Monday, February 17, 2025
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आध्यात्मिक दृष्टि

Amritvani 21


एक व्यक्ति विदेश से एक महंगा इत्र बांके बिहारी जी को भेंट करने के लिए लाया। इस इत्र की खुशबू लाजवाब थी। संत हरिदास जी आध्यात्मिक भाव में डूबे हुए थे। संत देखते हैं कि राधा-कृष्ण दोनों होली खेल रहे हैं। जब उस व्यक्ति ने देखा की ये तो ध्यान में हैं, तो उसने वह इत्र की शीशी उनके पास में रख दी और पास में बैठकर संत की समाधी खुलने का इंतजार करने लगा। तभी संत देखते हैं की पहले कृष्ण जी ने रंग से भरी पिचकारी राधा जी के ऊपर मारी और राधा रानी सर से लेकर पैर तक रंग में रंग गई। अब जब राधा जी रंग डालने लगीं तो उनकी घड़िया खाली थी। संत को लगा की राधा जी तो रंग डाल ही नहीं पाएंगी। तभी संत ने तुरंत वह इत्र की शीशी खोली और राधा जी की घड़िया में डाल दी और तुरंत राधा जी ने कृष्ण जी पर रंग डाल दिया। हरिदास जी ने आध्यात्मिक दृष्टि में वो इत्र राधा रानी की घड़िया में डाला। उस भक्त ने देखा की इन संत ने सारा इत्र जमीं पर गिरा दिया। उसने सोचा में इतने दूर से इतना महंगा इत्र लेकर आया था। थोड़ी देर बाद संत ने आंखें खोलीं। उस व्यक्ति ने संत को अनमने मन से प्रणाम किया। अब वो व्यक्ति जाने लगा। तभी संत ने कहा, आप अंदर जाकर बिहारी जी के दर्शन कर आएं। उस व्यक्ति ने सोचा की अब दर्शन करे या ना करें…क्या लाभ। फिर भी चलो, चलते समय दर्शन कर लेता हूं। वह व्यक्ति बांके बिहारी के मंदिर में अंदर गया तो क्या देखता है की सारे मंदिर में वही इत्र महक रहा है और जब उसने बिहारी जी को देखा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ बिहारी जी सिर से लेकर पैर तक इत्र में नहाए हुए थे। उसकी आंखों से प्रेम के आंसू बहने लगे। वह संत के चरणों मे गिर पड़ा। मुझे माफ कर दीजिए। संत ने कहा, तुम भगवान को सांसारिक दृष्टि से देखते हो, लेकिन मैं संसार को आध्यात्मिक दृष्टि से देखता हूं।
प्रस्तुति : राजेंद्र कुमार शर्मा


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