नवजोत सिद्धू का मैं और मेरे जैसे करोड़ों भारतवासी घोर प्रशंसक हैं। 1983 से 1999 तक भारतीय क्रिकेट टीम के सदस्य के रूप में उन्होंने कई बार अपनी शानदार बल्लेबाजी से देश का नाम रौशन किया है। सिद्धू चाहे भारतीय जनता पार्टी में रहे हों या अब कांग्रेस में उन्हें उनके ‘सेलेब्रिटी’ व्यक्तित्व के चलते हर जगह स्टार प्रचारक का रुतबा हासिल होता है। वे जिस लहजे में बिंदास शैली में भाषण देते हैं, वह भी जनता पूरी दिलचस्पी के साथ सुनती है। उनकी राजनैतिक पारी की शुरुआत भारतीय जनता पार्टी से हुई जहां उन्होंने अमृतसर से 2004 में लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। 2009 में भी वे अमृतसर से ही पुन: लोकसभा चुनाव लड़े और फिर जीते। परंतु 2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से भाजपा ने अरुण जेटली को चुनाव लड़ाया और जेटली पराजित हुए। फिर भाजपा ने ‘सांत्वना’ के रूप में सिद्धू को राज्यसभा का सदस्य बनाया। राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि राज्यसभा सदस्य बनने के बाद से ही वे केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने के इच्छुक थे, परंतु ऐसा न हो पाने व अकाली दल से अपने मतभेद जैसे कारणों के चलते उन्होंने 2016 में भाजपा एवं राज्यसभा की सदस्यता दोनों ही त्याग दी।
उस दौरान कई दिनों तक उनके आम आदमी पार्टी में शामिल होने की अटकलें चलती रहीं। मीडिया ने यह अटकलें भी लगार्इं कि यदि आम आदमी पार्टी सिद्धू को पंजाब विधानसभा चुनाव में मुख्य मंत्री के चेहरे के रूप में पेश करती है तो वे ‘आप’ में भी शामिल हो सकते हैं।
इन अटकलों का आधार भी दरअसल यह था कि भाजपा छोड़ने के बाद उन्होंने ट्वीट के माध्यम से कहा था कि विपक्षी दल आम आदमी पार्टी ने पंजाब को लेकर उनके विजन का हमेशा मान रखा है, चाहे 2017 से पहले हुई बेअबदी हो, नशे का मुद्दा हो, किसानों के मसअले हों, भ्रष्टाचार हो या हाल के दिनों में पंजाब की जनता के सामने पैदा हुआ बिजली संकट हो।
मैंने हमेशा पंजाब मॉडल को सामने रखा है और उन्हें (आप) पता है कि असल में कौन पंजाब के लिए लड़ रहा है। सिद्धू के इस ट्वीट के बाद स्वभाविक तौर पर यह अंदाजा लगाया जाने लगा था कि वे कभी भी ‘आप’ परिवार के सदस्य हो सकते हैं।
परन्तु इसी बीच सिद्धू ने एक संवाददाता सम्मेलन बुलाकर इन अटकलों पर विराम लगाया और कहा कि केजरीवाल के पास मुझे देने के लिए है ही क्या? बहरहाल, अंततोगत्वा राहुल गांधी से मिलने के बाद जनवरी 2017 में वे कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए।
उनके पार्टी में शामिल होते ही विवादों की भी शुरुआत हो गई। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह समेत पूरी पंजाब कांग्रेस ने सिद्धू का कांग्रेस में स्वागत तो जरूर किया पर्रंतु कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने साथ ही यह भी कहा कि वे अमृतसर से आगामी लोकसभा चुनाव पार्टी उम्मीदवार के रूप में लड़ेंगे जबकि सिद्धू की ओर से उन्हें पंजाब का उप मुख्यमंत्री बनाने की चर्चा चली।
यहीं से कैप्टन अमरेंद्र सिंह व सिद्धू के बीच राजनैतिक टकराव की स्थिति पैदा हो गई। कैप्टन ने पंजाब में कांग्रेस की सीटें अपेक्षाकृत कम आने के लिए भी सिद्धू को ही जिम्मेदार ठहराया। इन दोनों के बीच तल्खी का एक कारण यह भी है कि कैप्टन जहां पटियाला राजघराने के पूर्व महाराज हैं वहीं सिद्धू भी मूल रूप से पटियाला के ही निवासी हैं। सिद्धू के पिता भी पंजाब कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में रहे हैं।
हालांकि सिद्धू कई बार अपने पिता की इस बात के लिए आलोचना करते भी सुने गए हैं कि वे कांग्रेस में क्योंकर रहे। परन्तु स्वयं सिद्धू के कांग्रेस की सदस्य्ता ग्रहण करते ही उनकी नजरें कैप्टन अमरेंद्र सिंह की या उनके समानांतर किसी कुर्सी पर केंद्रित हो गई। दरअसल स्वयं कैप्टन अमरिंदर सिंह ने यह घोषणा की थी कि अब भविष्य में वे चुनावी मैदान में नहीं उतरेंगे।
खबरों के अनुसार कैप्टन की इसी घोषणा को आधार बनाकर सिद्धू ने कांग्रेस आलाकमान को इस बात के लिए राजी कर लिया कि पहले उन्हें 5 वर्ष के लिए उपमुख्यमंत्री बनाया जाए और यदि वे पांच वर्ष तक एक कारगर व अच्छे उप मुख्यमंत्री साबित हुए तो अगले चुनाव में वे मुख्यमंत्री का दावा भी पेश कर सकते हैं।
इन्हीं उम्मीदों के साथ वे कांग्रेस में भी आए और पहली बार अमृतसर पूर्वी सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ा और भारी मतों से विजयी भी हुए। परंतु कैप्टन अमरेंद्र सिंह न तो उन्हें उप मुख्यमंत्री बनाने पर राजी हुए न ही पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष पद पर उनकी दावेदारी का समर्थंन किया। हां, कैप्टन ने सिद्धू को मंत्रिमंडल में शामिल तो किया परंतु इच्छानुसार विभाग न मिलने के चलते उन्होंने कुछ ही समय बाद मंत्री पद से भी इस्तीफा दे दिया।
आखिरकार लंबे राजनैतिक घमासान के बाद सिद्धू कांग्रेस आलाकमान को और कांग्रेस आलाकमान कैप्टन अमरेंद्र सिंह को इस बात के लिए राजी करने में सफल रहे कि सिद्धू को पंजाब प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया जाए।
परंतु सिद्धू के अध्यक्ष पद की ताजपोशी के दिन ही सिद्धू के बेलाग लपेट व बड़बोलेपन के अंदाज के भाषण से ही यह स्पष्ट हो गया था कि कैप्टन की गंभीरता व उनका जोशीलापन लंबे समय तक साथ नहीं चलने वाला। उन्होंने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की हैसियत से पंजाब के मंत्रियों को कांग्रेस कार्यालय में तीन घंटे रोज हाजरी देने का ‘फरमान’ जारी कर सामानांतर सत्ता चलने का संदेश भी दिया। राजनैतिक महत्वाकांक्षाएं रखना गलत नहीं परंतु इसके लिए गंभीरता सबसे जरूरी है।
यह बात सिद्धू को अपने मित्र पाक प्रधानमंत्री इमरान खान से सीखनी चाहिए। पार्टी में ‘ईट से ईट बजा देने’ जैसा मुहावरा इस्तेमाल करना उनके बड़बोलेपन की सबसे बड़ी मिसाल है। ऐसे में यह देखना होगा कि सिद्धू कांग्रेस के लिए लिए वरदान साबित होते हैं या अभिशाप?