Saturday, July 27, 2024
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समोसे ने वर्मा जी को समझाया

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Ravivani 32


अनीता श्रीवास्तव |

मुझे उन पर दया आने लगी है। वे बेचारे समोसे में भरे आलू की तरह, भीतर ही भीतर घुटते रहते हैं। अभी कल ही की बात है। आॅफिस में पार्टी थी। शर्मा जी के पोते के प्लेसमेंट की। प्लेटें लगा दी गई। बाकी सब तो खैर था ही, लेकिन समोसा खास था। वर्मा जी को समोसा बहुत पसंद है। वे प्राय: खाते- खाते उसके गुणों का बखान करते जाते हैं, जैसे समोसे को खुश कर रहे हों, कि हे समोसा जी! तुम सदा आते रहना मेरी प्लेट में। बल्कि एकाध बार तो मुझे ऐसा भी लगा जैसे समोसा खुद उन्हें देख कर खुश हो रहा हो। कह रहा हो हम तुम्हारे लिए ही बने हैं भाईसाब। या विनती कर रहा हो कृपया मुझे अपनी मुख गुहा में प्रविष्ट कराएं ताकि लोगों की बुरी नजर से बच सकूं। लोग मुझे खा जाने वाली नजरों से देखते हैं। आज जब समोसा सामने आया, वे निर्विकार बैठे रहे। आंखों में चमक न आई उसे देख। न ही कुर्सी तनिक आगे सरकाई। न होंठों पर जीभ फेरी। यहां तक कि आंखों की पुतलियों को वे बलपूर्वक समोसे से धकिया कर केले पर ले गए। कोई और दिन होता तो वे ट्रे ले कर आ रहे आदमी को दूर से ही देख लेते। फिर उसे दृष्टि की डोर में फंसा, अपनी टेबल तक ले आते। किंतु आज ऐसा नहीं हुआ।

जिÞंदगी का एक बड़ा हिस्सा वे समोसे के साथ गुजार चुके थे। थोड़े आलसी, बहुत आलसी और फिर आरामतलब होने के क्रम में वे परिश्रम के लिए मिली देह को बर्बाद करते चले गए। कुदरत से मुफ्त मिले हर्ट, लिवर, किडनी आदि से सुसज्जित करोड़ों के पैकेज को शर्मा जी ने मायामोह से रहित हो कर तवज्जो नहीं दी। उदासीन। साधु। मगर जल्द ही उनके भीतर से विद्रोह के स्वर उठने लगे। पहले वे शुगर फिर बीपी के मरीज हुए। आगे चल कर उनके रक्त में कोलेस्ट्रॉल बढ़ने के संकेत भी देखे गए। इसके बाद जो हुआ, एक हादसा ही था। डॉक्टर ने, पत्नी वाली एक निगाह उन पर डाली। सदा के लिए अपने हो गए इस प्रिय मरीज को, अप्रिय सलाह दे डाली जिसके तहत वर्मा जी को अपना वजन नियंत्रित रखना है। सादा खाना खाना है। अधिक घी तेल का भोजन नहीं करना है। सलाह- मशवरों की इस फौज का कहर मासूम समोसे पर बरपा हुआ। बेचारा दमाद से घर का नौकर बना दिया गया।

वर्मा जी को याद आता है, तीन कोनों में से एक का चटनी से अभिषेक करके उसे ग्रास बनाते ही आँखें अस्सी प्रतिशत बंद हो जाया करती थी। मुखड़ा तनिक छतोन्मुखी हो कर बीसेक्त्मा डिग्री पीछे ढुल जाता था ये क्षण अत्मानंद के होते। कैसा अद्भुत आनंद था वह! इसीके चरम को ज्ञानियों ने ब्रह्मानंद कहा होगा। खैर… अब ये सब पुरानी बातें हैं। वर्मा जी इसे कॉलेज वाली प्रेमिका की तरह भूल जाना चाहते हैं। नई बात जिÞंदगी में डॉक्टर के आने से हुई। वे इस बात पर पत्नी को मन ही मन भला – बुरा कहते रहते हैं। सामने तो खैर कहेंगे क्या! समोसे और ‘उनके’ बीच बिठाया गया। बस्स। यहीं से वर्मा जी की सोच निगेटिव होने लगी। डॉक्टर ने डायबिटीज और हाइपर टेंशन की घोषणा करके उन्हें खानपान में घोर सकरात्मकता को नकारात्मकता की तरफ शिफ्ट कर दिया।

समोसे ने कई दफा अकेले में इशारे से समझाया भी कि वर्मा जी थोड़ा पैदल चल लिया करो। योग और व्यायाम किया करो। घर में उनके पूड़ी-परांठे बंद हो गए। वे सुबह से सैर के लिए ठेले जाने लगे। वैसे वे गुडमॉर्मिंग के साथ भारी पतली आवाजें और मुस्कुराते चेहरे देखने की गरज से कभी- कभार सवेरे सैर पर निकल लेते थे; पर अब बात और है। पत्नी तेज कदमों से चलने की सलाह इस लहजे में देती है कि नहीं मानी तो मारे जाएँगे। और तो और, वह खुद भी सावधान सी हो गई है। पति की बिगड़ती सेहत देख वर्माइन सतर्क हो गई है। खान- पान से ले कर व्यायाम तक, सब कुछ , उनका, अब इनके रडार पर है। …तो सुबह अब हर रोज ऐसी ही है। वर्मा जी अपने आप का मखौल उड़ाते हैं- ‘ले बेटा अब करके दिखा अपनी मॉर्निंग गुड।’

आॅफिस के लिए निकलते हैं तो एक बार फिर नसीहतें जेबों में भर दी जाती हैं। इनमें सबसे खास होती है समोसा न खाने की। वे, हाँ तो खैर बोल ही देते हैं। उन्हें पता है कि यहाँ से वहाँ का दिखता थोड़े है! शर्मा जी ने पहले तो ‘लीजिए’ कहा। जब सन्नाटा रहा तो उच्चारा ‘थोड़ा सा तो लीजिए’ और फिर वे वर्मा जी के मुख मण्डल को अन्वेषक की दृष्टि से देखने लगे। उन्हें दिख रहा है- एक ठहाके लगाता, मस्त मौला, बात- बात पर जोक्स मारता और पार्टियों का शौकीन चेहरा किसी गम्भीर, बेनूर और डरे हुए से चेहरे में बदलता जा रहा है।


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