संस्कार एक मल्टीनेशनल कंपनी में बोर्ड डाइरेक्टर के रूप में कार्य करता था। उसने इंग्लिश मीडियम स्कूल से एजुकेशन हासिल की थी और इस लिहाज से उसकी इंग्लिश काफी अच्छी थी। वह फर्राटेदार इंग्लिश बोलता था। नेक्स्ट वीक में उसकी कंपनी की गोल्डन जुबली थी और इस अवसर पर कंपनी ने एक बड़े फंक्शन की तैयारी प्लान की थी जिसमें संस्कार को इनॉग्यरल स्पीच देनी थी। इसके लिए उसने काफी तैयारी की थी। अपने फ्रÞेंड्स से सुझाव के अतिरिक्त उसने यूट्यूब पर भी उत्कृष्ट भाषण के कई टिप्स और ट्रिक्स को पढ़ रखा था।
फंक्शन के दिन जब संस्कार को सूत्रधार ने अपने स्पीच के लिए मंच पर बुलाया तो मानो उसके हलक सूख गए हों। वैसे तो वह माइक्रफोन पर बड़ी तेजी से और उत्साह से आया था, लेकिन शुरू में ही वह वीआईपी के अड्रेस में गलती कर बैठा। वीआईपी के नाम में अशुद्धि के अतिरिक्त वह सभी के हाइरार्की के आधार पर नाम नहीं बोल पाया। अपने स्पीच के अजेन्डे में चुने गए मुख्य विषयों में वह केवल कुछ बिंदुओं को ही अपने भाषण में उल्लेख कर पाया। शब्दों पर उसका कोई नियंत्रण नहीं था और जो बोलना चाहता था उसके लिए उसके पास सटीक शब्दों का पूर्ण अभाव था। माइक्रफोन से हटते समय वह न तो किसी को धन्यवाद बोल पाया और न ही स्पीच को ढंग से खत्म कर पाया। चीफ गेस्ट के स्वागत में भी वह सही प्रोटोकॉल का उपयोग नहीं कर पाया।
अपनी सीट पर वापस लौटने के बाद वह खुद को इस दुनिया का सबसे कमजोर और बेवकूफ इंसान समझने लगा। उसका आत्मविश्वास पूरी तरह से टूट चुका था। उसे इस प्रकार के डिप्रेशन से बाहर आने में काफी वक्त लग गया।
सच पूछिए तो संस्कार की स्पीच देने में असफलता की यह कहानी कोई विचित्र घटना नहीं है और न ही इस भीड़ में संस्कार अकेला है। हर वक्ता जब भी पब्लिक में मंच पर बोलने के लिए आमंत्रित किया जाता है और वह माइक्रफोन के सामने आता है तो प्राय: डर, कन्फ़्युजन और घबराहट की समान अनुभूति होती है। यह कोई असामान्य घटना नहीं है। यह सहज है और इसे मंच भय कहा जाता है। इस सत्य से इनकार करना आसान नहीं है कि मंच भय को पूरी तरह से खत्म नहीं किया जा सकता है। किन्तु अथक प्रयास से इसे कंट्रोल अवश्य किया जा सकता है।
मंच भय सहज है
पब्लिक में बोलने में भय और घबराहट की फीलिंग प्राय: सभी वक्ताओं के साथ होती है। इस मंच के भय से प्रखर स्पीकर भी बच नहीं सकते हैं। सच पूछें तो यह मंच भय पब्लिक में भाषण देने में अच्छा परफॉर्म करने की चिंता से जुड़ा होता है। हर वक्ता प्राय: यही सोचता है कि हम जब मंच पर कुछ बोलने के लिए खड़े हों तो हमसे कोई गलतियां नहीं हो और ऐसा करने की कोशिश में ही घबराहट शुरू हो जाती है। इसलिए पहले तो मन से यह हटाना जरूरी है कि मंच भय विचित्र घटना है और यह सब के साथ नहीं होता है। जब भी मंच पर कुछ बोलने के लिए उठें और घबराहट हो रही हो तो यह मान कर चलें कि इसमें कुछ विचित्र नहीं है। किन्तु इस पर नियंत्रण करना भी एक कला है। गहरी सांस लें, धैर्य रखें और बिना डरे पब्लिक को अड्रेस करने की शुरूआत कर सकते हैं।
बिना आत्मविश्वास के संभव नहीं है इस जंग को जीतना
प्रसिद्ध रोमन दार्शनिक और राजनीतिज्ञ सिसरो ने एक बार कहा था, ‘यदि आपके पास आत्मविश्वास नहीं है तो आप जीवन की रेस में दोबारा हारे हुए हैं। किन्तु यदि आपके पास आत्मविश्वास है तो आप जीवन की रेस शुरू करने के पूर्व ही जीत चुके होते हैं।’ आशय यह है कि आत्मविश्वास के अभाव में हम जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल नहीं हो सकते हैं। पब्लिक स्पीकिंग के डोमेन में सेल्फ कॉन्फिडन्स की अहमियत और भी बढ़ जाती है। यदि मंच पर बोलने के लिए आप में कॉन्फिडन्स नहीं है तो आपकी फैल्यर पूरी तरह से सुनिश्चित है। लिहाजा जब भी पब्लिक में कुछ बोलना हो तो आपको अपने अंदर के डर को खत्म करनी होगी। आपको अपने सेल्फ झ्र कॉन्फिडन्स को मजबूती से पकड़े रहना पड़ेगा। आपकी काबिलियत में आपका अपना विश्वास ही आपको पब्लिक स्पीकिंग में हीरो बना सकता है।
तैयारी भी है बहुत जरूरी
