता है?
एक ग्राहक के तौर पर आप और हम रिटेल मार्केट से सामान खरीदते हैं। इससे जुड़ी कीमतों में हुए बदलाव को दिखाने का काम कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स यानी CPI करता है। हम सामान और सर्विसेज के लिए जो औसत मूल्य चुकाते हैं, CPI उसी को मापता है। कच्चे तेल, कमोडिटी की कीमतों, मेन्युफैक्चर्ड कॉस्ट के अलावा कई अन्य चीजें भी होती हैं, जिनकी रिटेल महंगाई दर तय करने में अहम भूमिका होती है। करीब 300 सामान ऐसे हैं, जिनकी कीमतों के आधार पर रिटेल महंगाई का रेट तय होता है।
महंगाई कैसे प्रभावित करती है?
महंगाई का सीधा संबंध पर्चेजिंग पावर से है। उदाहरण के लिए यदि महंगाई दर 7% है, तो अर्जित किए गए 100 रुपए का मूल्य सिर्फ 93 रुपए होगा। इसलिए महंगाई को देखते हुए ही निवेश करना चाहिए। नहीं तो आपके पैसे की वैल्यू कम हो जाएगी।
कैसे आरबीआई कंट्रोल करती है महंगाई?
महंगाई कम करने के लिए बाजार में पैसों के बहाव (लिक्विडिटी) को कम किया जाता है। इसके लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया रेपो रेट बढ़ाता है। जैसे RBI ने अप्रैल और जून में रेपो रेट में इजाफा न करने का फैसला किया था। इससे पहले RBI ने रेपो रेट में लगातार 6 बार इजाफा किया था। RBI ने महंगाई के अनुमान में भी कटौती की थी।
महंगाई कैसे बढ़ती और घटती है?
महंगाई का बढ़ना और घटना प्रोडक्ट की डिमांड और सप्लाई पर निर्भर करता है। अगर लोगों के पास पैसे ज्यादा होंगे तो वह ज्यादा चीजें खरीदेंगे। ज्यादा चीजें खरीदने से चीजों की डिमांड बढ़ेगी और डिमांड के मुताबिक सप्लाई नहीं होने पर इन चीजों की कीमत बढ़ेगी।
इस तरह बाजार महंगाई की चपेट में आ जाता है। सीधे शब्दों में कहें तो बाजार में पैसों का अत्यधिक बहाव या चीजों की शॉर्टेज महंगाई का कारण बनता है। वहीं अगर डिमांड कम होगी और सप्लाई ज्यादा तो महंगाई कम होगी।
महंगाई पर अर्जुन की नजर रखने की जरूरत
आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने महंगाई पर अर्जुन की नजर बनाए रखने की जरूरत को दोहराया था। उन्होंने कहा था कि महंगाई अभी भी 4 फीसदी के टारगेट से ऊपर बनी हुई है। आरबीआई के अनुमान के अनुसार वित्त वर्ष 2023-24 (FY24) में महंगाई 4 फीसदी के ऊपर ही रहने की संभावना है। आरबीआई ने महंगाई अनुमान को FY24 में 5.2 फीसदी से घटाकर 5.1 फीसदी किया है।
मई में IIP ग्रोथ 5.2 फीसदी दर्ज की गई
देश का इंडेक्स ऑफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन (IIP) मई में एक बार फिर बढ़ा है। मई में IIP ग्रोथ 5.2 फीसदी दर्ज की गई है। इससे पहले अप्रैल में IIP ग्रोथ 4.2 फीसदी रही थी।
मई में IIP ग्रोथ 5.2 फीसदी रही (MOM-मई vs अप्रैल)
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माइनिंग ग्रोथ – 6.4 फीसदी Vs 5.1 फीसदी
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मैन्युफैक्चरिंग ग्रोथ – 5.7 फीसदी Vs 4.9 फीसदी
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इलेक्ट्रिसिटी ग्रोथ – 0.9 फीसदी Vs -1.1 फीसदी
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प्राइमरी गुड्स ग्रोथ – 3.5 फीसदी Vs 1.9 फीसदी
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कैपिटल गुड्स ग्रोथ – 8.2 फीसदी Vs 6.2 फीसदी
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इंफ्रा गुड्स ग्रोथ – 14 फीसदी Vs 12.8 फीसदी
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कंज्यूमर ड्यूरेबल्स ग्रोथ – 1.1 फीसदी Vs -3.5 फीसदी
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कंज्यूमर नॉन-ड्यूरेबल्स ग्रोथ – 7.6 फीसदी Vs 10.7 फीसदी
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