Saturday, July 27, 2024
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मुस्लिम मतों में बिखराव होगा बड़ा फैक्टर

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  • इमरान मसूद के नामांकन में नजर नहीं आए सपा के दोनों विधायक
  • राघव पिछला चुनाव जरूर हारे पर दिल जीतने में रहे कामयाब

अवनीन्द्र कमल |

सहारनपुर: यह संयोग ही कहा जा सकता है कि एक बार फिर पूर्व सांसद और भाजपा के उम्मीदवार राघव लखन पाल शर्मा से कांग्रेस प्रत्याशी इमरान मसूद मुकाबिल होने जा रहे हैं। इमरान ने मंगलवार को कलक्ट्रेट मेें अपना परचा जरूर भरा किंतु इस मौके पर उनके सहयोगी दल समाजवादी पार्टी के दोनों विधायक क्रमश: आशु मलिक और उमर अली नजर नहीं आए। इसको लेकर सियासी गलियारों में खुसर-फुसर तेज हो गई। उधर, बसपा ने माजिद अली को उतार कर चुनाव को दिलचस्प बना दिया है। हां, इतना जरूर है कि दो मुस्लिम प्रत्याशियों के आने से भाजपा को पनघट की डगर आसान लग रही है।

यह बता दें कि कद्दावर मुस्लिम नेता और सपा-कांग्रेस गठबंधन के उम्मीदवार इमरान मसूद अपने सियासी अफसार में लगातार चार चुनाव हार चुके हैं। यह तीसरी दफा है जब इमरान कांग्रेस के टिकट पर सहारनपुर सीट से किस्मत आजमा रहे हैं। यह तो तय है कि हार का अजाब इमरान को कोड़ेÞ की साल रहा होगा। मंगलवार को वह कलक्ट्ेट में नामांकन करने पहुंचे और परचा दाखिल कर दिया। सितम ये कि सहयोगी दल सपा के दोनों एमएलए आशु मलिक और उमर अली नदारद रहे। सियासी गलियारों में इस बात पर तुरंत चर्चाएं भी होने लगीं। लोगों का कहना था कि गुटबंदी अभी से शुरू होने लगी है। वहीं, बसपा प्रत्याशी माजिद अली ने भी परचा दाखिल किया है। माजिद का कोई ऐसा सियासी सफर तो नहीं है कि उनको बड़ी संजीदगी से लिया जाए। हां, इतना जरूर है कि माजिद इमरान को ही नुकसान पहुंचाएंगे। माजिद पिछड़े मुस्लिम समाज से हैं, लिहाजा वह इसी बात को हवा दे रहे बताए जाते हैं।

उधर, बात भाजपा की करें तो काफी ठोक-बजाकर तीसरी बार राघव को मैदान में उतारा है। सन 2014 में जब इमरान ने नरेंद्र मोदी को लेकर बोटी-बोटी वाला बयान दिया था तो चुनाव हिंदू-मुस्लिम हो गया था। राघव ने इस चुनाव में इमरान को हरा दिया था। इमरान दूसरे स्थान पर थे। सन 2019 में एक बार फिर राघव भाजपा से लड़े। सन 2014 के मुकाबले ज्यादा वोट उनको मिले। लेकिन, सपा-बसपा गठबंधन के प्रत्याशी हाजी फजलुर्हमान चुनाव जीत गए। कांग्रेस के टिकट पर इरमान इस दफा तीसरे नंबर पर थे। फिलहाल, अब सन 24 के इस चुनाव में सहारनपुर सीट पर राघव और इमरान का फिर से मुकाबला होने जा रहा है। पिछला चुनाव राघव भले हार गए हों पर बीते पांच सालों में उन्होंने सबके सुख-दुख में साथ खड़े होकर जनता-जनार्दन का दिल जीतने में कमी नहीं छोड़ी। यही वजह है कि पार्टी ने तीसरी बार उन पर भरोसा किया है विश्वास के साथ।

दरअसल, सांगठनिक तौर पर कांग्रेस जहां चारों खाने चित है, वहीं भाजपा की बूथ स्तर तक गहरी पकड़ है। सबसे खास यह है कि राघव निर्विवाद नेता और स्वच्छ छवि के धनी हैं। भाजपा के सहोदर संगठनों ने अभी से ताकत झोंक दी है। बाकी तो समय बताएगा कि कौन कितने पानी में है।

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