Tuesday, July 2, 2024
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कहानियां खोजने की प्रक्रिया में लिखी कहानियां!

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RAVIWANI


SUDHANSHU GUPTकहानी लिखने के बहुत से तरीके हो सकते हैं और होंगे ही। लेकिन क्या कहानी लिखने का एक तरीका ऐसा भी हो सकता है कि आप कहानी लिखने का तरीका खोज रहे हों और उसे खोजते-खोजते ही कहानी तक पहुँच जाएं? अगर ऐसा हो तो मुझे लगता है, शानदार कहानी लिखी जा सकती है। ऐसी कहानी जिसका यथार्थ लेखक की मुट्ठी में बन्द ना हो, बल्कि वह कहानी के साथ-साथ यथार्थ तक भी पहुँचे। हालांकि होता यह है कि, आमतौर पर लेखक पहले कहानी सोचता है और फिर पहले से ‘तय रास्ते’ से उसे मुकाम तक पहुंचाता है। और यह दावा करता है कि कहानी में वह यथार्थ तक (वह यथार्थ जो सदा उसकी जेब में था) पहुँच गया। कहानी लिखने का यह तरीका खासा पुराना है। इसमें लेखक के मन में सब कुछ पूर्वनियोजित होता है-पहले से तय। यदा-कदा ही ऐसा होता है कि लेखक पहले से तय चीजों में कुछ परिवर्तन करे। लेकिन वरिष्ठ साहित्यकार राजी सेठ के कहानी संग्रह ‘यहीं तक’ (भावना प्रकाशन) को पढ़कर यह धारणा मजबूत हुई कि कहानियां खोजते-खोजते कहानियां लिखा जाना, उन्हें अनावश्यक पाखण्ड से बचाता है, कहानियां सहज होती हैं और पाठक भी इस बात को नहीं समझ पाता कि कहानियां कहां जा रही हैं और कहां जाएंगी।

सबसे अहम बात ऐसी कहानियों का यथार्थ भी अनापेक्षित और बनाया हुआ नहीं होता। राजी सेठ की अधिकांश कहानियाँ निम्न मध्यवर्गीय जीवन को सहजता से दिखाती हुई आगे बढ़ती है। कहीं इस बात इल्म भी नहीं होता कि आप कहानी पढ़ रहे हैं, ऐसा लगता है कि आप बस्ती में अपना खोया हुआ घर तलाश कर रहे हैं। जब कहानी खत्म होती है, तब पाठक को यह अहसास होता है कि अरे असली कहानी तो यही है।

शायद लेखक को भी लगता है कि हाँ, मैं यहीं तो पहुंचना चाहता था। राजी सेठ हिंदी की प्रसिद्ध लेखिका हैं। नौशेहरा छावनी (पाकिस्तान में) राजी सेठ का जन्म हुआ। अंग्रेजी साहित्य में उन्होंने एमए किया। तुलनात्मक धर्म और भारतीय दर्शन का उन्होंने अध्ययन किया। जीवन के उत्तार्द्ध में वह लेखन की ओर अग्रसर हुर्इं। उनके अनेक उपन्यास और कहानी संग्रह छपे और चर्चित हुए।

संग्रह ‘अंधे मोड़ से आगे’ में यह लिखा था-धरती पर जो कदम कम वजनदार होते हैं वही अपना निशान छोड़ते हैं। लेकिन ज्यों-ज्यों समय बीतता गया उस सोच और संकल्प में दरार आती गयी, लगा जीवन में अच्छा-बुरा, ऊंच-नीच, सफल-असफल दोनों हैं। यदि सदा ही वजनदार कदमों की बात होती रही तो अपनी यात्रा अपने आपको भी कभी नहीं दीखेगी। अनुभव के प्रत्यक्षीकरण का कोई वस्तुपरक पैमाना बन ही नहीं पाएगा, जो अपने आप में एक बहुत बड़ी सीख है।

लेकिन 2010 में प्रकाशित उनके संग्रह को पढ़कर उनकी कही बात सही लगती है कि जो कदम वजनदार होते हैं, वह अपना निशान छोड़ते हैं। ‘यहीं तक’ संग्रह की कहानियां उनकी कही बात को सही साबित करती हैं। राजी सेठ की कहानियाँ अनायास शुरू होती हैं। ‘तुम भी… ?’ कहानी इस वाक्य से शुरू होती है-रात जब उसकी नींद खुली तो आज फिर वह बिस्तर पर नहीं था। दो क्षण वह अडोल पड़ी रही। रात की खामोशी में उसे खिश्श-खिश्श की ध्वनि सुनाई देती है। पति कुछ सामान बोरी में चुराकर ला रहा है।

