Tuesday, April 16, 2024
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सामयिक: सवाल परीक्षा और जिंदगी का है!

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आशीष वशिष्ठ
आशीष वशिष्ठ
  अखिल भारतीय स्तर पर इंजीनियरिंग में प्रवेश के लिए होने वाली संयुक्त प्रवेश परीक्षा यानी जेईई की मुख्य परीक्षा तथा मेडिकल के लिए होने वाले नेशनल एलिजिबिलिटी व एंट्रेंस टेस्ट यानी नीट की परीक्षा को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। जैसे-जैसे परीक्षा की तारीख नजदीक आ रही है, इस मुद्दे पर राजनीति बढ़ती ही जा रही है। इस बीच कई राजनेताओं और राज्य सरकारों के बाद अब चर्चित पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने भी भारतीय छात्रों की एनईईटी और आईईटी जेईई परीक्षा को आगे बढ़ाने की मांग का समर्थन किया है। गैर-भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री इस मुद्दे पर खुलकर सामने आ गए हैं। देश में कोरोना का कहर और कुछ राज्यों में बाढ़ का प्रकोप बड़ी परेशानी का कारण है। पूर्व में ये परीक्षाएं दो बार टाली जा चुकी हैं। छात्रों के जीवन के साथ ही साथ सवाल लाखों छात्रों के कैरियर का भी है।
जेईई और नीट में छात्रों को कोरोना संक्रमण से बचाव और सामाजिक दूरी नियम का पालन करवाने के लिए 40 मिनट के एक स्लॉट में सिर्फ सौ छात्रों को परीक्षा केंद्र में पहुंचना होगा। नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) ने दोनों परीक्षाओं के सुरक्षित और सफल आयोजन की तैयारी पूरी कर ली है। वहीं एनटीए ने जेईई मेन की परीक्षा के लिये परीक्षा केंद्र 570 से बढ़ाकर 660 कर दिए हैं तो नीट की परीक्षा हेतु 2546 के स्थान पर 3843 परीक्षा केंद्र बनाये गये हैं। पहले जेईई की कुल आठ शिफ्ट होती थी, इस बार  12 शिफ्ट हैं। इसके अलावा एक शिफ्ट 1.32 लाख छात्र थे, उसकी बजाय 85 हजार छात्र होंगे। देशभर में जेईई मे महाराष्ट्र का आंकड़ा सबसे अधिक है। परीक्षा में महाराष्ट्र के  छात्रों की संख्या सबसे अधिक है। जबकि यूपी दूसरे नंबर पर है। उत्तर प्रदेश के 100706 छात्र जेईई की परीक्षा देंगे। इसके लिए 66 केंद्र बनाए गए हैं। ऐसे ही नीट में  320 परीक्षा केंद्रों में 166582 छात्र परीक्षा देंगे।
समस्या यह है कि कोरोना संकट के चलते परीक्षार्थी मनोवैज्ञानिक दबाव से जूझ रहे हैं। देश में जहां तमाम राज्य बाढ़ से जूझ रहे हैं तो वहीं देश में रेल व बस सेवाएं सामान्य नहीं हो पाई हैं। कई छात्र ऐसे हैं जिन्हें दो सौ-तीन सौ किलोमीटर का सफर तय करके परीक्षा केंद्रों पर जाना है। चिंता इस बात की भी है कि पहले ही लॉकडाउन के कारण आर्थिक संकट झेल रहे लोग निजी वाहनों से परीक्षा केंद्रों तक पहुंच पाएंगे? परीक्षा केंद्र पहुंचने पर उनके ठहरने की व्यवस्था कहां हो पाएगी? क्या वे इस दौरान संक्रमण से सुरक्षित रह पाएंगे? एनटीए ने राज्यों को पत्र लिखा है कि वे छात्रों को परीक्षा केंद्र तक पहुंचने के लिए परिवहन व्यवस्था को सुचारू करें। अभी तक एक भी राज्य सरकार ने बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में परीक्षा कैसे आयोजित होगी पर सवाल नहीं उठाया है।
छात्रों व अभिभावकों की परेशानी से इंकार नहीं किया जा सकता है। जमीनी सच्चाई यह है कि देश में कोरोना का कहर अभी जारी है। प्रतिदिन 50 से 60 हजार नए केस सामने आ रहे हैं। दुनिया में संक्रमण के लिहाज से दुनिया में हम तीसरे नंबर पर खड़े हैं। देश में संक्रमितों की भारी संख्या व मौतों का आंकड़ा छात्रों व अभिभावकों के भय व चिंता का बड़ा बिंदु है। वहीं दूसरी तरफ इस तथ्य से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है कि यदि अब परीक्षा न हुई तो छात्रों का एक वर्ष खराब होना लगभग तय है। फिर अगले वर्ष नए बैच के लाखों छात्रों के साथ उन्हें प्रवेश परीक्षा में बैठना होगा। जो अपने आप में एक बड़ी समस्या व छात्रों के लिए तनाव का कारण बनेगा। छात्रों व अभिभावकों का यह भी सोचना होगा कि अगस्त का महीन बीत चुका है। देश के कई विश्वविद्यालयों व कॉलेजों में स्नातक पाठ्यक्रमों में दूसरे साल की पढ़ाई आॅनलाइन माध्यम से शुरू हो चुकी है। ऐसे में सत्र में देरी विलंब छात्रों के लिए नुकसानदायक हो सकता है, क्योंकि पहले ही काफी समय निकल चुका है। ऐसे में यदि परीक्षाएं स्थगित होती हैं तो इस सत्र का पाठ्यक्रम पूरा कर पाना संभव नहीं हो पायेगा। चिकित्सा व इंजीनियरिंग जैसे महत्वपूर्ण विषयों में पाठ्यक्रम का बोझ किसी से छिपा नहीं है। बीती 10 अगस्त को ही लखनऊ विश्वविद्यालय ने उत्तर प्रदेश में बीएड की प्रवेश परीक्षा का सफल आयोजन तमाम चुनैतियों के बीच करवाकर मिसाल कायम की है।