जंगल में तेजी से पेड़ काटने के लिए कुल्हाड़ी में धार को तेज करना इंटेलिजेंस है। इसके अभाव में पेड़ की कटाई की रफ्तार काफी धीमी होती है। जीवन में किसी भी क्षेत्र में कामयाबी के लिए खुद को तैयार करना बहुत जरूरी है। पब्लिक स्पीकिंग में कामयाबी के लिए तैयारी बहुत जरूरी है। विशेष रूप से जिस टॉपिक पर बोलना हो उसके बारे में विस्तार से होमवर्क अनिवार्य माना जाता है। इस होमवर्क से बोलने के क्रम में अनावश्यक रुकावट नहीं आती है। फिर जब सब्जेक्ट के बारे में जानकारी हो तो विचार आने में भी अधिक प्रॉब्लम नहीं आती है। इन विचारों से शब्द भी तेजी से मिल पाते हैं। लिहाजा पब्लिक स्पीकिंग में पूर्व से तैयारी जरूरी है।
शुरुआती असफलताओं से रुकें नहीं
पब्लिक स्पीकिंग में प्राय: ऐसा देखा जाता है कि शुरू में बोलने में किसी प्रकार की छोटी या बड़ी गलतियों के बाद से ही वक्ता का मूड चेंज हो जाता है। उनका कॉन्फिडन्स लेवल काफी कम हो जाता है और वह खुद को फैल्यर समझने लगता है। पब्लिक स्पीकिंग में इस तरह की साइकॉलजी विफलता का बहुत बड़ा कारण होता है। क्योंकि इसके बाद से हम कितने ही ज्ञानवान क्यों न हों हम फिर पब्लिक स्पीकिंग में अच्छा परफॉर्म नहीं कर पाते हैं। बोलने के क्रम में कुछ गलतियां महज घबराहट और पब्लिक का सामना करने के भय और हिचकिचाहट के कारण होता है। यह मानकर चलिए ऐसा ज्ञान में कमी के कारण कभी नहीं होता है। इसलिए जब शुरू में ही बोलने में गलतियां हो जाएं तो मन को छोटा नहीं करना है, हिम्मत को टूटने नहीं देना है। यहीं से फिर अच्छी शुरूआत करने के लिए कोशिश करने में ही एक प्रखर वक्ता बनने का रहस्य छुपा हुआ होता है।
पब्लिक स्पीकिंग की कला में मास्टरी के कुछ अहम टिप्स
पब्लिक स्पीकिंग एक आर्ट है और जिसमें मास्टरी के लिए आपको कई प्रकार की ऐक्टिंग करने की जरूरत होती है। जब भी भीड़ में बोलने के लिए माइक्रोफोन के सामने आयें तो लोगों को अपनी बातों से सम्मोहित करने के लिए निम्न टिप्स को अवश्य याद रखें-
* बोल्ड बनें, धैर्य रखें और घबराएं नहीं। इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि पब्लिक स्पीकिंग में घबराहट सहज और स्वभाविक प्रक्रिया है और इसमें कुछ भी विचित्र नहीं है।
* कहते हैं कि पब्लिक स्पीकिंग में आप क्या कहते हैं यह मायने नहीं रखता है बल्कि आप अपनी बातों को कैसे कहते हैं यह सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है। इसलिए अपने बॉडी लैंग्वेज का ध्यान रखें और साहस और आत्मविश्वास के साथ अपनी बात कहें।
* संभव हो तो अपनी बात किसी कहानी या सूक्ति से करें।
* अपने श्रोता को समझें और उनकी समझ के स्तर के आधार पर ही अपनी बातें कहें।
* शुरू में ही गलती हो जाए तो घबराएं नहीं। सामान्य रूप से आगे बढ़ते रहें। मन में कोई पछतावा नहीं रखें, सेल्फ- गिल्ट नहीं रखें,
* अपने श्रोता को समझें और उनके मुताबिक ही अपनी बात रखें।
*अपने भाषण की शुरुआत उस अवसर से संबंधित किसी प्रेरक कहानी या सूक्ति से करने से आगे बोलने में काफी मदद मिलती है। इससे मन को रिलैक्सैशन मिलता है।
* खुद को अपने श्रोता के सामने लाएं, श्रोताओं से छुपे नहीं। माइक्रफोन के पीछे भी नहीं छुपे।
* अपने बारे में यदि कुछ बताना हो तो कभी भी झूठ नहीं बोलें। विनम्र और ईमानदार बनें रहें। पब्लिक आपकी विनम्रता और ईमानदारी का सम्मान करती है।
* अपने भाषण में विषयांतर होने से भी बचना चाहिए। विषय से जुड़े रहें, सारगर्भित बोलें।
* निर्धारित समय से अधिक नहीं बोलें। जब तक आप कोई सेलिब्रिटी नहीं हैं लोग सुनना कम चाहते हैं।
* आप अपने संबोधन में हल्के फुल्के चुटकुले भी सुना सकते हैं। लेकिन चुटकुले के लिए आप में हास्य बोध होना चाहिए। गंभीर मुद्रा में रहकर किसी भी चुटकुले का प्रभाव असर नहीं करता है।
* एक अच्छे पब्लिक स्पीकर के लिए श्रोताओं से आई कान्टैक्ट जरूरी होता है। जब भी आप पब्लिक अड्रेस करें तो उनकी आंखें में देखें। अपनी नजर चारों तरफ होने चाहिए।
* इस क्षेत्र में प्रैक्टिस से कभी भी कोई पूर्ण नहीं बनता है। केवल आपका साहस और आत्मविश्वास ही इस क्षेत्र में आपका अमोघ अस्त्र है जिसकी सहायता से आप पब्लिक स्पीकिंग के भय, घबराहट और चिंता को दूर कर सकते हैं।
-श्रीप्रकाश शर्मा