सिकंदर विश्व विजेता बनने के बाद अपनी शक्ति और ताकत पर अहंकार करने लगा था । अब वह अमर होना चाहता था। उसे पता लगा की कहीं ऐसा जल है जिसे पीने से व्यक्ति अमर हो सकता है। सिकंदर ने देश दुनिया में भटकने के बाद आखिरकार सिकंदर ने उस पुरानी गुफा को खोज लिया, जिसके अंदर अमृत का झरना बह रहा था। सिकंदर गुफा में प्रवेश कर गया। उसने देखा कि गुफा के अंदर एक अमृत का झरना बह रहा है। उसने जल पीने के लिए हाथ बढ़ाया था कि एक कौवे की आवाज आई , जो गुफा के अंदर ही बैठा था। वह बोला, रुक जा…ऐसी भूल मत करना…। सिकंदर ने कौवे की तरफ देखा। वह बड़ी ही दयनीय अवस्था में था, पंख झड़ गए थे, पंजे गिर गए थे, आंखों से दिखाई नहीं दे रहा था। बस कंकाल मात्र ही शेष रह गया था। सिकंदर ने कहा, तू कौन होता है मुझे रोकने वाला…?
मैं विश्व विजेता हूं। जब मैं पूरी दुनिया को जीत सकता हूं तो यह अमृत पीने से मुझे तुम कैसे रोक सकते हो? तब कौवे की आंखों से आंसू बह निकले। वह बोला, मैं भी अमृत की तलाश में ही इस गुफा में आया था और मैंने भी जल्दबाजी में अमृत पी लिया। अब मैं कभी मर नही सकता , पर अब मैं मरना चाहता हूं । देख लो मेरी हालत। कौवे की बात सुनकर सिकंदर देर तक सोचता रहा। सोचने के बाद बिना अमृत पिए ही चुपचाप गुफा से बाहर निकल गया। सिकंदर समझ चुका था कि जीवन का आनंद उस समय तक ही रहता है जब तक हम उस आनंद को भोगने की स्थिति में होते हैं। हमें खुश रहने के लिए बड़ी सफलता या समय का इंतजार नहीं करना चाहिए, क्योंकि समय के साथ हम बूढ़े होते जाते है।ं जीवन का असली आनंद नहीं उठा पाते।
प्रस्तुति : राजेंद्र कुमार शर्मा