 

छात्रों की सेहत का सवाल सर्वोपरि है। ऐसे में जरूरी है कि संक्रमण से सुरक्षा के लिए फुलप्रूफ उपाय किये जाएं। इन परीक्षाओं से लाखों बच्चों के सपने भी जुड़े हैं। यह भी उचित न होगा कि एक वर्ष देश नए डाक्टरों-इंजीनियरों के भविष्य की बुनियाद रखने से वंचित हो जाए। ऐसे में शीर्ष अदालत की सलाह से सहमत हुआ जा सकता है कि परीक्षा भी हो और हरसंभव सावधानी भी बरती जाए। नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने इस संबंध में दिशा-निर्देश जारी भी किए हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि पूरा देश इस समय संकट के समय से गुजर रहा है। कोरोना काल की तमाम चुनौतियों का हम सबको मिलकर मुकाबला करना है। हम सबका और राजनीतिक दलों का प्रयास ये होना चाहिए कि अकादमिक कैलेंडर यूं ही बर्बाद न हो जाए। प्रवेश परीक्षा की प्रक्रिया में रुकावट पैदा करने के दूरगामी बुरे नतीजे सामने आ सकते हैं। लेकिन इस नाजुक मसले को लेकर जिस तरह खुलकर राजनीति सामने आ गई है, वो छात्रों के भविष्य को संकट में डाल सकती है। बीते बुधवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कांग्रेस शासित राज्यों व पश्चिम बंगाल तथा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों के साथ इस मुद्दे पर विरोध जताया और अदालत जाने की बात की है।

 

समस्या की गंभीरता और छात्रों के भविष्य के मद्देनजर सरकार ने परीक्षा केंद्रों की संख्या बढ़ाने से लेकर छात्रों की सेहत को लेकर तमाम जरूरी उपाय करने की घोषणा की है। लेकिन विपक्ष के कई राजनीतिक दलों को इस गंभीर समस्या और आपदा काल में अपनी राजनीति चमकाने का अवसर दिखाई दे रहा है। इसलिए वो सरकार के साथ मिल बैठकर समस्या सुलझाने की बजाय छात्रों को भ्रमित करने और भड़काने के उपक्रम में लगे हैं। विपक्षी दलों  को छात्रों की परेशानियों को हल करने से ज्यादा ऊर्जा मोदी सरकार को छात्र विरोधी साबित करने में खर्च करते दिख रहे हैं। बेहतर होता कि देश के तमाम राजनीतिक दल आपस में मिल बैठकर लाखों छात्रों के भविष्य से जुड़े इस अहम मुद्दे का सर्वमान्य हल निकालते। लेकिन जब मंशा राजनीति चमकाने की हो तो असल मुद्दे अक्सर दब ही जाते हैं। सरकार को छात्रों की परेशानियों के मद्देनजर हर संभव व्यवस्था और सुविधा प्रदान करनी चाहिए। यहां सवाल छात्रों के भविष्य के साथ ही साथ उनकी जिंदगी का भी है।

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