घर की जरूरतों को पूरा करने के लिए। पत्नी पूछती है, क्यों करते हो तुम यह पाप? कहानी में पति-पत्नी हैं, उनके बच्चे हैं, देवर है, वृद्ध माँ है…और हैं आर्थिक अभाव। कहानी सहजता से आगे बढ़ती रहती है। वृद्धा की मृत्यु हो जाती है, घर की जरूरतें बढ़ती रहती हैं। एक दिन पत्नी कहती है, इतना करते हो तो दो चार बोरियाँ और…। पति पत्नी को धक्का देकर थरथराता हुआ कहता, तू…तू…तू..भी मर गई है मेरे साथ…तेरे पुन्न को देखकर जीता आया था मैं अब तक…मेरा अपना ही बोझ क्या कम था मेरे लिए…। कहानी बड़ी मासूमियत से कहती है कि पति घर चलाने के लिए तब तक चोरी भी कर सकता है जब तक उसकी पत्नी चोर नहीं है।

निम्न-मध्यवर्गीय परिवार,उनके संकट, संघर्ष और जिजीविषा राजी सेठ की कहानियों के मूल में है। गई सदी के आठवें और नवें दशक में जेनरेशन गैप पर बहुत कहानियाँ लिखी जाती थीं। ‘यहीं तक’ कहानी भी संभव है उसी समय लिखी गई हो। राजी सेठ यहाँ भी अपनी शैली और शिल्प को बनाये रखती हैं। कहानी में कहीं इस बात का अहसास नहीं होता कि कहानी कहाँ जा रही है। इस कहानी में भी पिता है, पुत्र है, पत्नी है और हैं आर्थिक अभावों की दलदल। राजी सेठ नाटकीयता की भी पैरोकार नहीं लगती है। कहानी सहजता से चलती है और उसी सहजता से समाप्त हो जाती है।

कहानी में पिता द्वारा स्थितियों को बेहतर बनाने के प्रयास भी हैं। लेकिन एक बार इस तरह का गैप पड़ने के बाद स्थितियाँ मुश्किल से सुधरती हैं। राजी सेठ भी कहानी में अनावश्यक आदर्शवाद को लाकर उसे खराब होने से बचा लेती हैं। राजी सेठ की कहानियों के अधिकांश किरदार भी हाशिये पर रहने वाले या निम्न-मध्यवर्गीय हैं। ‘विकल्प’ कहानी में वह पति-पत्नी के रिश्तों के बहाने इस पर बात करती हैं कि मध्यवर्गीय लोगों के पास कितने सीमित विकल्प होते हैं। ‘डोर’ कहानी में नायक बिना किसी डोर के एक बच्चे की तकलीफ से जुड़ जाता है।

वह बार-बार इस डोर को झटक देना चाहता है लेकिन पाता है कि पतली-सी यह डोर उसे निरंतर अपनी ओर खींच रही है। राजी सेठ कहानी में संवेदना की इसी डोर को बचाना चाहती हैं। राजी सेठ अपनी कहानियों के विषय कहीं दूर से नहीं तलाशती, बल्कि जीवन से गुजरते हुए, जीवन को जीते और देखते हुए जो उनके हाथ लगता है, उसे ही कहानी में दर्ज करती हैं। ‘पासा’ कहानी व्यापार की कथित नैतिकता और अपने लाभ के लिए बदलने वाली मनोवृत्ति की ओर संकेत करती है। ठीक उसी तरह जिस तरह चेखव की कहानी ‘गिरगिट’ करती है।

राजी सेठ की कहानियों में मृत्यु बार बार आती है। राजी सेठ स्वयं मानती हैं कि बचपन से ही मेरी मानसिकता में किसी न किसी रूप में मृत्यु का हस्तक्षेप रहा। एक अनजाना अमूर्त डर हर पल सांस लेता। होश संभालते ही मैंने अपने आपको मृत्यु की कामना करते पाया। इस संग्रह की कई कहानियों में भी मृत्यु का भय चित्रित हुआ है। इन दिनों ऐसी ही कहानी है। एक कटा हुआ कमरा में राजी सेठ अलगाव को चित्रित करती है। आपसी रिश्ते, रिश्तों में किन्हीं भी कारणों से पैदा हुई दरार को वह बारीकी से देखती हैं और कहानी में लाती हैं। यही नहीं वह शहरों के रसायन को भी कहानी में शामिल करती हैं। ‘नगर रसायन’ ऐसी ही कहानी है।

राजी सेठ की कहानियों में निम्न वर्ग की जो छोटी-छोटी स्थितियां हैं, वे आने वाले समय में साहित्य में शायद ही कहीं मिलें। जैसे उनकी एक कहानी है ‘मीलों लंबा पुल’ एक पिता अमेरिका से आ रहे बेटे के लिए एक कूलर किराये पर लाता है। बेटा पढ़ाई के लिए अमेरिका गया हुआ है। किस तरह परिवार में एक अजनबीपन आ जाता है, यह कहानी में दशार्या गया है। राजी सेठ की कहानियों की ताकत यही है कि सहजता से चलती हुई अपना रास्ता खुद तय करती हैं और यह बड़ी बात है।


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